दो दिवसीय स्टीम कॉन्क्लेव-2019 के प्रारंभिक सत्र में मिन्टो हॉल में साइंस, तकनीकी, इंजीनियरिंग, आर्ट्स एवं गणित (STEAM) को रूचिकर विधि से पढ़ाने के संबंध में विशषज्ञों ने विस्तार से जानकारी दी।
स्टीम की फाउंडर श्रीमती जार्जेट यॉकमेन ने बताया कि स्टीम की शुरूआत वर्ष 2010 में हुई। यह एक आधुनिक पद्धति है जिसमें बच्चे खेल-खेल में गणित एवं विज्ञान को रूचिकर तरीके से सीखते हैं, जैसे कागज की नाव बनाते समय भी गणित और विज्ञान सिखाया जा सकता है। इसी प्रकार संगीत, कला एवं सामाजिक विज्ञान में भी विज्ञान एवं गणित छिपा हुआ है। श्रीमती यॉकमेन ने बताया कि कई देशों में इस पद्धति से बच्चों के लिये विज्ञान और गणित को रूचिकर बनाया। विश्व के आर्थिक एवं शैक्षिक दृष्टि से विकसित अनेक देशों जैसे अमेरिका, रूस, फिनलैंड, साउथ कोरिया, सिंगापुर, चीन एवं ब्रिटेन आदि देशों में भी स्कूली शिक्षा से उच्च शिक्षा के स्तर तक साइंस, टेक्नालॉजी, इंजीनियरिंग एवं मैथ्स के साथ लिबरल आर्ट्स को भी पृथक्-पृथक् विषय के रूप में कम्पार्टमेन्ट्स में न पढाते हुए एकीकृत रूप से पढाया जा रहा है। इस प्रकार के अध्ययन और अध्यापन से शिक्षकों एवं विद्यार्थियों में 21वीं शताब्दी के लिये आवश्यक स्किल जैसे क्रिएटिविटी, कोलोबरेटिव लर्निंग, कम्यूनिकेशन तथा क्रिएटिव थिंकिंग का अधिक विकास होता है, इस कारण ये देश एक लम्बे समय से आर्गेनाइजेशन फॉर इकोनॉमिक कोऑपरेशन एण्ड डेव्लपमेंट (OECD) द्वारा संचालित किये जा रहे प्रोजेक्ट फॉर इन्टरनेशनल स्टूडेंट असेसमेंट (PISA) में उच्च स्थान प्राप्त कर रहे हैं इसीलिये अधिकाधिक देश स्टीम पद्धति को अपना रहे है।
एन्जा कॉलेज केलीफोर्निया, यू.एस.ए. की बाल विकास एवं शिक्षा विषय की प्रोफेसर श्रीमती जयंती तांबे रॉय ने स्टीम पद्धति को पूर्व प्राथमिक स्तर से ही बच्चों के लिये अपनाने पर जोर दिया। वास्तव में स्कूल जाने के पहले ही बच्चा वस्तुओं को पहचानने और उनका निरीक्षण एवं परीक्षण करने लगता है। वह अपने स्तर से प्रयोग एवं अनुसंधान भी करने लगता है, यही वह आयु है जबकि वह विज्ञान को स्वत: ही सीखने लगता है, यदि बाल्यावस्था में ही बच्चे की सीखने की प्रवृत्तियों को अधिक प्रबल बनाया जाये तो विज्ञान और गणित के प्रति उसकी अभिरूचि अपने आप ही बढ़ती है। सीधे स्कूल में ही गणित या विज्ञान को एक विषय के रूप में पढ़ना शुरू करने से अधिकांश बच्चे डर जाते हैं और इन विषयों से दूरी बना लेते हैं। बच्चों के साथ अभिभावकों के अधिक से अधिक समय बिताने एवं उनसे संवाद करने से भी सीखने की प्रवृत्ति बढ़ती है।
श्रीमती अपर्णा अत्रेय ने बताया कि बाल्यकाल एवं विद्यालयीन शिक्षा में कहानी वाचन से विद्यार्थियों में सीखने की प्रवृत्ति बढ़ती है। उन्होंने विद्यालयीन पाठ्यक्रम में कहानी तथा अन्य प्रदर्शन कलाओं को जोड़े जाने की आवश्यकता पर जोर दिया। कॉन्क्लेव के चार सेशन्स में पूर्व प्राथमिक शिक्षा, प्रारंभिक शिक्षा, सेकन्डरी शिक्षा तथा टीचर एजुकेटर सहित 500 प्रतिभागी शामिल हुए।
स्टीम कॉन्क्लेव के समापन सत्र में शंकर महादेवन अकादमी, बैंगलूरू के पाठ्यक्रम समन्वयक श्री कार्तिक रमन द्वारा संगीत तथा शिक्षण अधिगम पर मंच पर प्रस्तुति दी जायेगी तथा मध्यप्रदेश में स्टीम एजुकेशन को लागू करने संबंध में पेनल डिस्कशन होगा।