भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) ने माना है कि टी20 अंतरराष्ट्रीय में हैट्रिक लेने वाली पहली भारतीय गेंदबाज एकता बिष्ट है दीपक चाहर नहीं। इससे पहले बीसीसीआई ने बांग्लादेश के खिलाफ तीसरे एकदिवसीय में हैट्रिक लेने वाले दीपक चाहर को यह उपलब्धि हासिल करने वाला पहला भारतीय गेंदबाज बताया था। बीसीसीआई ने ट्विटर पर लिखा कि चाहर टी20 अंतरराष्ट्रीय में हैट-ट्रिक लेने वाले भारत के पहले गेंदबाज बने। यह तथ्यात्मक तौर पर गलत है क्योंकि अंतरराष्ट्रीय टी20 में भारत के लिए पहली हैट-ट्रिक लेने का श्रेय महिला टीम की गेंदबाज एकता बिष्ट को जाता है जिन्होंने सात साल पहले श्रीलंका के खिलाफ यह उपलब्धि हासिल की थी। चाहर ऐसा करने वाले पहले भारतीय पुरुष क्रिकेटर हैं।
बीसीसीआई की तरह इसके सचिव जय शाह ने भी ट्विटर पर चाहर को टी20 अंतरराष्ट्रीय में पहला हैट-ट्रिक लेने वाला गेंदबाज बताते हुए लिखा था, ‘ चाहर ने क्या शानदार गेंदबाजी की, सिर्फ 7 रन देकर 6 विकेट, वह टी20 अंतरराष्ट्रीय में हैट-ट्रिक लेने वाले पहले भारतीय बने। इस उपलब्धि पर बधाई। बांग्लादेश के खिलाफ टी20 सीरीज जीतने पर पूरी भारतीय टीम को बधाई।’ बीसीसीआई के ट्वीट के बाद ट्विटर पर कई लोगों के साथ अखिल भारतीय महिला कांग्रेस ने उन्हें याद दिलाया की चाहर से पहले एकता बिष्ट टी20 अंतरराष्ट्रीय में हैट-ट्रिक ले चुकी हैं। महिला कांग्रेस ने लिखा, ‘बीसीसीआई यह दुखद है कि आपके आंकड़ो में एकता को भुला दिया गया जिन्होंने भारत के लिए अंतरराष्ट्रीय टी20 में पहली हैट-ट्रिक ली थी । हां, दीपक चाहर पहले पुरुष क्रिकेटर हैं लेकिन एकता पहली भारतीय हैं जिन्होंने 2012 में यह किया था।’
एकता बिष्ट ने 3 अक्टूबर 2012 को आईसीसी टी20 वर्ल्ड कप क्वॉलिफायर में श्रीलंका के खिलाफ हैट-ट्रिक ली थी। उन्होंने इस मैच में चार ओवर में 16 रन देकर तीन विकेट लिए थे जिसे भारत ने 9 विकेट से जीता था।
चाहर को कभी ग्रेग चैपल ने किया था खारिज
तेज गेंदबाज दीपक चाहर टी20 अंतरराष्ट्रीय मैचों में हैट्रिक लेने वाले पहले भारतीय पुरुष गेंदबाज हैं। वहीं 2008 में ग्रेग चैपल ने उन्हें खारिज कर दिया था। तब चैपल राजस्थान क्रिकेट असोसिएशन अकैडमी के डायरेक्टर थे। ऑस्ट्रेलिया में एक अंडर-19 टूर्नामेंट खेल स्वदेश लौटे दीपक को ग्रेग ने बाहर कर दिया था। चैपल की इस बात को दीपक ने दिल से लगा लिया।
दीपक ने कहा कि ग्रेग चैपल ने उन्हें राजस्थान के अंतिम 50 में भी नहीं चुना। उन्होंने मुझे बताया कि उन्हें नहीं लगता कि मैं उच्च स्तर पर क्रिकेट खेल सकता हूं। मुझे ये बात बहुत बुरी लगी। मेरे पूरे करियर में वो एक ऐसा दिन था जब मुझे रोने का मन हुआ। हालांकि अच्छा ही हुआ की मुझे घर भेज दिया गया, क्योंकि इसके बाद मैंने जमकर मेहनत की और दो साल के भीतर मैं राजस्थान के लिए रणजी ट्रॉफी खेलने लगा।
दीपक का मानना है कि उनमें बदलाव 2019 आईपीएल में आया। उनको हमेशा से पता था कि लाल गेंद को कैसे स्विंग कराया जाता है लेकिन 2018 में ड्वेन ब्रावो के नहीं होने के कारण महेंद्र सिंह धोनी ने उन्हें पावरप्ले और डेथ ओवरों में अतिरिक्त जिम्मेदारी सौंपी। यह टर्निंग पॉइंट था। उन्होंने स्विंग के अनुकूल हालात नहीं होने पर भी गेंदबाजी करना सीखा।
पिता ने बनवाई थी टर्फ और एक कंक्रीट की पिच
दीपक चाहर जिस मुकाम पर आज हैं, वहां पहुंचने के लिए उन्होंने लंबा संघर्ष किया है। दीपक के पिता लोकेंद्रसिंह चाहर ने अपने बेटे के जादुई प्रदर्शन का राज खोला है। उन्होंने कहा है कि नेट पर कम से कम एक लाख गेंद फेंकने के बाद उनका बेटा इस तरह का प्रदर्शन कर पाया। वायुसेना के सेवानिवृत्त कर्मचारी लोकेंद्रसिंह ने बताया, 'उसने नेट पर कम से कम एक लाख गेंदें फेंकी होंगी। अब मुझे महसूस हो रहा है कि हम दोनों ने जिस सपने को संजोया थो वह धीरे धीरे साकार हो रहा है।'
लोकेंद्रसिंह ने कहा, 'जब मैंने भारतीय वायुसेना में अपनी नौकरी छोड़ी तो मुझे पता था कि मैं क्या कर रहा था। जब मैंने अपने 12 साल के बेटे को खेलते हुए देखा तो मुझे पता था कि उसमें क्षमता है। उसमें कुछ नैसर्गिक क्षमताएं थीं। मैं क्रिकेटर बनना चाहता था लेकिन मेरे पिता ने स्वीकृति नहीं दी। इसलिए जब बात मेरे बेटे की आई तो मैं चाहता था कि वह अपने सपने को साकार करे जो मेरा सपना भी था।' दीपक के पिता ने अपने बचाए हुए पैसों से अपने गृहनगर आगरा में एक टर्फ और एक कंक्रीट की पिच बनवाई जहां उनका बेटा ट्रेनिंग कर सके। उसी का परिणाम है कि दीपक की पहचान स्विंग गेंदबाज के रूप में बनी है। वह थोड़ी भी मददगार पिच पर बेहद घातक साबित होते हैं। दीपक पहली बार सुर्खियों में नवंबर, 2010 में आए थे। उन्होंने अपने करियर का पहला फर्स्ट क्लास मैच रणजी ट्रॉफी में राजस्थान के लिए हैदराबाद के खिलाफ खेला था। उसमें पहले दिन ही 7.3 ओवर में 10 रन देकर 8 विकेट झटके थे, जिससे हैदराबाद टीम 21 रन पर लुढ़क गई थी।