मध्य प्रदेश में वन्यप्राणी क्षेत्रों की सीमा चिन्हित करने बनेगी डिजिटल बाउंड्री

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भोपाल। मध्य प्रदेश के वन्यप्राणी क्षेत्रों की सीमा चिन्हित करने के लिए डिजिटल बाउंड्री बनाई जाएगी। डिजिटल बाउंड्री राजस्व विभाग द्वारा तैयार की जाएगी, जिसमें वनमंडलों के डीएफओ सहयोग करेंगे। राजस्व विभाग अपने कम्प्यूटरीकृत नक्शों में यह डिजिटल बाउंड्री प्रदर्शित करेगा। जिससे पता चलेगा कि वन्यप्राणी क्षेत्रों की सीमा के पास ईको सेंसेटिव जोन एवं राजस्व भूमि कहां तक है। आगामी दो माह के अंदर यह डिजिटल बाउंड्री नक्शे में बना दी जाएगी।

यह होगा लाभ

इससे यह लाभ होगा कि वन्यप्राणी क्षेत्रों में पर्यटक आवास, रिसोर्ट आदि गतिविधियां स्थापित करने के लिए राजस्व विभाग के कम्प्यूटरीकृत अभिलेखों में डिजिटल बाउंड्री के जरिए देखा जा सकेगा कि कहां इन गतिविधियों को अनुमति दी जा सकती है। इसके लिए वन एवं राजस्व विभाग के बीच सहमति हो गई है तथा आगामी दो माह के अंदर यह डिजिटल बाउंड्री राजस्व विभाग को अपने कम्प्यूटरीकृत नक्शों में प्रदर्शित करना है।

इसलिए पड़ी जरूरत

वन विभाग के अंतर्गत 11 नेशनल पार्क, सात टाइगर रिजर्व और 24 वन्यप्राणी अभयारण्यों में इको सेंसेटिव जोन हैं। वन्यप्राणी क्षेत्रों में खनन एवं निर्माण पूरी तरह प्रतिबंधित है, जबकि ईको सेंसेटिव जोन में निर्माण रेगुलेटेड यानि विनियमित हैं।

विवाद से बचा जा सकेगा

राजस्व और वन भूमि के विवाद के बीच आमजन तो प्रभावित होते ही है, साथ ही अधिकारी वर्ग भी न्यायालयीन प्रक्रिया में उलझ जाते हैं। ऐसे में वन क्षेत्र की सीमा तय होने और इसे नक्शे में दर्ज करने से काफी हद तक विवाद की स्थिति से बचा जा सकेगा। इसके अलावा टाइगर रिजर्व और अभयारण्य के सीमा से लगे इको सेंसेटिव जोन में अवैध गतिविधियों पर भी प्रतिबंध रहेगा। जंगल की सुरक्षा को लेकर राज्य सरकार सतर्क है। यही वजह है कि कमिश्नर, कलेक्टर को ईको सेंसेटिव जोन की निगरानी की जिम्मेदारी सौंपी है।

ईको सेंसेटिव जोन की सीमाएं होंगी तय

मध्य प्रदेश के ईको सेंसेटिव जोन की सीमाएं अभी तय नहीं है। टाइगर रिजर्व की बाउंड्री (सीमा) के बाहर कुछ जगह एक किलोमीटर और कई जगह तो एक किलोमीटर के अधिक ईको सेंसेटिव जोन है। कुछ सीमाओं में राजस्व क्षेत्र भी लगा हुआ है। यह सीमाएं राजस्व नक्शे और वन विभाग के नक्शे में भी दर्ज है। चूंकि, अधिकतर कार्य ईको सेंसेटिव जोन में प्रतिबंधित हैं, इस वजह से कई बार विवाद की स्थिति बन जाती है। अब ईको सेंसेटिव जोन की सीमा तय कर उसे नक्शे में दर्ज कर डिजिटल बाउंड्री बनाई जाएगी। इसके लिए सेटेलाइट इमेज की मदद ली जाएगी।