महाराष्ट्र में शिवसेना से अलग होना BJP के लिए घाटे का नहीं फायदे का सौदा

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बीजेपी के लिए भले ही फिलहाल महाराष्ट्र में सत्ता के रास्ते बंद होते नजर आ रहे हों. लेकिन कहावत है कि जब एक रास्ता बंद होता है तो कई राहें खुलती भी हैं. बीजेपी के लिए फिलहाल नतीजे नकारात्मक दिख रहे हों, लेकिन व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखें तो भविष्य में उसके लिए मौजूदा घटनाक्रम फायदा का सौदा भी हो सकती है.
महाराष्ट्र में शिवसेना और बीजेपी के बीच मुख्यमंत्री पद की खींचतान के चलते दोनों का ब्रेकअप हो गया है. इस तरह से दोनों का 30 साल पुराना गठबंधन टूट गया है. बीजेपी के सरकार बनाने से इनकार करने के बाद शिवसेना अपने सियासी समीकरण को दुरुस्त करने में जुट गई है. माना जा रहा है कि शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने कांग्रेस और एनसीपी के साथ मिलकर सरकार बनाने की कवायद शुरू कर दी है.

ऐसे में बीजेपी के लिए भले ही फिलहाल महाराष्ट्र में सत्ता के रास्ते बंद होते नजर आ रहे हों. लेकिन कहावत है कि जब एक रास्ता बंद होता है तो कई राहें खुलती भी हैं. बीजेपी के लिए फिलहाल नतीजे नकारात्मक दिख रहे हों, लेकिन व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखें तो भविष्य में उसके लिए मौजूदा घटनाक्रम फायदा का सौदा भी हो सकती है.

शिवसेना ने ढूंढा कांग्रेस और एनसीपी का साथ

महाराष्ट्र में पंद्रह दिन पहले विधानसभा चुनाव के नतीजे आए तो बीजेपी और शिवसेना को स्पष्ट बहुमत मिला था. लेकिन, मुख्यमंत्री पद पर शिवसेना के अड़ जाने के चलते बीजेपी ने महाराष्ट्र में सरकार बनाने के कदम को पीछे खींचकर शिवसेना को सरकार गठन का मौका दे दिया है. ऐसे में शिवसेना अपने धुरविरोधी कांग्रेस और एनसीपी के साथ मिलकर सरकार बनाने में जुटी है. इससे बीजेपी को लगता है कि कांग्रेस-एनसीपी के साथ शिवसेना का सफर बहुत लंबा नहीं चल सकेगा, क्योंकि विचारधारा के स्तर पर एक दूसरे के धुर-विरोधी रही हैं.

बीजेपी की नजर है महाराष्ट्र पर

बता दें कि केंद्र में नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद बीजेपी का देश में ग्राफ बढ़ा है. भारत के उत्तर से लेकर दक्षिण और पूर्वोत्तर से लेकर पश्चिम के कई राज्यों में बीजेपी अपने दम पर सरकार बनाने में सफल रही है. उत्तर प्रदेश के बाद महाराष्ट्र देश का दूसरा सबसे बड़ा राज्य है, जिस पर बीजेपी की नजर है. 2014 से पहले तक महाराष्ट्र में शिवसेना बड़े भाई तो बीजेपी छोटे भाई की भूमिका में थी.

2014 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में केंद्र में साथ में होते हुए बीजेपी-शिवसेना ने अलग-अलग किस्मत आजमाई थी. बीजेपी और शिवसेना दोनों को अपनी-अपनी राजनीतिक ताकत का एहसास हुआ. इसका नतीजा रहा कि देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार में शिवसेना को जूनियर पार्टनर होने की हैसियत को स्वीकार करने के लिए मजबूर होना पड़ा. बीजेपी 2014 में अकेले दम पर चुनावी मैदान में उतरकर 120 सीटें जीतने में कामयाब रही थी.

शिवसेना का जलवा पड़ा कमजोर

महाराष्ट्र में शिवसेना उग्र हिंदुत्व, मुसलमान विरोध और पाकिस्तान पर हमलावर विचारधारा को लेकर चली थी, बीजेपी उससे ज्यादा उग्र तेवर अपनाकर और नरेंद्र मोदी और अमित शाह जैसे नेताओं को आगे करके शिवसेना के सामने बड़ी लकीर खींच चुकी है. महाराष्ट्र में शिवसेना का बालासाहेब ठाकरे के दिनों वाला जलवा खत्म हो चुका है. इसी का नतीजा था कि 2019 के विधानसभा चुनाव में गठबंधन में बीजेपी को 164 और शिवसेना को 124 सीटों पर किस्मत आजमानी पड़ी.

बीजेपी ने शिवसेना के पाले में डाली गेंद

बीजेपी को महाराष्ट्र की सत्ता में अपने दमपर आने के लिए एक न एक दिन शिवसेना को पीछे छोड़ना था. ऐसे में शिवसेना सीएम की कुर्सी के लिए खुद ही बीजेपी का साथ छोड़कर कांग्रेस और एनसीपी के साथ हाथ मिलने जा रही है. ऐसे में बीजेपी की मन की मुराद पूरी होती नजर आ रही है, क्योंकि शिवसेना के साथ उसका 1989 से गठबंधन चल रहा था. ऐसे में बीजेपी ने यह महायुति खुद न तोड़कर गेंद शिवसेना के पाले में डाल दी थी.

महाराष्ट्र में उग्र हिंदुत्व की अकेली पार्टी बनी बीजेपी

कांग्रेस-एनसीपी के साथ जाने के बाद शिवसेना को अपने उग्र हिंदुत्व की राजनीति और मुस्लिम विरोधी सियासत से भी समझौता करना पड़ेगा. ऐसे में यह फैसला हो गया कि महाराष्ट्र में उग्र हिंदुत्व की प्रतिनिधि पार्टी अब शिवसेना नहीं बल्कि बीजेपी रहेगी. अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला राममंदिर के पक्ष में आ चुका है और मोदी सरकार जम्मू-कश्मीर से धारा 370 को हटाकर बड़ा दांव चल चुकी है, जिससे उसे अपना सियासी आधार बढ़ाने और अपने दम पर सत्ता में आने की उम्मीद नजर आ रही है.

अब बीजेपी के लिए महाराष्ट्र है खुला मैदान

इसी के साथ बीजेपी के लिए अब महाराष्ट्र में मैदान पूरी तरह से खुला है और भविष्य में होने वाले सियासी संग्राम में बीजेपी बनाम ऑल पार्टी के बीच चुनावी संग्राम होगा. ऐसे में बीजेपी को यह उम्मीद है कि वह नरेंद्र मोदी और अमित शाह के नेतृत्व में अकेले 288 सीटों पर चुनावी ताल ठोककर अपने नतीजे को काफी बेहतर कर सकती है. जबकि, शिवसेना भले ही अभी कांग्रेस और एनसीपी के साथ मिलकर सरकार बना लें, लेकिन भविष्य के सियासी रणभूमि में उसके लिए मुश्किलें खड़ी होंगी. अब देखना होगा कि इस नूराकुश्ती में किसे फायदा मिलता है और किसे नुकसान?