इन्दौर । भगवान को सब कुछ मंजूर है, पर भक्त के दुख और आंसू नहीं। हमारी तरह उनके भी हाथ, पैर, आंख-कान और मन है। हमें अपने प्रत्येक कर्म उन्हें समर्पित कर शुरू करना चाहिए तभी हमारे पुरूषार्थ सफल हो सकते हैं। नानीबाई के मायरे की कथा भगवान की कृपा और भक्त के प्रति निष्ठा का सच्चा प्रसंग है। भक्ति निश्छल हो तो भगवान कृपा करने स्वयं आ जाते हैं।
बड़ा गणपति, पीलियाखाल स्थित प्राचीन हंसदास मठ पर ओंकारेश्वर के पं. विवेक कृष्ण शास्त्री ने आज नानी बाई के मायरे की कथा के समापन पर विभिन्न प्रसंगों का भावपूर्ण चित्रण करते हुए उक्त प्रेरक बाते कही। कथा में आज मायरे का जीवंत उत्सव मनाया गया। भगवान स्वयं नानी बाई के लिए जीप में सामान रख कर अपने साथियों सहित मायरा लेकर पहुंचे तो सैकड़ो भक्तों ने जय जयकार कर उनका स्वागत किया। मठ के महामंडलेश्वर स्वामी रामचरणदास महाराज के सान्निध्य में शुक्रवार से यहां तीन दिवसीय मायरे की कथा का आयोजन चल रहा था। प्रारंभ में पुजारी अमितदास महाराज, पं. पवन शर्मा एवं अन्य भक्तों ने पं. शास्त्री का स्वागत किया।
पं. शास्त्री ने कहा कि आज के युग में भी हम भले ही बदलते जा रहे हों, भगवान अपना स्वभाव नहीं बदलते। इतने सत्संग और धार्मिक आयोजन इस बात के प्रमाण हैं कि आज भी भगवान के प्रति हमारी आस्था और श्रद्धा निरंतर बढ़ रही है। भगवान सर्वव्यापी है। जिस तरह हमारी सांसें हमारे साथ रहती हैं, भगवान भी हमारे साथ ही हैं। वे पत्थर की मूरत नहीं, हमारे अंतर्मन में भी उनकी प्राण प्रतिष्ठा है। भक्तों पर किसी तरह की आंच नहीं आने देना भगवान का धर्म है। भक्तों को नानीबाई एवं उनके पिता नरसी मेहता की तरह कई तरह की परीक्षाएं देना पड़ती है। भगवान को केवल मंदिर में दर्शन करने तक सीमित न मानें, वे हर पल हमारे साथ हैं। नानीबाई के मायरे की कथा भगवान की भक्त के प्रति शरणागति की कथा है। भक्ति में ही ऐसी शक्ति होती है कि खुद भगवान मदद करने दौड़े चले आते हैं।