भारत-पाकिस्तान के हाथों में है वनडे क्रिकेट की किस्मत, उम्मीद के मुताबिक नहीं जा रही चैंपियंस ट्रॉफी

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नई दिल्ली: आखिरी बार साल 2017 में चैंपियंस ट्रॉफी हुई थी। तब गौतम गंभीर ने राजनीति में कदम भी नहीं रखा था, विराट कोहली आसानी से कवर ड्राइव लगा रहे थे और केदार जाधव लोअर मिडल ऑर्डर में टीम इंडिया के फिनिशर हुआ करते थे। तब से अब तक ICC ने तीन T20 विश्व कप आयोजित किए- 2020, 2021 और 2024 में। इसका मतलब यही है कि चैंपियंस ट्रोफी को लेकर चाहे जितनी हाइप बनाने की कोशिश की जाए, असल में यह इंटरनैशनल क्रिकेट काउंसिल की प्राथमिकता में नहीं है।

यह समस्या पूरे वनडे क्रिकेट के साथ है। दशकों से यह फॉर्मेट पहचान के संकट से जूझ रहा है। न तो यह टेस्ट क्रिकेट जैसी प्रतिष्ठा पा सका है और न ही T20 जैसी पैसों की चकाचौंध। 2023 में हुए विश्व कप के बाद से टॉप क्रिकेट बोर्ड्स ने T20 की तुलना में कम वनडे खेले हैं। इन 16 महीनों के दौरान टीम इंडिया केवल 9 वनडे में उतरी, टेस्ट खेलने वाले देशों में सबसे कम। वहीं, 2024 में ही टीम ने 26 T20 मैच खेले।हालांकि इन सबके बावजूद चैंपियंस ट्रॉफी का अपना आकर्षण है। इस बार टूर्नामेंट में कोई एसोसिएट टीम नहीं है। टीम इंडिया को ग्रुप A में रखा गया है, जहां उसके साथ बांग्लादेश, न्यूजीलैंड और पाकिस्तान हैं। ग्रुप B भी मुश्किल नजर आ रहा है। इसमें ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड, दक्षिण अफ्रीका और अफगानिस्तान की टीमें हैं।

पाकिस्तान लगभग तीन दशक बाद किसी ICC इवेंट की मेजबानी कर रहा है। राजनीतिक, आर्थिक और सुरक्षा मसलों से जूझ रहे इस देश में चैंपियंस ट्रॉफी के अलावा भी बहुत कुछ दांव पर लगा है। अगर पाकिस्तान इस टूर्नामेंट को सफलतापूर्वक आयोजित कर पाता है, तो यह एक बड़ी उपलब्धि होगी। साथ ही, वह इस यह भी दावा कर सकेगा कि देश में सब सामान्य है।

भारत अपने सारे मुकाबले न्यूट्रल वेन्यू पर, दुबई में खेलेगा। वजह राजनीतिक है और सभी को पता है। इसके बावजूद, रविवार को जब भारत और पाकिस्तान की क्रिकेट टीमें आमने-सामने होंगी, तो यह सबसे बड़ा मैच होगा। इसे 2017 की हार का बदला बताया जा रहा है। इससे बड़ी बस एक ही चीज हो सकती है, भारत और पाकिस्तान के बीच फाइनल। यह उसी तरह है, जैसे पुष्पा 1 से बड़ी और बेहतर फिल्म पुष्पा 2 ही हो सकती है।
अच्छा यह होता कि टीम इंडिया इस चैंपियंस ट्रॉफी का इस्तेमाल 2027 में होने वाले वनडे विश्व कप के लिए युवा और प्रतिभाशाली खिलाड़ियों को परखने में करती। लेकिन, इतनी दूर की सोचना आसान नहीं होता, खासकर उस देश में जहां हर टूर्नामेंट में हर मैच जीतने की उम्मीद की जाती है। 22 साल के आक्रामक ओपनर यशस्वी जायसवाल टीम में जगह नहीं बना पाए। ऑस्ट्रेलिया के निराशाजनक दौरे पर उन्हीं का प्रदर्शन उम्मीद बंधाने वाला था। ऐसा लगता है कि चयनकर्ताओं ने भविष्य की ओर न देखते हुए अतीत पर दांव खेला है।
रोहित शर्मा, शुभमन गिल, विराट कोहली, श्रेयस अय्यर और केएल राहुल – कागज पर यह fab 5 जरूर लगते हैं, लेकिन दिखावा हमेशा हकीकत नहीं होता। रोहित और विराट का पीक क्रिकेट पीछे छूट चुका है। रोहित की हालिया सेंचुरी और विराट की हाफ सेंचुरी को छोड़ दिया जाए, तो उनके प्रदर्शन में गिरावट आई है। भारत का प्रदर्शन काफी हद तक इन दोनों पर निर्भर करता है। अगर वे परफॉर्म नहीं कर पाते हैं, तो दूसरे ओपनर शुभमन गिल और मिडल ऑर्डर में श्रेयस व राहुल पर दबाव बढ़ेगा। राहुल खासकर बड़े नॉकआउट मैचों में विफल रहे हैं। यहां तक कि टीम में आने का इंतजार कर रहे ऋषभ पंत का भी 2019 और 2023 विश्व कप में प्रदर्शन कुछ खास नहीं रहा था।
टीम इंडिया की सबसे बड़ी ताकत उसका लोअर मिडल ऑर्डर है। अक्षर पटेल, हार्दिक पंड्या और रविंद्र जडेजा बैटिंग में भी भरोसा पैदा करते हैं। हाल के दिनों में अक्षर पटेल वाइट बॉल क्रिकेट में टीम के लिए X फैक्टर साबित हुए हैं। 2024 T20 विश्व कप के फाइनल में उनकी 31 गेंदों पर 47 रनों की पारी ने भारत की जीत में अहम भूमिका निभाई थी। वह बड़े मैचों में बिना किसी दबाव और घबराहट के खेलते हैं। यह बात मध्यक्रम के कई नियमित बल्लेबाजों के बारे में नहीं कही जा सकती।
भारत के लिए कुछ चिंताएं भी हैं। जसप्रीत बुमरा की कमी खलने वाली है। हालांकि दो होनहार युवा, अर्शदीप सिंह और हर्षित राणा को जगह मिली है। अनुभवी मोहम्मद शमी भी लय पाने की कोशिश में हैं। कुल मिलाकर, वही टीमें सफल होंगी जो बड़े मौकों पर दबाव का सामना कर पाएंगी। चैंपियंस ट्रोफी के दो हफ्ते बाद IPL की शुरुआत होगी। इस बार यह लीग 65 दिनों तक चलेगी, जबकि 2008 में इसका पहला एडिशन सिर्फ 45 दिनों में खत्म हुआ था। क्या अब भी कोई शक कि क्रिकेट की दुनिया किधर जा रही है?