मुंबई, । एक बार फिर शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना के सम्पादकीय में अपनी सहयोगी बीजेपी पर निशाना साधते हुए उसकी (बीजेपी) तुलना हिटलर से कर दी है और कहा है कि पांच साल औरों को डर दिखाकर शासन करनेवाली टोली आज खुद खौफजदा है. यह उल्टा हमला हुआ है. डराकर भी मार्ग नहीं मिला और समर्थन नहीं मिलता है, ऐसा जब होता है तब एक बात स्वीकार करनी चाहिए कि हिटलर मर गया है और गुलामी की छाया हट गई है. पुलिस और अन्य जांच एजेंसियों को इसके आगे तो बेखौफ होकर काम करना चाहिए. इस परिणाम का यही अर्थ है. सामना के सम्पादकीय में लिखा है कि महाराष्ट्र की राजनीति महाराष्ट्र में ही हो. महाराष्ट्र दिल्ली का गुलाम नहीं है. यहां के फैसले यहीं होने चाहिए. चुनाव परिणाम घोषित होने के दूसरे ही दिन प्रधानमंत्री मोदी ने मुख्यमंत्री फडणवीस की सराहना की. फडणवीस ही दोबारा मुख्यमंत्री बनेंगे, ऐसा आशीर्वाद दिया परंतु 15 दिन बाद भी श्री फडणवीस शपथ नहीं ले सके क्योंकि अमित शाह राज्य की घटनाओं से अलिप्त रहे. ‘युति’ की सबसे बड़ी पार्टी शिवसेना ढलते हुए मुख्यमंत्री से बात करने को तैयार नहीं है, ये सबसे बड़ी हार है. इसलिए दिल्ली का आशीर्वाद मिलने के बाद भी घोड़े पर बैठने को नहीं मिला. अवस्था ऐसी है कि इस बार महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री कौन होगा? ये उद्धव ठाकरे तय करेंगे. राज्य के बड़े नेता शरद पवार की भूमिका महत्वपूर्ण सिद्ध होगी तथा कांग्रेस के कई विधायक सोनिया गांधी से मिलकर आए. महाराष्ट्र का निर्णय महाराष्ट्र को सौंपे, ऐसा उन्होंने भी सोनिया गांधी से कहा. कुछ भी हो लेकिन दोबारा भाजपा का मुख्यमंत्री न हो, यह महाराष्ट्र का एकमुखी सुर है. उल्लेखनीय है कि बीजेपी की सहयोगी पार्टी शिवसेना 50-50 के फॉर्मूले के तहत अपना मुख्यमंत्री बनाने की बात कह रही है, जिसके चलते राज्य में राजनीतिक खींचतान जारी है. महाराष्ट्र में बीजेपी के पास 105 सीटें, शिवसेना की 56, एनसीपी की 54 और कांग्रेस के विधायकों की संख्या 44 है.