योग से मिलेगी खर्राटों से निजात  

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अगर आप अपने खर्राटों को लेकर परेशान हैं तो इसके लिए अपने रहन-सहन में आपको बदलाव करना होगा। कई बार 
एंटी स्नोरिंग उपकरणों व दूसरे तरीकों के इस्तेमाल से भी लोगों को मनचाहा लाभ नहीं मिला है। वहीं जीवनशैली में कुछ बदलाव कर खर्राटों की समस्या को काफी हद तक कम किया जा सकता है। इस बदलाव को कारगर करने में योग अहम भूमिका निभा सकता है। यह सबसे आसान और मजेदार विकल्पों में से एक है। योग करने से खर्राटों की समस्या से तुरंत निजात मिल सकती है। हालांकि, दूसरे तरीकों की तरह ही अगर योग को भी दैनिक क्रिया के तौर पर जारी रखा जाएगा तो बदलाव अधिक सहज होते जाएंगे।
योग से कैसे कम होते हैं खर्राटे
योग आसनों की मदद से रक्त संचार और फेफड़ों की क्षमता बढ़ती है। इस बात का भी ध्यान रखा जाता है कि एयर पैसेज पूरी तरह से खुला रहे। योगआसन गले और चेहरे की मांसपेशियों को मजबूत करने में भी मदद करते हैं। इन प्रभावों से खर्राटों की समस्या को कम या पूरी तरह से खत्म करने में मदद मिलती है।
पैरों को मोड़कर आराम से बैठ जाएं (पालथी मारकर)। आंखें बंद कर नाक से गहरी सांस लें। कर्कश आवाज निकालते हुए नाक से सांस लें। गर्दन की मांसपेशियों को कॉन्ट्रैक्ट करें और जब तक हो सके, सांस को रोके रहें। एक नथुने को पकड़ते हुए दूसरे से सांस छोड़ें। फिर दूसरे को पकड़ें और पहले से सांस छोड़ें। इस व्यायाम को दिन में तीन से पांच बार दोहराएं।
जमीन पर चटाई बिछाकर पालथी मारकर बैठें। रीढ़ की हड्डी व सिर बिलकुल सीधा होना चाहिए और चेहरा सामने की ओर रखें। एक गहरी सांस लें और जब तक हो सके, उसे रोक कर रखें। इस दौरान प्राण (जो ऊर्जावान सांस आपने ली है) के बारे में सोचते रहें। धीरे-धीरे सांस छोड़ें। सांस छोडऩे का समय सांस लेने के समय से अधिक होना चाहिए।
भ्रामरी या हमिंग बी की मुद्रा
सीधे बैठें और तर्जनी उंगलियों को कानों पर रखें। गहरी सांस अंदर लें, उसे छोड़ते समय कार्टिलेज को धीरे से दबाएं। आप चाहें तो कार्टिलेज को दबाए रखें या मधुमक्खी जैसी तेज आवाज निकालते हुए उस पर उंगली रखते व हटाते रहें। फिर से सांस लें और इस प्रक्रिया को 6-7 बार दोहराएं।
उज्जयी प्राणायाम या हिसिंग मुद्रा
सांस लेने से शुरुआत करें, गले के पीछे वाले हिस्से को खींचते हुए आपकी सांस धीमी व रिलैक्स्ड होनी चाहिए। सांस लेते समय स्थिर हिसिंग आवाज निकालें, यह ध्वनि धीमी व कान को अच्छी लगने वाली होनी चाहिए। सांस लेने व छोड़ने की प्रक्रिया को बढ़ाते रहें, ध्यान रखें कि इससे शरीर के किसी भी हिस्से में दबाव न महसूस हो। सांस की आवाज धीमी हो और टूटनी नहीं चाहिए।
सिंह गर्जनासन या रोरिंग मुद्रा
जमीन पर बैठें, पैर शरीर के अंदर मुड़े हुए और हिप्स, एड़ियों पर स्थिर होने चाहिए। जांघों को फैलाएं और हथेलियों को जमीन पर घुटनों के बीच इस तरह से रखें कि कलाइयां बाहर की ओर व उंगलियां अंदर की ओर नजर आएं। आगे की ओर झुकें, सिर को पीछे झुकाएं और गहरी सांस लें। मुंह खोलकर जीभ बाहर निकालें और सांस छोड़ें। इन चरणों को तीन बार दोहराएं।