मित्रता को नए सिरे से परिभाषित करने की जरूरत 

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इन्दौर । श्रीकृष्ण और सुदामा की मित्रता इसलिए भी इतिहास के स्वर्णिम पृष्ठों में दर्ज है कि उनके बीच कोई स्वार्थ नहीं था। कलयुग में सच्ची मित्रता के रिश्तें बहुत मुश्किल से मिलते हैं। अब मित्रता को नए सिरें से परिभाषित करने की जरूरत है। भागवत धर्म बहुत व्यापक है। हमें सात पीढियों के भरण-पोषण का धन वैभव भी मिल जाए तो संतुष्टि नहीं होती। भागवत का पहला सूत्र यही है कि बहुत कम समय के जीवन में हम संतुष्ट और प्रसन्न रहने का पुरूषार्थ करें। सुख-दुख आते-जाते रहते हैं लेकिन अपनी पूर्ति के बाद भी हम नर में नारायण के दर्शन की अनुभूति करते रहें, धर्मसभा के साथ गृहसभा की जिम्मेदारी भी निभाएं और परमार्थ, सदभाव, अहिंसा एवं सहिष्णुता का विवेकपूर्ण इस्तेमाल करें, यही धर्म का सही स्वरूप होगा।
ये दिव्य विचार हैं कोलकाता के युवा भागवत मनीषी श्रीकृष्णानुरागी पं. शिवम विष्णु पाठक के, जो उन्होंने आज कनाड़िया रोड, वैभव नगर स्थित रिवाज गार्डन पर चल रहे भागवत ज्ञानयज्ञ सप्ताह में कृष्ण-सुदामा मिलन एवं 24 गुरू अवतार की कथा जैसे प्रसंगों की व्याख्या के दौरान व्यक्त किए। कृष्ण-सुदामा मिलन का भावपूर्ण उत्सव भी मनाया गया। इस दौरान ‘अरे द्वारपालों, कन्हैया से कह दो दर पे तुम्हारे सुदामा गरीब आ गया है‘….. जैसे मनोहारी भजनों पर समूचा पांडाल थिरकता रहा। इस अवसर पर सांसद शंकर लालवानी, समाजसेवी गोलू शुक्ला, दीपेंद्रसिंह सोलंकी, आयोजन समिति के अजय मित्तल, सुनील मित्तल वेदप्रकाश अग्रवाल, संदीप अग्रवाल आदि ने व्यासपीठ का पूजन किया। संध्या को आरती में दिल्ली से आए विजय मित्तल एवं जयप्रकाश सिंघल, बैंगलुरू से विजय पोद्दार, प्रवीण पोद्दार एवं विजय गुप्ता, हैदराबाद से राजकुमार तायल, निजामाबाद से सुशील केड़िया, कोचिन से पंकज मित्तल एवं हर्षवर्धन मित्तल, कोयंबटूर से आए अमित मित्तल एवं हर्ष मित्तल सहित सैंकड़ों भक्तों ने भाग लिया। समापन प्रसंग पर पं. पाठक ने सभी भक्तों को सिंगल यूज पोलीथिन से मुक्त रहने और इन्दौर को चौथी बार भी देश के सबसे साफ सुथरे शहर के निर्माण में भागीदार बनने का संकल्प दिलाया। कथा में शनिवार को सुबह 9 बजे यज्ञ-हवन के साथ पूर्णाहुति होगी।
 पं. पाठक ने भागवत धर्म की महत्ता बताते हुए कहा कि भागवत तन के साथ मन से श्रवण करने की कथा है। मन को जगत के बजाय जगदीष में लगाएं। मन को माखन की तरह निर्मल एवं निर्दोष बना लेंगे तो भगवान खुद दौडे़ चले आयेंगे। बर्तन कितना ही सुंदर और कीमती हो, यदि उसमें छिद्र होगा तो उत्तम पदार्थ भी बह जाएगा। जीवन यात्रा में भी ऐसे अनेक छिद्र बनते रहते हैं, जो हमारे सदगुणों को बहा ले जाते हैं। कुसंग से बड़ा कोई छिद्र नहीं होता, लेकिन यदि सत्संग का कवच होगा तो आत्म कल्याण के साधन बचे रहेंगे। साधना-आराधना और उपासना तभी सार्थक होगी, जब उनमें वासना नहीं होगी। भागवत मौत को मोक्ष में बदलने की कालजयी चाबी है। भगवान ने हमेषा बाल-ग्वालों से लेकर समाज के अंतिम छोर पर खडे़ लोगों को गले लगाया। आज के राजा भी अपने आसपास के सुदामाओं को गले लगा लें तो द्वापर युग फिर लौट सकता है।