भोपाल। नर्सिंग कॉलेजों की जांच में सीबीआई अधिकारियों द्वारा रिश्वत लेने का मामला उजागर होने के बाद उपयुक्त बताए गए कॉलेजों की सीबीआई से ही नए सिरे से जांच कराई गई थी। रिश्वतकांड के पहले सीबीआई ने जिन 169 कॉलेजों को उपयुक्त बताया था, दोबारा जांच में उनमें से 17 कॉलेजों में कमियां मिली हैं।
यह सभी बीएससी नर्सिंग व अन्य डिग्री पाठ्यक्रम संचालित करने वाले कॉलेज हैं। डिग्री पाठ्यक्रम संचालित करने वाले कॉलेजों के अतिरिक्त डिप्लोमा वाले अन्य कॉलेजों की जांच के लिए हाई कोर्ट ने निर्देश दिए थे। ऐसे 371 कॉलेजों की जांच की गई थी, जिनमें सौ से अधिक में कमियां मिली हैं।
मान्यता नवीनीकरण पर निर्णय होना है
हाई कोर्ट के निर्देश पर मप्र नर्सेस रजिस्ट्रेशन काउंसिल ने अपने पोर्टल पर कमी वाले कॉलेजों की सूची अपलोड कर दी है। इसी सूची के आधार पर कॉलेजों की मान्यता नवीनीकरण पर निर्णय होना है। एमपी ऑनलाइन के पोर्टल से नवीनीकरण की प्रक्रिया चल रही है।
इसके लिए निर्धारित तारीख तक आए कॉलेजों के आवेदनों की जांच की जा रही है। सीबीआई की रिपोर्ट और हाई कोर्ट द्वारा गठित विशेष समिति की रिपोर्ट के आधार पर कॉलेजों की मान्यता नवीनीकरण पर निर्णय होगा।
मेडिकल कालेजों में चिकित्सा अधिकारियों की पदोन्नति का प्रविधान ही नहीं
मध्य प्रदेश में शायद ही कोई ऐसा विभाग और पद होगा जहां पदोन्नति का प्रविधान नहीं हो, लेकिन मेडिकल कॉलेजों में चिकित्सा अधिकारियों के मामले में ऐसा है। शायद यही वजह है कि चिकित्सा शिक्षा विभाग में चिकित्सा अधिकारियों के 350 पद हैं उनमें 90 ही पदस्थ हैं। दरअसल, उनके भर्ती नियमों में पदोन्नति के कालम में निरंक लिखा हुआ है।
विभाग एक होने के बाद भी मेडिकल कॉलेज व अन्य अस्पतालों में पदस्थ चिकित्सा अधिकारियों और इनकी सेवा शर्तें अलग-अलग हैं। इन्हें रात्रिकालीन भत्ता और नान प्रैक्टिसिंग अलाउंस (एनपीए) भी नहीं दिया जा रहा है।
बता दें, मेडिकल कॉलेजों में इमरजेंसी ड्यूटी, अस्पताल अधीक्षक के सहयोग के लिए प्रशासनिक कार्य, चिकित्सकीय काम में कंसल्टेंट (फैकल्टी) के सहयोग के लिए चिकित्सा अधिकारियों की भर्ती की जाती है।
भर्ती के लिए न्यूनतम योग्यता एमबीबीएस है। विभाग के अन्य अस्पताल जैसे जिला अस्पताल, सिविल अस्पताल और सीएचसी आदि में नियुक्त होने वाले चिकित्सा अधिकारी एमडी-एमएस होते हैं उन्हें विशेषज्ञ बना दिया जाता है।
एक ही पद में बड़ी विसंगति
जो एमडी-एमएस नहीं होते उनका भी पदोन्नति का सोपान है। उन्हें जिला स्वास्थ्य अधिकारी से लेकर सीएमएचओ तक बनाया जाता है, पर मेडिकल कॉलेजों में चिकित्सा अधिकारियों के लिए ऐसी व्यवस्था नहीं है। पहले लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण और चिकित्सा शिक्षा विभाग अलग-अलग थे। इस वर्ष से दोनों को एक कर दिया गया है। इसके बाद भी एक ही पद में इतनी बड़ी विसंगति है।
अब सरकार चाहे तो अन्य चिकित्सा अधिकारियों की तरह इनकी पदोन्नति का क्रम भी बना सकती है। चिकित्सकीय संवर्ग में विशेषज्ञ बनाया जा सकता है। इसी तरह प्रबंधकीय या प्रशासनिक पदों के लिए अस्पताल उप अधीक्षक के पद बनाकर पदोन्नत किया जा सकता है।