छिंदवाड़ा मॉडल से ऊपर नहीं उठ पाना बना कमल नाथ की मप्र की राजनीति में पतन का कारण

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भोपाल : मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ का छिंदवाड़ा मॉडल से ऊपर नहीं उठ पाना ही राज्य की राजनीति में विफलता का कारण बना। देश की राजनीति में कांग्रेस नेता कमल नाथ ने 40 वर्ष तक अपना सिक्का जरूर चलाया लेकिन मध्य प्रदेश की राजनीति में पदार्पण के साथ ही वह असफल होते चले गए। यह सवाल छिंदवाड़ा जिले की अमरवाड़ा विधानसभा सीट पर उपचुनाव के दौरान फिर खड़ा होने लगा है।दरअसल, कमल नाथ ने हमेशा छिंदवाड़ा के विकास मॉडल को सर्वोपरि बताया और वह इससे ऊपर नहीं उठ पाए। यही वजह है कि वह मध्य प्रदेश में वर्ष 2018 में कांग्रेस सरकार बनने पर भी पांच वर्ष का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए और वर्ष 2023 में भी सरकार बनाने का आत्मविश्वास तो दिखाते रहे लेकिन चुनाव आते-आते आपसी झगड़ों के चलते कांग्रेस प्रदेश में बुरी तरह हार गई।

कमल नाथ के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न अमरवाड़ा उपचुनाव

लोकसभा चुनाव में भी छिंदवाड़ा में उनकी जमीन खिसकने का यही कारण रहा। इन दिनों अमरवाड़ा विधानसभा सीट का उपचुनाव कमल नाथ के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न भी है, क्योंकि संसदीय क्षेत्र की सभी विधानसभा सीटें कांग्रेस ने पिछले दो चुनाव में जीतीं पर लोकसभा चुनाव में सभी सीटों पर वह हार गई। अब उनके लिए दमखम दिखाकर वापसी का एकमात्र जरिया उपचुनाव ही बचा है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि कमल नाथ ने समय के साथ स्वयं और कांग्रेस संगठन में बदलाव नहीं किया, जो उनके पराभव का कारण बना।

कांग्रेस में भी हाशिए पर कमल नाथ

मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता कमल नाथ को लगातार दो हार के बाद चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। इससे उनका राजनीतिक भविष्य भी डगमगा रहा है। पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा था। इसके बाद पार्टी ने कमलनाथ को मध्य प्रदेश प्रदेश अध्यक्ष के पद से हटा दिया था।

इस चुनाव में कमलनाथ का सियासी गढ़ कहा जाने वाला छिंदवाड़ा भी दूर चला गया। अब उनके ही क्षेत्र में हो रहे अमरवाड़ा उपचुनाव में भी कमल नाथ की परीक्षा होनी है। इन सियासी पराजयों ने मध्य प्रदेश में कांग्रेस पर कमल नाथ के नियंत्रण को कमजोर कर दिया है। कमलनाथ के खेमे से कई नेता बीजेपी में शामिल हो गए।

कमल नाथ की कार्पोरेट शैली, बड़े राज्य में सफल नहीं हो सकती

कमल नाथ की विफलता के दो बड़े कारण हैं। पहला उनका न तो समाज से जुड़ाव कभी रहा है और न ही कार्यकर्ताओं से सीधा संवाद। जबकि, चाहे अर्जुन सिंह, श्यामाचरण शुक्ल, दिग्विजय सिंह, सुंदरलाल पटवा, कैलाश जोशी या फिर शिवराज सिंह चौहान… प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे ये सभी दिग्गज नेता लोगों से घुलते-मिलते थे। कार्यकर्ताओं को नाम से जानते थे। सुख-दुख में शामिल होते थे।

वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक विजय दत्त श्रीधर का मानना है कि, कमल नाथ ने इसके विपरीत कार्पोरेट शैली अपनाई, जो छोटी जगह तो चल सकती है पर मध्य प्रदेश जैसे बड़े राज्य में कभी सफल नहीं हो सकती। छिंदवाड़ा में अपनी पसंद के कलेक्टर, पुलिस अधीक्षक समेत अन्य अधिकारियों को पदस्थ कराना माडल मान लिया गया, जब ऐसा होता ही नहीं है। –

छिंदवाड़ा प्रेम के कारण लोगों में पैदा हुई कांग्रेस के प्रति प्रतिकूल भावना

छिंदवाड़ा मॉडल तब तक प्रासंगिक था, जब तक कमल नाथ मुख्यमंत्री नहीं बने थे। उन्हें सरकार में पर्याप्त समय भी मिला। एक सीएम के रूप में जब वह छिंदवाड़ा तक सीमित रहे तो बाकी मध्य प्रदेश में इसका संदेश गलत गया। मप्र की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि थोड़ी दूरी पर बोली भाषा और खानपान सब बदल जाता है, कमल नाथ के छिंदवाड़ा प्रेम के कारण लोगों में कांग्रेस के प्रति प्रतिकूल भावना पैदा हुई।

वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक रशीद किदवई का मानना है कि, सफल राजनेता नरेन्द्र मोदी या शिवराज सिंह चौहान की तरह होते हैं। मोदी ने 2014 के बाद कभी गुजरात मॉडल का जिक्र नहीं किया। शिवराज ने बुधनी में काफी काम किया लेकिन वह बाहर इसकी चर्चा भी नहीं करते हैं। कमल नाथ को आज की बात करना चाहिए थी लेकिन वह छिंदवाड़ा से उबर नहीं पाए। यही कारण है कि कमल नाथ के साथ कांग्रेस को भी भारी नुकसान हुआ।