बिलासपुर । पंडित सुंदरलाल शर्मा मुक्त विश्वविद्यालय में मंगलवार को महात्मा गांधी के विचारों के संदर्भ में भारतीय सामाजिक विज्ञानों की सीमाओं, संभावनाओं तथा अवसरों की समीक्षा विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रो. गिरीश्वर मिश्र पूर्व कुलपति वर्धा अंतरराष्ट्रीय महात्मा गांधी हिंदी विश्वविद्यालय ने कहा कि सत्य का अर्थ अस्तित्व के होने से है और अहिंसा हमें सर्व से प्रेम करना सिखाती है। जो अपने शत्रु से भी प्रेम करे सही मायने में वो ही अहिंसक है। उन्होंने गांधी के स्वराज को परिभाषित करते हुए कहा कि स्वयं पर नियंत्रण ही सच्चा स्वराज है। व्यक्ति को स्वतंत्रता इस चीज की नहीं कि वह कुछ भी करने लगे। स्वतंत्रता हमें इसके लिए नहीं मिली है कि हम समाज के बहुमूल्य संरचना को बिगाड़ें, बल्कि इसलिए मिली है कि हम अपने पर नियंत्रण रख स्वयं को, समाज को और देश को कितना अच्छा बना सकते हैं।
कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि प्रो. अनिल दत्त शर्मा ने कहा कि ये जानना जरूरी है कि गांधी कौन थे। जवाब सरल है गांधी वो जो सृजनात्मक, अग्रसोची और क्रियाशील हो। उन्होंने गांधी की अहिंसा और जैन धर्म के अहिंसा की व्याख्या करते हुए कहा कि दोनों सिद्धांत में अंतर है। गांधी का दर्शन शास्त्रीय व सत्य, अहिंसा, सदाचार के सिद्धांत पर हैं। वेद, उपनिषद, महाभारत, रामायण व गीता पढ़ें बिना गांधी को नहीं समझा जा सकता। गांधी सरल है लेकिन इसके सिद्धांत और परिणाम कठिन हैं। राजनीति, सामाजिक व आर्थिक रूप से सत्य का आग्रह ही सत्याग्रह है। इस अवसर पर कुलपति वंश गोपाल सिंह ने कहा कि गांधी के विचारों को आज के संदर्भ में कैसे प्रासंगिक बनाएं, इस बात पर बल देने की जरूरत है। गांधी सिर्फ स्वतंत्रता नायक ही नहीं युग पुरुष थे, इस नजरिए से उनता चिंतन जरूरी है। धन्यवाद ज्ञापन राष्ट्रीय-संगोष्टी की संयोजिका डॉ. अनिता सिंह ने किया व इस अवसर पर बड़ी संख्या में प्रदेश के गांधी चिंतक व शोधार्थी उपस्थित थे।