बैतूल.दशहरा (Dussehra 2019 )यानि रावण दहन. लेकिन बैतूल (BETUL)का आदिवासी समाज रावण दहन का विरोध करता है. इसकी वजह भी खास है. बैतूल के आदिवासी खुद को रावण (Rawan) का वंशज मानते हैं. यहां के छतरपुर गांव में तो रावण का एक मंदिर(temple) भी है जिसे रावनवाड़ी (rawanwadi)कहते हैं. रावनवाड़ी में हर साल मेला लगता है जिसमें हज़ारों आदिवासी अपने आराध्य रावण की पूजा अर्चना करते हैं.
पहाड़ी पर रावनवाड़ी-बैतूल में घोड़ाडोंगरी ब्लॉक के छतरपुर गांव के पास लगभग 2 हज़ार फ़ीट ऊंची पहाड़ी है. इस पहाड़ी पर रावण का मंदिर है. जिसे स्थानीय आदिवासी रावनवाड़ी कहते हैं. रावण के प्रति आदिवासियों की अगाध श्रद्धा है. हर साल यहां दशहरे के बाद मेला लगता है जिसमे आदिवासी अपने आराध्य रावण की पूजा अर्चना करते हैं. वो जुलूस की शक्ल में नाचते-गाते आते हैं और अपनी मन्नत मानते हैं.
रावण की सेना
रावण के इस मंदिर में रावण की प्रतिमा के साथ धातु से बने सैनिकों की भी प्रतिमाएं हैं जिसे रावण की सेना माना जाता है. इसके अलावा आदिवासी क्षेत्रों में रावण के पुत्र मेघनाद की भी पूजा होती है. जिसे आदिवासी अपना राजा मानते हैं. आदिवासियों के मुताबिक सदियों से रावण की पूजा करना उनके लिए एक खास परंपरा रही है.
रावण दहन का विरोध
रावण के प्रति गहरी आस्था के कारण ही पिछले कई वर्षों से स्थानीय आदिवासी समुदाय से जुड़े संगठन दशहरे पर रावण दहन का विरोध करने लगे हैं. इनके मुताबिक वो जिस रावण के वंशज हैं उस रावण का दहन उनकी आस्था को ठेस पहुंचाता है.