तीस हजारी कांड : 30 से ज्यादा वकील-पुलिसकर्मी घायल, SIT गठित; अदालतें सोमवार तक बंद

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नई दिल्ली: तीस हजारी कोर्ट (Tis Hazari court) में शनिवार को पुलिस और वकीलों के बीच हुई हिंसक झड़प में 20 से ज्यादा पुलिसकर्मी और एक एडिशनल डीसीपी, दो एसएचओ के अलावा आठ वकील जख्मी हो गए. झगड़े के दौरान एक वकील को पुलिस द्वारा हवा में चलाई गई गोली भी लगी है. गुस्साए वकीलों ने जेल वैन और पुलिस जिप्सी सहित 20 से ज्यादा वाहन आग में झोंक दिए. मामले की जांच के लिए दिल्ली पुलिस आयुक्त ने क्राइम ब्रांच की एक एसआईटी (SIT) गठित कर दी है. एसआईटी का प्रमुख विशेष आयुक्त स्तर के पुलिस अधिकारी को बनाया गया है.

इस बीच, शनिवार के घटनाक्रम पर दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व जस्टिस एस.एन. ढींगरा ने आईएएनएस से बातचीत में 17 फरवरी, 1988 को तत्कालीन डीसीपी किरण बेदी और वकीलों के बीच इसी तीस हजारी अदालत में हुए बबाल को याद किया. शनिवार देर शाम दिल्ली पुलिस से गुस्साए वकीलों ने सोमवार तक दिल्ली की सभी अदालतों में कामकाज बंद रखने का ऐलान कर दिया है.

दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व जस्टिस एसएन ढींगरा ने शनिवार देर शाम आईएएनएस से बातचीत में कहा कि इस घटना ने अब से करीब 31 साल पहले (17 फरवरी, 1988) जब पूर्व आईपीएस किरण बेदी और दिल्ली पुलिस के बीच हुए बबाल की कड़वी यादें ताजी कर दी हैं. उस जमाने में ढींगरा तीस हजारी अदालत में एडिशनल डिस्ट्रिक्ट सेशन जज थे. एस.एन. ढींगरा ने आईएएनएस से कहा, "भारत में ज्यादातर वकील मानते हैं कि जैसे बस वे ही कानून, जज और अदालत हैं. अधिकांश वकील सोचते हैं कि मानो कानून वकीलों से चलता है, न कि जज-अदालत और संविधान से. जबकि हकीकत में ऐसा कुछ नहीं है. सबके मिलने से ही देश और कानून चला करता है."

बकौल ढींगरा, "किरण बेदी से हुए बबाल के बाद वकीलों ने खुद को दमखम वाला साबित करने के लिए अदालतों में ताले डलवा दिए. मगर मेरी अदालत चलती रही और मैं फैसले सुनाता रहा." एसएन ढींगरा ने कहा, "मेरे पास उन दिनों मेट्रोमोनियल अदालत थी. मेरी अदालत में उन दिनों फैसले ही सुनाए जा रहे थे. तभी एक दिन (17 फरवरी 1988 या उसके एक-दो दिन बाद ही, जहां तक मुझे याद आ रहा है) पता चला कि किरण बेदी द्वारा कराए गए लाठीचार्ज के विरोध में वकीलों ने दिल्ली की तमाम अदालतों में ताले डलवा दिए."

आप उन हालातों से कैसे निपटे? ढींगरा ने कहा, "वकील मुझसे भी चाहते थे कि मैं डरकर बाकी तमाम अदालतों की तरह अपनी अदालत में ताला डलवा लूं. जोकि न संभव था और न मेरे न्यायिक सेवा में रहते हुए कभी संभव हो सका." उन्होंने आगे कहा, "मेरी अदालत (मेट्रोमोनियल कोर्ट) खुली रही. मैं अपनी अदालत में रोजाना बैठकर फैसले सुनाता रहा. मेरी अदालत में जब हड़ताली वकील पहुंचे तो मैंने उन्हें दो टूक बता-समझा दिया, 'हड़ताल वकीलों की है अदालतों की नहीं'."

दिन भर की लंबी चुप्पी के बाद देर रात उत्तरी दिल्ली जिले के अतिरिक्त पुलिस उपायुक्त हरेंद्र सिंह ने कहा, "पुलिस ने विपरीत हालातों में भी सब्र और समझ से काम लिया. हमें मौके पर मौजूद कैदियों, पुलिस और वकीलों को सुरक्षित बचाने की चिंता पहले थी. काफी हद तक हम अपने इस प्रयास में कामयाब भी रहे."
देर रात दिल्ली पुलिस मुख्यालय ने भी दिनभर के इस मामले पर अधिकृत बयान जारी कर दिया. बयान में झगड़े की जड़ अदालत के 'लॉकअप' पर तैनात दिल्ली पुलिस की तीसरी वाहिनी के संतरी (हथियारबंद सिपाही) और वकील के बीच कार पार्किं ग को लेकर हुई बहस को प्रमुख वजह बताया गया. दिल्ली पुलिस प्रवक्ता अनिल मित्तल के मुताबिक, "कुछ वकील लॉकअप के सामने कार खड़ी कर रहे थे. संतरी ने कहा कि यहां से कैदी और उनके वाहन आने-जाने में बाधा उत्पन्न होगी. इसी बात पर मौके पर कई और भी वकील इकट्ठे हो गए. सीसीटीवी फूटेज में साफ दिखाई दे रहा है कि कैसे वकील जबरदस्ती लॉकअप में ही घुस पड़े. समझाने के बाद भी वकील, पुलिसकर्मियों से हाथापाई और बदसलूकी करते रहे. वकीलों ने पुलिस वाहनों में आग लगा दी. हालात बेकाबू होते देख और लॉकअप में बंद विचाराधीन कैदियों की सुरक्षा में पुलिस को हवा में गोली चलानी पड़ी."