35 लड़कियां संभाल रही सालों पुरानी रामलीला की परंपरा, राष्ट्रीय स्तर तक है पहचान

0
50

बालोद. आज भले ही शहरी इलाकों और कई गांवों में रामलीला (Ram Leela) की परंपरा (Tradition) खत्म होने के कगार पर आ गई है. लेकिन, बालोद (Balod) जिले का एक गांव ऐसा भी है जहां पर इस विलुप्त (Extinct) होती रामलीला की बागडोर खुद बेटियों (Daughters) ने संभाल रखी हैं. हम बात कर रहे है बालोद जिले के एक छोटे से गांव टेकापार की, जहां गांव की 35 बेटियां रामलीला में अलग-अलग किरदार निभाती हैं. बेटियों के इस जज्बे को न केवल ग्रामीण बल्कि खुद जिला प्रशासन की टीम भी मानती है और इनकी सराहना करते  हैं. हर साल वे इस रामलीला को देखने भी आते हैं. एक छोटे से इलाके में होने वाली इस रामलीला की पहचान अब इस गांव तक सिमित नहीं रही, बल्कि अब राष्ट्रीय स्तर तक इन कलाकारों ने अपनी पहचान बना लगी है. अब दूर दराज से लोग भी इनकी प्रस्तुति को देखने आते हैं.

5 सालों से बेटियां निभा रही हैं ये परंपरा

दरअसल, इस गांव में पहले सालों तक पुरुषों की मंडली ही रामलीला की प्रस्तुति देते थे. लेकिन, 5 साल पहले यहां के पुरुषों की रूचि इस दिशा में घटने लगी. ऐसे में रामलीला के मंचन को लेकर सवाल खड़े होने लगा गया कि आखिर आने वाले दिनों में कौन रामलीला करेगी. फिर धीरे-धीरे ये लुप्त होने लगी. इस लुप्त होती रामलीला को बचाने गांव की बेटियों ने पहल की. बेटियों की इस रुचि को देख गांव वाले भी उन्हें नहीं रोक पाए और रामलीला के पाठ को करने उनकी हौसला अफजाई करने लगे.
फिर बेटियों ने ही रामलीला की कमान संभाली और पिछले पांच सालों से अलग-अलग किरदारों में रामायण का मंचन कर रहे हैं. इन कलाकारों की मानें तो रामलीला के पाठ को लेकर शुरू में इन्हें भी कई दिक्कतें आई. लेकिन, जब ठान ही लिया था कि रामलीला को आगे बढ़ाना है फिर इन्होंने पलटकर नहीं देखा. धीरे-धीरे ये कलाकार अपने किरदारों में पारंगत होते चले गए. अब ये लड़कियां खुद रामायण के सारे किरदार निभा लेती हैं. जिले की कलेक्टर रानू साहू भी बेटियों की इस कला को महिला सशक्तिकरण का एक बड़ा उदाहरण मानती हैं.