हाईटेक जमाने में आजकल बच्चे भी इंटरनेट पर सक्रिय रहते है। इस दौरान कब वे साइबर बुलीइंग के खतरनाक रूप से शिकार हो जाते हैं पता ही नहीं चलता। बुलीइंग का मतलब तंग करना है। इतना तंग करना कि पीड़ित का मानिसक संतुलन बिगड़ जाए। बुलीइंग पीड़ित को मानसिक, इमोशनल और दिमागी रूप से प्रभावित करती है। बुलीइंग जब इंटरनेट के जरिए होता है तो इसे साइबर बुलीइंग कहते हैं।दिल्ली के 17 प्रतिशत बच्चे इसका शिकार पाए गए हैं। एक अध्ययन में पता चला है कि यह बुलीइंग केवल ऑनलाइन नहीं रही है। इसके तहत एक स्कूल की एक ही क्लास के 174 बच्चों को शामिल किया था। यह स्कूल भले ही सरकारी था, लेकिन इंग्लिश मीडियम का था। बच्चे मिडल क्लास के थे। 174 स्कूली बच्चों में 121 लड़के और बाकी लड़कियां थीं।
अध्ययन में एक स्कूल को शामिल किया गया था। इसमें 8वीं क्लास के 174 बच्चों को रखा गया। उनकी उम्र 11 से 15 साल के बीच थी। हैरानी की बात है कि 70 प्रतिशत बच्चों को साइबर बुलीइंग के बारे में पता था। 17 प्रतिशत बच्चे बुलीइंग के शिकार थे। 7 प्रतिशत बच्चों ने माना कि वे दूसरों की बुलीइंग कर चुके हैं। अध्ययन में पाया गया कि 15 प्रतिशत बच्चे शारीरिक तौर पर भी बुलीइंग के शिकार हो रहे हैं। इसमें मारपीट की धमकी देकर डराया गया था।
अभिभावक रहें सतर्क
रिसर्च करने वाले डॉक्टर का कहना है कि बच्चे को अब स्मार्ट फोन और इंटरनेट के उपयोग से रोक पाना तो मुश्किल है, लेकिन अभिभावकों की भूमिका जरुर बढ़ गयी है। उन्हें अपने बच्चों के व्यवहार पर नजर रखनी होगी। उन्हें बच्चे पर नजर रखनी होगी कि उनकी नींद कैसी है। खानपान में दिलचस्पी, चिड़चिड़ापन, रिश्तेदारों से मिलने से कतराना और अकेले रहने के लक्षण किसी प्रकार के तनाव की वजह हो सकते हैं। शिक्षकों को भी देखना चाहिए कि बच्चों का व्यवहार अचानक तो नहीं बदल रहा।