भोपाल भोपाल(bhopal) में एक ऐसा मदरसा है जहां गौ-सेवा की जाती है. यहां पूरी एक गौ-शाला (gaushala)है जिसमें अच्छी नस्ल की गाय (cow)पाली गयी हैं. मदरसे में पढ़ रहे बच्चों को गौ-सेवा और देशभक्ति की शिक्षा दी जाती है.मध्यप्रदेश के इतिहास में पहली बार किसी मदरसे में गौ-शाला खोली गई है.
जामिया इस्लामियाअरबिया मदरसा- मदरसे में गौ-शाला सुनकर अजीब ज़रूर लगता है, लेकिन ये सच है. राजधानी भोपाल के नज़दीक तुमड़ा गांव में जामिया इस्लामिया अरबिया मदरसा है. इस मदरसे की आधारशिला नवाबी शासन में रखी गई थी.एक सदी तक यहां कुरान के अनुवाद का काम चलता रहा. यही कारण है कि इसे मस्जिद तर्जुमे वाली के नाम से भी जाना जाता है.आजादी के बाद जब नई शिक्षा की जरूरत हुई, तो मदरसा के संचालकों ने यहां धार्मिक शिक्षा के साथ हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू और फिर कम्प्यूटर पढ़ाना भी शुरू कर दिया. यहां पढ़ने वाले स्टूडेंट्स की डाइट में दूध भी शामिल था. संचालकों ने सोचा क्यों ना यहीं गौशाला खोल ली जाए. इससे दूध भी मिलेगा और बच्चों को गौ-सेवा की तालीम भी दी जा सकेगी.
ये ख़्याल आते ही 2003 में इस मदरसे में गौ-शाला खोल दी गयी.मदरसे के संचालक मौलाना मोहम्मद अहमद ने बताया कि हमारे नवी ने इंसानों के साथ जानवारों से भी मोहब्बत करना सिखाया है.जो लोग ये सोचते हैं कि मुस्लमान गाय नहीं पालते हैं, उन्हें हमारे मदरसे में देखना चाहिए.जो लोग गाय को धर्म विशेष से जोड़कर देखते हैं, वो जब यहां आते हैं, तो उन्हें आश्चर्य होता है.
मदरसे की इस गौ-शाला में अच्छी नस्ल की 15 गाय हैं. मदरसा स्टॉफ और बच्चों के लिए इन्हीं गाय का दूध इस्तेमाल किया जाता है. मदरसा संचालकों ने कभी भी यहां का दूध बाज़ार में नहीं बेचा.गौ-शाला के लिए कोई सरकारी अनुदान भी नहीं लिया. मदरसे के बजट और आम लोगों के सहयोग से ये गौशाला चल रही है.
जामिया इस्लामिया अरबिया मदरसे की इस गौ-शाला में गायों की देखभाल, उनके इलाज, खान-पान की बेहतरीन व्यवस्था की गई है.मदरसा का स्टाफ कहता है दूध तो दूसरे पशु भी देते हैं, लेकिन स्वास्थ्य के लिए जो गुण गाय के दूध में रहते हैं, वो दूसरे पशुओं के दूध में नहीं रहते.मध्यप्रदेश के इतिहास में पहली बार किसी मदरसे में गौ-शाला खोली गई है.जामिया इस्लामिया अरबिया एक ऐसा मदरसा है, जो प्रदेश के दूसरे मदरसों के लिए मिसाल बना हुआ है.