गहराया महाराष्ट्र संकट: शिवसेना-भाजपा ने शुरू की दबाव की राजनीति

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महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री पद को लेकर खींचतान और गहरा गई है। शिवसेना ने अपने तेवर और तीखे करते हुए कहा कि भाजपा उसे विकल्प खोजने पर मजबूर न करे। शिवसेना नेता संजय राउत ने एक टीवी चैनल से देर शाम कहा कि राजनीति में कोई साधु संत नहीं है।कांग्रेस-राकांपा के साथ गठबंधन बनाने को लेकर पूछे सवाल पर उन्होंने कहा कि हम इस संभावना से इनकार नहीं करते। राजनीति में कोई साधु संत नहीं है, हालांकि शिवसेना अपने सिद्धांतों में यकीन रखती है। राउत ने कहा कि उनके नेता उद्धव ठाकरे ने साफ कहा है कि वह भाजपा का इंतजार करेंगे लेकिन हमें विकल्प खोजने के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए। हम यह पाप नहीं करना चाहते हैं।

शिवसेना की अड़ी को देखते हुए भाजपा ने तेवर सख्त कर लिए हैं। भाजपा प्रवक्ता नरसिम्हा राव ने कहा कि भाजपा आलाकमान शिवसेना नेताओं के बयानों को देख रहा है और इनका सही वक्त आने पर जवाब दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि भाजपा एक बड़े अंतर के साथ सबसे बड़े दल के रूप में उभरी है। लोगों के समर्थन के साथ महाराष्ट्र में जल्द ही भाजपा नेतृत्व में सरकार का गठन होगा जो अपना कार्यकाल पूरा करेगी। महाराष्ट्र के परिणाम भाजपा नेतृत्व के सरकार के गठन के पक्ष में हैं।

 इससे पहले सोमवार सुबह दोनों दलों के नेताओं ने राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी से अलग-अलग मुलाकात की। सोमवार सुबह 10.30 बजे पहले शिवसेना नेता दिवाकर रावते ने राज्यपाल से भेंट की। इसकी भनक मिलते ही मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस 11 बजे कोश्यारी से मिलने पहुंच गए। वैसे तो दोनों दलों का दावा है कि वे राज्यपाल को दीपावली की शुभकामनाएं देने गए थे। पर सूत्रों का कहना है कि इन मुलाकातों में राज्यपाल से नई सरकार के गठन को लेकर चर्चा हुई।

 

अड़ी शिवसेना तो महाराष्ट्र में सरकार गठन में होगी देरी

महाराष्ट्र में भाजपा अपनी सहयोगी शिवसेना को किसी भी सूरत में मुख्यमंत्री का पद नहीं देगी। पार्टी शिवसेना को अधिक से अधिक डिप्टी सीएम और मंत्रिमंडल में 40 फीसदी हिस्सेदारी देने पर ही सहमत होगी। अगर शिवसेना सीएम बनाने की शर्त और 50-50 फार्मूले पर अड़ी रही तो राज्य में नई सरकार के गठन में देरी होना तय है। दोनों दलों के बीच बुधवार को नई सरकार के गठन पर बातचीत हो सकती है। हालांकि यह तय नहीं है कि इस दौरान शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के मुखातिब भाजपा अध्यक्ष अमित शाह होंगे या कार्यकारी अध्यक्ष जेपी नड्डा।

दरअसल विधानसभा चुनाव का परिणाम आने के बाद शिवसेना सरकार के गठन में 50-50 (कार्यकाल का आधा-आधा बंटवारा) फार्मूले को लागू कराने पर अड़ी हुई है। शिवसेना चाहती है कि इस फार्मूले के तहत पहला कार्यकाल उसके हिस्से आए और उसे अपना सीएम बनाने का मौका मिले। इस संदर्भ में तीखी बयानबाजी के बावजूद भाजपा अपनी सहयोगी को ज्यादा भाव देने के मूड में नहीं है। पार्टी के रणनीतिकारों को लगता है कि शिवसेना दबाव की राजनीति के तहत डिप्टी सीएम के साथ आधे मंत्रिमंडल में नेतृत्व और कुछ मंत्रालय चाहती है। क्योंकि भाजपा के इतर शिवसेना का एनसीपी और कांग्रेस के साथ सरकार बनाने का रास्ता इतना भी आसान नहीं है।

महाराष्ट्र की राजनीति से जुड़े एक वरिष्ठ  नेता के मुताबिक सीएम पद देने का सवाल ही नहीं है। अगर शिवसेना को डिप्टी सीएम का पद मिलेगा तो उसे मंत्रिमंडल में अधिक से अधिक 40 फीसदी की हिस्सेदारी दी जाएगी। हां, इस क्रम में उसे कुछ महत्वपूर्ण मंत्रालय दिये जा सकते हैं। इससे ज्यादा कुछ नहीं। अगर फिर भी शिवसेना सीएम पद के लिए अड़ी रही तो राज्य में सरकार के गठन में देरी होना तय है। क्योंकि भाजपा सीएम और कार्यकाल का आधा-आधा बंटवारे की शर्त को किसी कीमत पर स्वीकार नहीं करेगी।

बुधवार को वार्ता संभव

दोनों दलों के बीच नई सरकार के गठन पर बुधवार को बातचीत हो सकती है। पार्टी सूत्रों के मुताबिक इस क्रम में उद्घव के साथ बातचीत की अगुवाई अमित शाह करेंगे या जेपी नड्डा इस पर अंतिम फैसला नहीं हुआ है। अगर पार्टी को शिवसेना के अपनी शर्तों पर अडिग रहने स्पष्ट संकेत मिला तो शाह की जगह नड्डा उद्धव से बातचीत कर सकते हैं।

 

प्लान बी डालेगा शिवसेना को मुश्किल में

विधानसभा चुनाव के बाद भाजपा ने महाराष्ट्र में शिवसेना के सहयोग के बगैर भी सरकार बनाने के प्रयास शुरू कर दिए हैं। सूत्रों के अनुसार शिवसेना 50-50 फार्मूले पर अड़ी रहती है तो मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस प्लान बी पर काम कर सकते हैं, जो शिवसेना को मुश्किल में डाल देगा। इस प्लान के तहत भाजपा शिवसेना के ऐसे विधायकों के संपर्क में है, जो दो या तीन बार सदन में तो पहुंचे हैं मगर मंत्री नहीं बन सके। ऐसे 15-16 शिवसेना विधायक हैं।

भाजपा (105) और शिवसेना (56) को मिलाकर 161 विधायक चुनाव जीतकर आए हैं। ऐसे में भाजपा के पास अपनी सहयोगी पार्टी के बिना सरकार बना पाना संभव नहीं है। शिवसेना ढाई साल के मुख्यमंत्री पद की जिद पर अड़ी है। साथ ही वह संकेत दे चुकी है कि भाजपा नहीं मानी तो अन्य विकल्प खुले हैं।

सूत्रों की मानें तो शिवसेना अगर सचमुच कांग्रेस-एनसीपी के साथ जाने वाला कदम उठाती है तो उसे निष्प्रभावी करने के लिए फडणवीस प्लान बी को हथियार के रूप में आजमा सकते हैं। शिवसेना के लिए दो-तीन बार चुने जाने पर भी मंत्री पद से वंचित एक धड़ा असंतुष्ट है। वह उद्धव ठाकरे का साथ छोड़ सकता है। भाजपा से अच्छा प्रस्ताव मिलने पर यह धड़ा शिवसेना से अलग हो कर भाजपा को समर्थन दे सकता है। फडणवीस करीब 20 स्वतंत्र और बागी के रूप में चुनाव जीतने वालों के भाजपा को समर्थन देने का दावा पहले ही कर चुके हैं।