महाराष्ट्र में अगर शिवसेना और कांग्रेस साथ आ जाते हैं तो यह कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी। दरअसल, कांग्रेस-शिवसेना का रिश्ता काफी पुराना है। महाराष्ट्र की राजनीति में कई बार ऐसे मौके आए जब शिवसेना ने औपचारिक और अनौपचारिक रूप से कांग्रेस के साथ कई बार गठबंधन किया।
राष्ट्रपति चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार को समर्थन देना हो या फिर शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले के खिलाफ अपने उम्मीदवार को मैदान में नहीं उतारना या फिर वैचारिक रूप से अलग मुस्लिम लीग के साथ गठबंधन करना, शिवसेना का हमेशा ही दूसरी पार्टियों की तरफ झुकाव देखा जाता रहा है।
बाल ठाकरे द्वारा 1966 में स्थापित शिवसेना को कई कांग्रेस नेताओं द्वारा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन प्राप्त था। प्रसिद्ध राजनीतिक विश्लेषक सुहास पलशीकर अपने लेख में लिखते हैं कि राज्य के वरिष्ठ कांग्रेस नेता रामराव अदिक शिवसेना की पहली रैली में उपस्थित थे।
1971 में शिवसेना ने कांग्रेस (ओ) के साथ गठबंधन किया। पार्टी ने 1977 में इंदिरा गांधी द्वारा लगाए गए आपातकाल का समर्थन किया और उस साल हुए लोकसभा चुनाव में अपना कोई भी उम्मीदवार मैदान में नहीं उतारा।
1977 में पार्टी ने मेयर चुनाव में कांग्रेस के मुरली देवड़ा का समर्थन किया। शिवसेना के कांग्रेस की तरफ झुकाव को देखते हुए 1963 से 1974 तक राज्य के मुख्यमंत्री रहे वसंतराव नाइक की सेना 'वसंतसेना' कहा जाने लगा। 1978 में जब जनता पार्टी के साथ गठबंधन का प्रयास विफल होने पर शिवसेना ने कांग्रेस (आई) के साथ गठबंधन किया।
कांग्रेस (आई) इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाला गुट था। इस गठबंधन में शिवसेना ने विधानसभा चुनाव के लिए 33 उम्मीदवारों को मैदान में उतारा, लेकिन इंदिरा विरोधी लहर के चलते उसके सभी 33 उम्मीदवारों को हार का सामना करना पड़ा।
शिवसेना का सबसे आश्चर्यचकित करने वाला कदम था मुस्लिम लीग के साथ गठबंधन करना। वरिष्ठ पत्रकार प्रकाश अकोलकर ने शिवसेना पर अपनी पुस्तक 'जय महाराष्ट्र' में लिखा कि 1970 के दशक में मुंबई मेयर चुनाव जीतने के लिए शिवसेना ने मुस्लिम लीग के साथ भी गठबंधन किया।