धमतरी. दशहरा ( Dussehra 2019) को बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है. इस वजह से इसे विजयादशमी (Vijayadashami) भी कहा जाता है. बुराई रूपी रावण की प्रतिमा को जलाए जाने की सदियों पुरानी परंपरा है, लेकिन छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के धमतरी (Dhamtari) जिले के पास एक ऐसा गांव भी है जहां रावन (Ravan) दहन के बिना दशहरा मनाया जाता है. इस गांव के लोगों की मान्यता है कि आग जलाने से उन पर आफत आ सकती है. सदियों से चली आ रही इस परंपरा को यहां का युवा वर्ग भी आगे संजोए रखने की बात करता है.
सदियों से चले आ रही ये परंपरा
वक्त जरूर बदला लेकिन तेलिनसत्ती गांव का दस्तूर आज भी वैसा ही है. धमतरी जिले से करीब तीन किमी दूर इस गांव में आज भी बिना रावण दहन के दशहरा मनाया जाता है. जिले की सरहद के करीब बने सती माता मंदिर से ये परंपरा जुड़ी हुई है. इस मंदिर के इतिहास में गांव की अनोखी परंपरा की दास्तां छिपी है. ग्रामीणों के मुताबिक, सती नाम की महिला के भाइयों ने उसके पति पर खेत की मिट्टी डालकर दफन कर दिया था. इसके बाद महिला ने अपने पति के शरीर को गोद में लिया और सती हो गई. इस घटना के बाद से इस गांव में रावण दहन नहीं होता और न ही दाह संस्कार किया जाता है.
लोगों में है ये विश्वास
इस तेलिनसत्ती गांव में खुशी के मौके पर कभी आग नहीं जलाई जाती. न दशहरे में रावण का दहन होता है, न होली में होलिका जलाई जाती है. अगर लोगों को होलिका या रावन दहन करना भी होता है तो सभी गांव की सरहद के बाहर चले जाते है. गांव वालों का मानन है कि प्रथा नहीं मानन से गांव पर आफत आ सकती है. स्थानीय लोग भी इस मान्यता पर विश्वास करते हुए इसे आगे बढ़ाने की बात करते हैं.