भोपाल। भारत की आजादी के दौरान कई रियासत ऐसी थी, जिनका पाकिस्तानी प्रेम उफान मार रहा था और वे भारत में शामिल नहीं होना चाहती थी। हालांकि कुछ रियासतें स्वतंत्र रहने के पक्ष में थी। भोपाल भी इनमें से ही एक ऐसी रियासत थी, जो भारत में शामिल होने के पक्ष में नहीं थी। हालांकि तत्कालीन उप प्रधानमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल के हस्तक्षेप और भोपाल के लोगों के विरोध के बाद 1 जून 1949 को भोपाल का भारत में विलय हुआ।
ऐसा चला था घटनाक्रम
दरअसल, भोपाल के नवाब हमीदुल्लाह खान पाकिस्तान के समर्थक थे, ऐसे में वे भारत में शामिल होने के पक्ष में नहीं थे और हैदराबाद की तरह ही भोपाल रियासत को स्वतंत्र रखना चाहते थे। हालांकि लार्ड माउंटबेटन ने इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया और 14 अगस्त 1947 तक इसको लेकर कोई फैसला नहीं हो पाया।
नवाब जिन्ना और नेहरु के थे दोस्त
पंडित जवाहल लाल नेहरु और जिन्ना नवाब के अच्छे दोस्त थे। जिन्ना ने नवाब को प्रस्ताव दिया कि वे पाकिस्तान आते हैं तो उन्हें वहां सेक्रेटरी जनरल पद दिया जाएगा। नवाब इसके लिए तैयार भी थे और इसके लिए उन्होंने बेटी आबिदा को भोपाल रियासत का शासक बनने के लिए कहा, लेकिन आबिदा ने इंकार कर दिया।
भोपाल में भड़का विरोध
मार्च 1948 में नवाब द्वारा भोपाल को स्वतंत्र रियासत घोषित करने और मई 1948 में भोपाल मंत्रिमंडल के गइन के बाद सियासत में विरोध भड़क गया। जिसे देखते हुए भोपाल मंत्रिमंडल में प्रधानमंत्री चतुरनारायाण मालवीय भी नवाब के विरोध में खड़े हो गए।
दिसंबर 1948 के दौरान डा शंकरदयाल शर्मा, भाई रतन कुमार गुप्ता जैसे नेताओं के नेतृत्व में भोपाल के भारत में विलय के लिए ‘विलीनीकरण आंदोलन’ की शुरुआत हुई। जिसके बाद कई प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार कर लिया गया। वहीं जनवरी 1949 में डा शंकर दयाल शर्मा को भी जेल भेज दिया गया।
सरकार पटेल के पास पहुंचा तार
विरोध के बीच सकर संक्रांति के मेले में गोलीकांड हो गया जिसमें 10 लोगों की मौत हो गई। इस घटना के बाद कांग्रेस के प्रांतीय सदस्य बालकृष्ण गुप्ता ने सरदार पटेल को एक तार भेजकर हस्पक्षेप करने का अुनरोध किया। उन्होने तार में लिखा-
भोपाल में चल रहे प्रदर्शन और गिरफ्तारियों के साथ तार मिलने के बाद सरदार वल्लभ भाई पटेल ने सख्त रुख अपनाया और नवाब को संदेश भेजा कि भोपाल स्वतंत्र नहीं बन सकता और इसे मध्य भारत का हिस्सा बनना होगा।