बता दें, केंद्र सरकार ने देश में 150 जिले चिह्नित किए थे। इनमें से मध्य प्रदेश के 27 जिले शामिल थे, जहां जंगल में आग लगने की घटनाएं अधिक होती हैं। आग की घटनाओं को रोकने के लिए मध्य प्रदेश सरकार को 12.50 करोड़ रुपये का बजट भी उपलब्ध कराया गया। राज्य सरकार ने इस वर्ष के लिए 80 करोड़ रुपये मांगे थे। हालांकि केंद्र सरकार ने 19 करोड़ रुपये स्वीकृत किए। बता दें, मध्य प्रदेश में तीन साल में आग लगने की 30,901 घटनाएं हुईं। इसमें सबसे कम वर्ष 2023 में महज 24 घटनाएं ही हुईं।
मप्र और उत्तराखंड का कराया था अध्ययन
नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी (एनडीएमए) और पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओइएफसीसी) भारत सरकार ने मई 2023 में मध्य प्रदेश और उत्तराखंड का अध्ययन कराया था। इसी के तहत सभी राज्यों के लिए नेशनल प्रोग्राम ऑन फॉरेस्ट फायर मैनेजमेंट इन इंडिया (एनपीएफएफएम) जारी किया गया है।
अध्ययन में यह बात सामने आई कि आदिवासी समुदाय बीज, शहद और अन्य गैर-लकड़ी वन उत्पाद संग्रह के लिए जंगल के फर्श को साफ करने, पत्तियों के नए प्रवाह को बढ़ावा देने या मधुमक्खियों को भगाने के लिए व्यापक रूप से जंगल में आग लगाते हैं। इसके अलावा खेती के लिए भी सपाट मैदान बनाने के लिए भी जंगल में आग लगाई जाती है। यह माना गया कि जंगल में आग प्राकृतिक और मानवजनित दोनों कारणों से लगती है।
ऐसे किया नियंत्रण
सामुदायिक सहभागिता, साझा जिम्मेदारी और जवाबदेही, उन्नत वन अग्नि विज्ञान और प्रौद्योगिकियों का समावेश, क्षमता विकास और निगरानी के माध्यम से आग पर नियंत्रण पाया गया। वनों के समीप निवासरत वनवासी और अन्य ग्रामीणों को जागरूक करने का कार्य किया गया।
ग्रामीणों द्वारा खेतों में आग लगाई जाती है तो वन अमला इसकी निगरानी करता है। आग लगने वाले संभावित वन क्षेत्रों में वन अमला तैनात किया जाता है। वन अमले के मोबाइल फोन पर वन अग्नि नियंत्रण के लिए बनाया गया एप डाउनलोड करवाकर सैटेलाइट इमेज की मदद से शीघ्र आग लगने वाले स्थल पर पहुंचा जा रहा है।
लोगों की सहभागिता से जंगल में आग लगने की घटनाओं को रोका गया है। पिछले वर्षों की तुलना में जंगल की आग में 75 प्रतिशत तक कमी आई है। क्विक रिस्पांस का समय घटकर एक घंटे से भी कम हो गया है। भारत सरकार ने हमारे इस प्रयास को सराहा है। इस बार हमने भारत सरकार से 80 करोड़ रुपये मांगे हैं। जिससे और बेहतर तरीके से समय रहते आग पर नियंत्रण पाया जा सके।
– दिलीप कुमार, पीसीसीएफ (प्रोटेक्शन), मध्य प्रदेश वन