प्रशासन की लापरवाही से अरबों रुपये की शासकीय भूमि पर झुग्गियों का ग्रहण

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 भोपाल। राजधानी को झुग्गी मुक्त बनाने के प्रयास पिछले एक दशक से किए जा रहे हैं। सरकार ने विभिन्न योजनाओं के तहत आवास आवंटित कर दिए लेकिन सफलता नहीं मिल सकी है। दरअसल, आवास मिलने के बाद लोग झुग्गी वाली जगह से कब्जा नहीं छोड़ते हैं। तो वहीं अधिकारी भी शासकीय भूमि को खाली करवाने की कार्रवाई नहीं करते। नतीजतन प्रशासन की लापरवाही के चलते अरबों की शासकीय भूमि झुग्गियों की बलि चढ़ गई है। एक बार फिर मध्य प्रदेश की डॉ. मोहन यादव सरकार ने भोपाल को झुग्गी मुक्त बनाने के निर्देश दिए हैं। इसके बाद से जिला प्रशासन, नगर निगम के अधिकारियों ने योजना बनानी शुरू कर दी है।

हजारों करोड़ की जमीन पर पनपीं झुग्गियां

शहर की लगभग डेढ़ हजार एकड़ जमीन पर 388 से अधिक झुग्गी बस्तियां बसी हैं। यह जमीन जिन क्षेत्रों में स्थित है, वहां पर तीन हजार वर्गफीट या उससे अधिक जमीन के दाम हैं। इस तरह कुल जमीन की कीमत लगभग 19 हजार करोड़ से अधिक होगी। यह सभी झुग्गी बस्ती शहर की प्राइम लोकेशन पर स्थित है। इनमें रोशनपुरा बस्ती, बाणगंगा, भीमनगर, विश्वकर्मा नगर, दुर्गा नगर, बाबा नगर, अर्जुन नगर, पंचशील, नया बसेरा, संजय नगर, गंगा नगर, शबरी नगर, ओम नगर, दामखेड़ा, उड़िया बस्ती, नई बस्ती, मीरा नगर, ईदगाह हिल्स आदि शामिल हैं।

शिफ्ट करने की कवायद नहीं हुई सफल

शहर की नरेला, उत्तर, मध्य, दक्षिण-पश्चिम, गोविंदपुरा और हुजूर विधानसभा क्षेत्र में बसी झुग्गियों को वोट बैंक समझा जाता है। यही कारण है कि जब भी झुग्गियां हटाने की कार्रवाई होती है, तब राजनीतिक दबाव के चलते रोक दिया जाता है। प्रशासनिक अधिकारियों का कहना है कि भोपाल में पिछले वर्षों में हाउसिंग फार ऑल प्रोजेक्ट के तहत झुग्गियां शिफ्ट करने की कवायद शुरू हुई थी। इस दौरान हुए सर्वे में महज 350 से अधिक बस्ती चिह्नित की गईं, इनमें एक लाख से अधिक झुग्गियां बनी मिली थीं।

झुग्गियां खत्म नहीं होने की प्रमुख वजह

– सरकारी आवास परिवार के प्रमुख सदस्य के नाम आवंटित कराने के बाद भी कुछ सदस्य झुग्गी नहीं छोड़ते हैं। यदि झुग्गी तोड़ दी जाती है तो लोग अन्य सरकारी जगह पर कब्जा कर लेते हैं।
– सरकारी आवास 350 वर्गफीट का होता है और झुग्गी 1000 से 1500 वर्गफीट की जमीन पर होती है। इसी वजह से लोग जगह नहीं छोड़ते हैं।
– स्थानीय जनप्रतिनिधि वोट बैंक की राजनीति के तहत झुग्गी विस्थापन का विरोध करते हैं। ऐसे में पट्टा आवंटित आवास किराए पर चलवा दिया जाता है और परिवार वहीं झुग्गी में रहता है।

सफल नहीं हुईं करोड़ों की योजनाएं

– राजीव आवास योजना के तहत ईडब्ल्यूएस आवास बनाने के लिए 700 करोड़ रुपये का बड़ा बजट खर्च किया गया। स्थिति यह है कि भानपुर में इस योजना के अधिकांश आवास खाली पड़े हैं।
– जेएनएनआरयूएम के तहत 800 करोड़ रुपये से शहरी गरीबों के लिए आवास बनाने का काम हुआ। शहर भर में 18 से अधिक जगहों पर आवास बनाने का दावा किया, लेकिन झुग्गी क्षेत्र खत्म नहीं हुए।
– प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत डेढ़ हजार करोड़ रुपये से अधिक राशि से काम किया जा रहा है। फिर भी सफलता नहीं मिल पा रही है।
शहर को झुग्गी मुक्त बनाने के लिए नई झुग्गियों पर प्रमुखता से रोक लगानी चाहिए। संबंधित क्षेत्र के अधिकारी-इंजीनियर की जिम्मेदारी तय करनी चाहिए। झुग्गी बस्ती के रहवासियों को आवास देने के बाद शासकीय भूमि को प्रशासन द्वारा अधिग्रहित करना चाहिए।
– जीपी माली, पूर्व प्रशासनिक अधिकारी
सरकार के निर्देश के अनुसार कार्ययोजना तैयार की जा रही है। जल्द ही शासकीय भूमि को झुग्गी मुक्त कराने का अभियान शुरू होगा। सबसे पहले शहर की बड़ी-बड़ी झुग्गी बस्तियों को चिह्नित किया गया है। इनमें रहने वाले लोगों का सत्यापन किया जाएगा, इसके आधार पर ही आवास दिए जाएंगे।
– कौशलेंद्र विक्रम सिंह, कलेक्टर