इन्दौर । बेटियां भले ही समाज में पराया धन मानी जाती हो, उनका रिश्ता अपने पैतृक परिवार से कभी नहीं छूटता। बेटियां ही हैं जो दो परिवारों को जोड़ सकती हैं। जिसका कोई नहीं होता उसका साथी और सारथी सांवरिया सेठ होता है। नानीबाई के मायरे की कथा भारतीय संयुक्त परिवार की परंपराओं का उत्कृष्ट प्रमाण हैं जहां भगवान अपने भक्त की प्रतिष्ठा कायम रखने के लिए खुद चले आते हैं।
बड़ा गणपति, पीलियाखाल स्थित प्राचीन हंसदास मठ पर ओंकारेश्वर के पं. विवेक कृष्ण शास्त्री ने आज नानी बाई के मायरे की कथा के दूसरे दिन विभिन्न प्रसंगों का भावपूर्ण चित्रण करते हुए उक्त प्रेरक बाते कही। मठ के महामंडलेश्वर स्वामी रामचरणदास महाराज के सान्निध्य में शुक्रवार से यहां तीन दिवसीय मायरे की कथा का आयोजन चल रहा है। प्रारंभ में पुजारी अमितदास महाराज, पं. पवन शर्मा, श्याम अग्रवाल, राकेश गोधा एवं अन्य भक्तों ने पं. शास्त्री का स्वागत किया। इस दौरान मनोहारी भजनों पर भक्तों ने नृत्य भी किए। मायरे की कथा रविवार 10 नवंबर तक प्रतिदिन दोपहर 3 से 7 बजे तक होगी। रविवार को भगवान स्वयं नानी बाई के लिए मायरा लेकर पहंुचेंगे।
मायरे की कथा में नरसी मेहता के अंजार नगर प्रस्थान के प्रसंग का भावपूर्ण चित्रण करते हुए पं. शास्त्री ने कहा कि नानीबाई के पिता अंजार आने के लिए एक टूटी बैलगाड़ी की मदद लेते हैं और वह रास्ते में खराब हो जाती है तो खुद भगवान सांवरिया सारथी बनकर पहुंच जाते हैं। ससुराल की संकीर्ण मानसिकता में डूबी यह कथा उन लोगों के लिए बहुत बड़ा सबक है जो बहू को बेटी का दर्जा देने के लिए तैयार नहीं है। बेटी के मन में दो परिवारों की जिम्मेदारी का बोध होता है। नानीबाई केवल मायरे की कथा का पात्र नही बल्कि भारतीय समाज के प्रत्येक परिवार की बेटी हैं, कुछ अपवाद अवश्य हो सकते हैं।