भोपाल । शरीर पर श्वेत वस्त्र माथे पर मुकुट … शरीर पर आभषूण…. ऐसे प्रतीत हो रहे थे आज बालक इनका स्वरूप दिखाई दे रहा था इन्द्र जैसा। आयोजन स्थल पर दिखाई दिया श्रद्धा, भक्ति और आस्था का अभूतपूर्व संगम। मौका था जैन मंदिर जवाहर चौक परिसर में आर्चा श्री विद्यासागर महाराज के शिष्य मुनिश्री प्रसाद सागर महाराज, मुनिश्री शैल सागर महाराज, मुनिश्री निकलंक सागर महाराज के सानिध्य में प्रथमधारा महोत्सव का कार्यक्रम में 1008 बालकों ने भगवान जिनेन्द्र का अभिषेक किया तथा संपूर्ण जगत के जीवों के कल्याण की भावना और प्राणमात्र के सफल, सुखद जीवन की कामना के साथ मंत्रोचारित शांतिधारा की। कार्यक्रम का शुभारंभ आचार्य श्री विद्यासागर महाराज के चित्र के समक्ष दीप प्रज्वलन के साथ हुआ। पाठशाला के बच्चों द्वारा मंगलाचरण किया गया। सिद्ध भक्ति, सिद्ध प्रभु की आराधना के साथ सभी बालकों ने हाथों में कलश लेकर भगवान जिनेन्द्र का अभिषेक किया। भगवान शीतलनाथ की मोक्ष कल्याणक की पावन बेला के अवसर पर भगवान शीतलनाथ की पूजा अर्चना भी की गई। मुनिसंघ ने स्वयं के करकमलों से सभी बालकों के मस्तक पर स्वाष्तिक लगाकर मंत्रोचार के साथ संस्कारों से आरोपित किया। मुनिद्वय ने सभी बच्चों को मंत्रोचार के साथ उपनयन संस्कार दिये। आयोजन स्थल भगवान जिनेन्द्र के जयकारों और णमोकार मंत्र के उच्चारण से गूंज रहा था। दिगम्बर जैन पंचायत कमेटी ट्रस्ट के मीडिया प्रभारी अंशुल जैन ने बताया यह मध्य भारत के इतिहास में प्रथम आयोजन था जिसमें एक साथ इतने बालकों ने भगवान जिनेन्द्र का अभिषेक किया और उन्हें संस्कार आरोपित किये गये। सभी बालकों को स्वर्णमयी रजत कलश वितरित किये गये। श्रद्धालुओं में इतनी उत्साह और भक्ति देखी जा रही थी अनेक दादा, दादी, नानी, नानी ने अपने पोते के प्रथम अभिषेक पर और संस्कार के पुण्य अवसर पर स्वर्णकलश इस भावना के साथ भेंट किये कि हमारे पोते-पोती निरन्तर प्रभु का अभिषेक कर भारतीय संस्कृति और संस्कारों के मार्ग पर अनवरत चलते रहेंगे। कार्यक्रम में प्रदेश के विभिन्न शहरों के साथ चेन्नई, बेगलोर, दिल्ली, मुम्बई, जयपुर, गोहाटी सहित अनेक शहरों से बच्चे शामिल हुये। सभी बच्चों को स्वर्णमयी रजतकलश भेंट करने वाले पुर्ण्याजक परिवार राजेश जैन कोयला, प्रदीप नौहरकला, सुनील जैन 501, देवेन्द्र जैन, जीवन प्रकाश मडवैया आदि थे। पंचायत कमेटी ट्रस्ट के अध्यक्ष प्रमोद हिमांशु एवं अन्य पदाधिकारियों ने पुर्ण्याजक परिवारों का सम्मान किया। आचार्यश्री विद्यासागर महाराज की संघस्थ ब्रह्मचारी भैया बहनों द्वारा मुनिसंघ के करकमलों में शास्त्र भेंट किये गये। कार्यक्रम में ट्रस्ट के अध्यक्ष हिमांशु जैन सहित मंदिर समितियों के अध्यक्ष, समाज के विभिन्न संगठनों के पदाधिकारी, महिला मंडल, युवा मंडल के सदस्यों ने मुनिसंघ को श्रीफल समर्पित कर आर्शीवाद लिया। आशीष वचन में मुनिश्री प्रसाद सागर महाराज ने अभिभावकों से कहा कि बच्चों के लिये कुछ छोड़कर जाओ या न जाओ संपत्ति के रूप में संस्कार अवश्य देकर जाना जीवन में सबसे बड़ी संपत्ति संस्कार ही होते हैं। भारतीय संस्कृति तो संस्कारों को विदेश में निर्यात करती है। आज भी अन्य देश संस्कृति और संस्कारों के लिये भारत की ओर देखते हैं और यह भारतीय संस्कृति ने ही सिखाया है कि संस्कृति में किसी रूप में भी हिंसा न हो। भारत की संस्कृति में जो भी क्रियाएं होती हैं उनका किसी न किसी अर्थ मूल रहस्य छुपा होता है चाहे वह मुंडन संस्कार हो या तिलक लगाने की हो या कानों में कुंडल पहनने की हो। परकी रहस्यमयी बातों को जानने में समय नष्ट मत करों, इनसे कोई फायदा नहीं है हम अपनी आत्मा के रहस्य को जाने इसी में हमारा कल्याण है। मुनिश्री ने कहा कि आज आपकी जैस परिणति व्यवहार होगा वैसा ही आचरण संस्कार आपके बच्चों में आयेंगे क्योंकि आज के ये बच्चे कल के उज्जवल भारत का भविष्य हैं। जैसी जड़ मजबूत होगी तो तना भी मजबूत होगा ओर डालियां भी मजबूत होंगी। भारतीय इतिहास में प्रत्येक प्राणी को सहयोग स्वजन्नता देकर उसकी अखण्डता की रक्षा की जाती है। भारतीय संस्कृति अहिंसामयी रही है आज गहरी चिंता का विषय है उसी अहिंसा का पूरी तरह हास हो रहा है। आज छोटे-छोटे बच्चों का जो व्यक्सीकरण, टीकाकरण हो रहा है उसमें भी मासाहारी पदार्थों का मिश्रण है।
ट्रस्ट के प्रवक्ता अंशुल जैन ने बताया कि कार्यक्रम में मौजूद हजारों बच्चों को मुनिश्री शैल सागर महाराज ने सप्त व्यसन का त्याग कराया। जीवन के कल्याण के लिये बालकों को अनेक नियम दिलाये गये। अंतर्जातीय विवाह न करने के लिये भी बच्चों से संकल्प कराया गया। साथ ही जब तक बालक विद्यार्थी जीवन में शिक्षा यापन कर रहे हैं जब तक के लिये ब्रह्मचर्य व्रत धारण कराने का संकल्प भी कराया गया। मुनिश्री शैल सागर महाराज ने कहा कि आज उपनयन संस्कार में मुंडन संस्कार इसलिये कराया गया हैं बड़े होकर यह बच्चे कैशलोच कर सकें अर्थात्् जीवन को नियम संयम के पथ पर लगाकर संसार की भौतिकता में न उलझते हुये स्व और पर का कल्याण कर सकें। मुनिश्री ने कहा कि अपनी संस्कृति और धर्म की रक्षा सिर्फ मंदिर और ग्रंथों से नहीं होती उनकी रक्षा तो संतान को संतों की संगति और उच्च आचरण के साथ विवेकपूर्ण ज्ञान अर्जन से ही हो सकती है।