नई दिल्ली,भारत समेत दुनिया भर को जिस निर्भया रेप कांड ने हिला दिया था, उसके दोषी सुप्रीम कोर्ट से फांसी की सजा सुनाए जाने के डेढ़ साल बाद भी सजा से दूर हैं। अब तक सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर अमल नहीं हो सका है। इसकी वजह कानूनी प्रावधानों की पेचीदगी और अस्पष्टता है। सजा सुनाए जाने के करीब डेढ़ साल बाद दोषियों को नोटिस दे दिए हैं कि अगर वे सजा-ए-मौत में कोई रियायत चाहते हैं तो सात दिन के भीतर राष्ट्रपति के यहां दया याचिका दाखिल करें। सात दिन की यह मियाद आज पूरी हो रही है। माना जा रहा है कि सोमवार को ही वे मर्सी पिटिशन दाखिल कर सकते हैं।
निर्भया के पैरंट्स फांसी में हो रही देरी से निराश हैं। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि क्या क्यूरेटिव पिटिशन और मर्सी पिटिशन दाखिल करने के लिए समय सीमा तय नहीं होनी चाहिए? सुप्रीम कोर्ट से फांसी की सजा सुनाए जाने के करीब डेढ़ साल बीतने के बावजूद निर्भया के गुनहगारों को फांसी पर नहीं लटकाया गया है। उनके वकील का कहना है अभी क्यूरेटिव पिटिशन और मर्सी पिटिशन दाखिल कर फांसी की सजा माफ करने की अपील की जाएगी। लेकिन निर्भया के पैरंट्स इंतजार करके थक चुके हैं। उन्होंने कुछ महीने पहले निचली अदालत में अर्जी दाखिल कर सवाल किया था कि आखिर निर्भया के गुनहगारों को फांसी पर कब लटकाया जाएगा?
इसलिए अटकी हुई है फांसी
निर्भया के पिता ने बताया कि पिछले साल 9 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने 3 मुजरिमों की रिव्यू पिटिशन खारिज कर दी थी। उसके बाद से मुजरिमों ने सुप्रीम कोर्ट में क्यूरेटिव पिटिशन दाखिल नहीं की और चौथे ने रिव्यू पिटिशन भी दाखिल नहीं की। क्यूरेटिव पिटिशन दाखिल करने के लिए अगर समयसीमा नहीं है तो इसका फायदा मुजरिमों को कैसे उठाने दिया जा सकता है? उनका मानना है कि पिछले साल जब सुप्रीम कोर्ट ने मुजरिमों को फांसी की सजा सुनाई, तभी संबंधित अथॉरिटी को मुजरिमों मर्सी या क्यूरेटिव पिटिशन दाखिल करने के लिए एक तय समय सीमा देनी चाहिए थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ और डेढ़ साल बीत गए।
अब मीडिया के जरिए पता चला है कि जेल अथॉरिटी ने 28 अक्टूबर को तिहाड़ जेल और मंडोली जेल (जहां चारों मुजरिम बंद हैं) में बंद हत्यारोपियों को नोटिस दे दिए हैं कि अगर वे ट्रायल कोर्ट से मिली सजा-ए-मौत में कोई रियायत चाहते हैं तो नोटिस मिलने के सात दिन के भीतर राष्ट्रपति के यहां दया याचिका दाखिल करें। यह सीमा आज पूरी हो रही है। पिता को बस इस बात का इंतजार है कि निर्भया के गुनाहगारों को फांसी दी जाए ताकि आखिरकार उनकी बेटी को इंसाफ मिल सके।
क्यूरेटिव पिटिशन और मर्सी पिटिशन के लिए तय हो समयसीमा
सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट एम. एल. लाहोटी बताते हैं कि न क्यूरेटिव पिटिशन और न ही मर्सी पिटिशन दाखिल करने के लिए कोई समयसीमा है। लेकिन इसकी समयसीमा तय होनी चाहिए, वरना मुजरिम इसका लाभ उठाएंगे और तब तक पिटिशन दाखिल करने से बचेंगे, जब तक कि उन्हें फांसी पर चढ़ाने की प्रक्रिया शुरू नहीं होती। सवाल है कि पिछले साल जुलाई में जब रिव्यू पिटिशन खारिज हो चुकी थी तो इतना वक्त उन्हें क्यों दिया गया? अब जाकर अथॉरिटी ने मुजरिमों को अल्टमेटम दिया है और 5 दिन के अंदर अर्जी दाखिल करने को कहा है। जिस केस के बाद देश में रेप का कानून बदल गया, उस मामले में सुप्रीम कोर्ट से फैसले के बाद संबंधित अथॉरिटी को इतना लंबा इंतजार नहीं करना चाहिए था।