महाराष्ट्र के महाभारत में मंगलवार को फिर से एक बार बड़ा मोड़ आया। शनिवार तड़के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेकर सभी को चौंकाने वाले देवेंद्र फडणवीस को साढ़े तीन दिनों में ही पद से इस्तीफा देना पड़ा। रोमांच से भरी किसी फिल्म की तरह शनिवार सुबह आंख खुलते ही पूरा देश चौंक उठा था। शुक्रवार रात जब वे बिस्तर पर सोने गए थे, तो उद्धव ठाकरे के मुख्यमंत्री बनने पर मुहर लग चुकी थी। मगर अगले दिन जब आंख खुली तो फडणवीस के सीएम पद की शपथ लेते हुए तस्वीरों ने सभी को चौंका दिया। रातोंरात क्या हुआ, किसी को कुछ समझ ही नहीं आया। हालांकि फडणवीस ने जितनी तेजी से मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, उतना ही कम समय उन्हें इस्तीफा देने में लगा। मंगलवार सुबह सुप्रीम कोर्ट ने 24 घंटे में शक्ति परीक्षण कराने का आदेश दिया और उसके कुछ ही घंटे बाद देवेंद्र फडणवीस ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर इस्तीफा देने की घोषणा कर दी। हालांकि वह पहले ऐसे मुख्यमंत्री नहीं हैं, जो महज चंद दिनों के सुल्तान रहे।
जगदम्बिका पाल : तीन दिन
1998 में उत्तर प्रदेश में ऐसा ही सियासी ड्रामा देखने को मिला। राज्यपाल रोमेश भंडारी ने कल्याण सिंह को बर्खास्त कर जगदम्बिका पाल 21 फरवरी को सीएम बना दिया। मगर अदालत के हस्तक्षेप के बाद 23 फरवरी को उन्हें इस्तीफा देना पड़ा।
बीएस येदियुरप्पा : तीन दिन और 8 दिन
पिछले साल कर्नाटक का नाटक पूरे देश ने देखा। बीएस येदियुरप्पा ने बिना बहुमत के ही 17 मई को सीएम पद की शपथ ले ली। मगर सदन में शक्ति परीक्षण से पहले ही 19 मई को इस्तीफा दे दिया। भाजपा नेता येदियुरप्पा के लिए यह पहला मौका नहीं था। 2007 में उन्होंने 12 जुलाई को शपथ ली और 17 जुलाई को इस्तीफा दे दिया।
ओम प्रकाश चौटाला : 6 दिन
हरियाणा के दिग्गज नेता ओम प्रकाश चौटाला 1990 में 12 जुलाई को दोबारा सीएम चुने गए। मगर 17 जुलाई को ही उन्हें इस्तीफा देना पड़ा।
नीतीश ने 8 दिन में दिया इस्तीफा
बिहार में भी 19 साल पहले ऐसी स्थिति बनी थी। वर्ष 2000 में नीतीश ने शक्ति परीक्षण से पहले ही इस्तीफा दे दिया था। बहुमत से 8 विधायक कम होने के बावजूद उन्होंने 3 मार्च को शपथ ले ली, लेकिन 10 मार्च को उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। सतीश कुमार बिहार के सबसे युवा मुख्यमंत्री बने। मगर उन्हें सात दिनों में इस्तीफा देना पड़ा। उनका कार्यकाल 27 जनवरी से 2 फरवरी, 1968 तक रहा।
एससी मारक : 12 दिन
वर्ष 1998 में मेघालय के मुख्यमंत्री एससी मारक की सरकार सिर्फ 12 दिन ही चली। 27 फरवरी को उन्होंने शपथ ली और 10 मार्च को इस्तीफा दे दिया। इसके अलावा झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन राज्य का पहला सीएम बनना चाहते थे, लेकिन उनका सपना साकार नहीं हुआ। 2005 में भी उन्हें दस दिनों 2 मार्च से 12 मार्च में इस्तीफा देना पड़ा।