नई दिल्ली। राम मंदिर निर्माण के लिए प्रस्तावित ट्रस्ट के जरिए भारतीयता का संदेश देने की प्रधानमंत्री की इच्छा के लिए सरकार को लंबी माथापच्ची करनी पड़ सकती है। दरअसल, मंदिर आंदोलन की अगुआ विहिप की मांग है कि ट्रस्ट में न तो सरकार का कोई प्रतिनिधित्व हो और न ही वैष्णव, शैव और सगुण ब्रह्म को मानने वालों के अलावा किसी अन्य मतावलंबियों को जगह मिले। पूजा पद्धति को परिवारवाद से बचाने के लिए विहिप ने बद्रीनाथ मॉडल अपनाए जाने की वकालत की है, जहां ब्रह्मचारी रहने तक ही पुजारी पद पर रह सकता है। विहिप के अंतरराष्ट्रीय उपाध्यक्ष और राम मंदिर से जुड़े मुकदमे में अहम भूमिका निभाने वाले चंपत राय ने कहा कि ट्रस्ट पर सरकार से बातचीत नहीं हुई है। हालांकि हमारा मानना है कि उसमें मंत्रियों या अफसरों को शामिल नहीं किया जाना चाहिए। हम नहीं चाहते कि मंदिर निर्माण की निरंतरता में अधिकारियों के तबादले या मंत्रियों के पद से हटने से बाधा आए। अत: सरकार को मंदिर निर्माण से खुद को दूर रखना चाहिए। दरअसल, पीएम की इच्छा है कि वैश्विक स्तर पर बड़ा संदेश देने के लिए ट्रस्ट में भारत की विविधतापूर्ण संस्कृति दिखाने के लिए अन्य धर्मों के प्रतिष्ठित लोगों को भी शामिल किया जाए। इसलिए रविवार को एनएसए डोभाल ने भी इस बारे में धर्मगुरुओं का मन टटोला था।
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