भोपाल दवा खरीदी घोटाले (Drug procurement scam) का ये मामला साल 2003 से 2009-10 का है. आरोप है कि स्वास्थ्य विभाग (Health Department) के तत्कालीन संचालक से सांठगांठ कर दवा सप्लायर अशोक नंदा ने ज्यादातर आर्डर हासिल कर करोड़ों रुपए के घोटाले को अंजाम दिया. नंदा ने डमी कंपनियों के माध्यम से न केवल मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) बल्कि छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के ठेके (Contracts) भी हासिल किए और डमी कंपनियों के माध्यम से काले पैसे को व्हाइट बनाकर सरकार को करोड़ों का चूना लगाया.
नंदा 'मालवा ड्रग हाउस, मंडीदीप' के नाम से दवाइयों की आपूर्ति करते थे. इसके बाद में नंदा यह काम 'हिंदुस्तान इंस्टीट्यूट ऑफ फार्माकॉन लिमिटेड' के नाम से करने लगे. नंदा पर प्राथमिकी दर्ज हुई है. ईओडब्ल्यू इससे पहले सिंहस्थ, ई टेंडरिंग, एमसीयू घोटाले में भी एफआईआर दर्ज कर चुकी है. जल्द ही दवा घोटाले के केस में भी अशोक नंदा समेत मामले से जुड़े बाकी के लोगों के खिलाफ नोटिस जारी किए जाएंगे.
बताया जा रहा है कि नंदा ने तीन डमी कंपनियों के जरिए 5.63 करोड़ रुपए नेताम इंडस्ट्रीज, 17 करोड़ रुपए नेप्च्यून इंडस्ट्रीज और छत्तीसगढ़ फार्मास्यूटिकल्स के नाम पर भी करोड़ों का कारोबार किया. इन कंपनियों के नाम पर मप्र के साथ छग में व्यापक स्तर पर स्वास्थ्य विभाग में दवा और उपकरणों के सप्लाई आर्डर लिए गए. सूत्रों के अनुसार कई कंपनियों के फर्जी होने की पुष्टि हुई है. इन कंपनियों के जरिए नंबर दो का पैसा घुमाकर लाया गया. ईओडब्ल्यू ने स्वास्थ्य विभाग से भी जानकारी मांगी है कि इन कंपनियों को कितने आर्डर दिए गए और हकीकत में कितनी दवाएं आईं.