1जहाँ बारिश बहुत कम होती है, वहां क्या चिंता पानी निकासी की,
2क्लाउड सीडिंग तो बस बहाना है उससे इतनी बारिश नहीं कराई जा सकती
3 कंक्रीटाइजेशन बड़ी वजह
4 हाई राइज बिल्डिंगों से अर्थ की एक्सिस पर भी धीरे धीरे पड़ता है असर.
[(NBT से :—> ब्राउन टीले हटाने से दुबई में बाढ़, हरे धब्बे बने काल, सऊदी में भी खतरा, जीरोफाइट्स और जीरोकोल्स का बिगड़ा बैलेंस
क्लाउड सीडिंग से कृत्रिम बारिश कराने और क्लाइमेट चेंज की वजह से दुबई जैसे रेगिस्तानी शहरों पर खतरा मंडरा रहा है। एक्सपर्ट इसे कंक्रीटाइजेशन का नतीजा बता रहे हैं, जो डेजर्ट का इकोसिस्टम डैमेज कर रहा है।
साभार: दिनेश मिश्र, NBTऑनलाइन से
दुबई: संयुक्त अरब अमीरात का चकाचौंध वाला शहर दुबई इन दिनों में बाढ़ और बारिश से दुबका पड़ा है। रास्तों पर पानी भरा पड़ा है और गली-मोहल्ले और आलीशान टॉवर सब भीगे पड़े हैं। यहां पर 24 घंटे से ज्यादा लगातार बारिश ने सबका जीना मुहाल कर दिया है। ऐसे रेगिस्तानी इलाके में बाढ़ जैसे हालात पैदा होना पूरी दुनिया के लिए अनोखी बात है। कोई इसे आर्टिफिशियल रेनफॉल का नतीजा मान रहा है, जिसे क्लाउड सीडिंग से अंजाम दिया जाता है तो कुछ एक्सपर्ट इसे क्लाइमेट चेंज का नतीजा मान रहे हैं। हर कोई असमंजस में है।
चलिए सबसे पहले एक्सपर्ट से यह जानते हैं कि ये क्लाउड सीडिंग क्या होती है? और इसके क्या नुकसान हो सकते हैं? मगर, आगे बढ़ने से पहले जरा दुबई की भौगोलिक स्थिति जान लेते हैं-
तटीय हिस्से में स्थित है दुबई, मौसम शुष्क
यूएई (यूनाइटेड अरब अमीरात) के तटीय हिस्से में दुबई शहर स्थित है। आम तौर पर यहां का मौसम खुश्क रहता है। हालांकि, साल भर में यहां औसतन 100 मिलीमीटर से कम बारिश हो पाती है। कभी-कभार ही ऐसे हालात यहां बन पाते हैं कि मूसलाधार बारिश हो सके।
20 साल में इमारतों और टॉवर के चक्कर में जीरोफाइट्स और जीरोकोल का संतुलन बिगड़ा
दिल्ली यूनिवर्सिटी की जानकी देवी मेमोरियल कॉलेज में एनवायरनमेंटल स्टडी डिपार्टमेंट में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. सना रहमान कहती हैं कि दुबई हो या सऊदी अरब इन रेगिस्तानी इलाकों का इको सिस्टम बीते 20 सालों से काफी बिगाड़ दिया गया है। यहां का नेचुरल मौसम शुष्क है, जिसको संतुलित करने के लिए वहां पर कैकटस फैमिली के पेड़-पौधे यानी जीरोफाइट्स और ऊंट-नेवले जैसे सूखे मौसम में रहने वाले जीव यानी जीरोकोल्स रहते हैं। मगर, ऊंची-ऊंची इमारतें बनाने और चकाचौंध मार्केट बनाने व पूरे शहर को कंक्रीट का बनाने के चक्कर में वहां का वातावरण बिगाड़ दिया गया है। ऐसे में वहां पर आर्टिफिशियल बारिश कराई जाती है, जिसे क्लाउड सीडिंग भी कहते हैं। ये इतना ज्यादा हुआ है कि इससे बारिश और बाढ़ के हालात बन जाते हैं।
नेचुरल डेजर्ट इकोसिस्टम के हिसाब से शहर नहीं डिजाइन किए गए
डॉ. सना रहमान के अनुसार, ऐसे एरिड जोन में ज्यादा से ज्यादा 15 सेंटीमीटर ही बारिश होनी चाहिए। मगर, डेवलपमेंट के नाम पर इन देशों में आर्टिफिशियल चीजें ज्यादा हो रही हैं। इससे वहां का नेचुरल क्लाइमेट बिगड़ गया है और भीषण बारिश हो रही है। डेजर्ट का इकोसिस्टम बेहद संवेदनशील होता है। मगर, खाड़ी देशों के कई शहरों को इस इकोसिस्टम के हिसाब से डिजाइन नहीं किया गया है। आमतौर पर डेजर्ट इकोसिस्टम में लोग कम होते हैं। पेड़-पौधे और दूसरे जीव भी खास तरह के होते हैं। इन शहरों में आबादी बहुत ज्यादा हो चुकी है। बायोडायवर्सिटी भी बिगड़ गई है। यूएई में क्लाउड सीडिंग की शुरुआत 90 के दशक में हुई थी।
आखिर इतनी भीषण बारिश की वजह क्या है
रेगिस्तानी इलाकों में सैंड ड्यून्स होते हैं। ये रेत के टीले होते हैं, जहां पर बारिश का पानी जमा होता रहता है। टावर बनाने के नाम पर खुले इलाकों में पाए जाने वाले इन रेत के ब्राउन टीलों को खत्म किया जा रहा है और शहर में ग्रीन पैचेज बनाए जा रहे हैं। इससे भी डेजर्ट का इकोसिस्टम गड़बड़ा रहा है। सऊदी अरब में इन ग्रीन पैचेज को लेकर पर्यावरणविदों ने भी चिंता जताई है। ये ग्रीन पैचेज संयुक्त अरब अमीरात में भी दिखने लगे हैं, जिन्हें कृत्रिम तरीकों से बनाया जा रहा है। इससे रेगिस्तानी इलाकों का संवेदनशील पर्यावरण डैमेज हो रहा है। इन ग्रीन पैचेज के पीछे भी आर्टिफिशियल बारिश ही है। ऐसे में इन ब्राउन टीलों के हटाए जाने से पूरे शहर में पानी भर रहा है।
क्या है क्लाउड सीडिंग या कृत्रिम बारिश जो दुबई के लिए बन रही काल
डॉ. सना रहमान के अनुसार, कृत्रिम तरीके से बादलों को बारिश में बदलने की तकनीक को क्लाउड सीडिंग कहते हैं। यह बारिश कुछ केमिकल के जरिए कराई जाती है। सिल्वर आयोडाइड, पोटैशियम आयोडाइड और ठोस कार्बन डाईऑक्साइड यानी ड्राई आइस जैसे केमिकल्स को हेलिकॉप्टर या प्लेन के जरिए आसमान में बादलों के पास बौछार कराया जाता है। इससे बादल एक जगह संघनित होकर बरसने लगते हैं। अगर बादल काफी ज्यादा हों और इन केमिकल्स की बौछार करा दी जाए तो इससे बादल फट भी सकते हैं, जिससे शहर में अचानक बाढ़ आ सकती है। हालांकि, जलवायु परिवर्तन भी इसकी एक बड़ी वजह हो सकती है।
जब सरकार ने लोगों को गर्मी से राहत दिलाने के लिए कराई थी कृत्रिम बारिश
बात जुलाई, 2021 की है, जब दुबई में तापमान 50 डिग्री तक पहुंच गया और लोग झुलसने लगे तो सरकार ने गर्मी से राहत दिलाने के लिए वहां क्लाउड सीडिंग कराई गई थी। सूखे से निपटने के लिए खाड़ी देशों में अक्सर इस तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है।
रिसर्च में खुलासा, सदी के आखिर तक 30 फीसदी ज्यादा भीषण बारिश
हाल ही में हुई एक स्टडी के अनुसार, धरती जिस रफ्तार से गर्म हो रही है, उसमें इस सदी के आखिर तक यूएई जैसे शुष्क और गर्म देशों में सालाना बारिश में करीब 30 फीसदी तक इजाफा हो सकता है। लंदन के इंपीरियल कॉलेज में क्लाइमेट साइंस डिपार्टमेंट में सीनियर लेक्चरर डॉ. फ्रेडरिक ओट्टो कहते हैं कि अगर इंसान इसी तरह तेल, गैस और कोयला जलाता रहा तो क्लाइमेट लगातार गर्म होता रहेगा। इससे बारिश और ज्यादा भीषण रूप ले लेगी। इससे अपार जन-धन के नुकसान की आशंका बनी रहेगी। दुबई जैसे शहर तो ऐसी भीषण बारिश को झेल भी नहीं पाएंगे। दरअसल, वहां पर इससे निपटने के लिए पर्याप्त ड्रेनज सिस्टम भी नहीं हैं।)]