नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्य (सरकार) का काम करने वाले निजी लोगों द्वारा नागरिकों के जीवन एवं निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार जैसे मौलिक अधिकारों के हनन का निराकरण नहीं किया जाता है तो संविधान अपना महत्व खो देगा। संविधान के तहत जीवन, समानता का अधिकार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जैसे मौलिक अधिकार राज्य और उसकी मशीनरी तथा राज्य का काम करने वाले निजी पक्ष के खिलाफ लागू करने योग्य हैं, लेकिन वे यह दलील दे रहे हैं कि नागरिकों के ऐसे अधिकारों के उल्लंघन के लिए उन्हें जवाबदेह नहीं ठहराया जा सकता है।उत्तर प्रदेश के पूर्व मंत्री आजम खान की ओर से बलात्कार के मामले में की गई एक विवादित टिप्पणी से संबंधित मामले से उठे मुद्दे पर सुनवाई के दौरान जस्टिस अरुण मिश्रा की अगुवाई वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने कहा, सरकार का काम करने वाले निजी पक्षों द्वारा (नागरिकों के) मौलिक अधिकारों के हनन का कोई समाधान नहीं किया गया तो संविधान अपना महत्व खो देगा। न्याय मित्र के रूप में संविधान पीठ की सहायता करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने कहा कि सार्वजनिक कार्य करने के लिए आपका सरकारी कर्मचारी और सरकारी संस्था अनिवार्य रूप से होने का विचार दशकों पहले समाप्त हो चुका है कयोंकि निजी व्यक्ति और कंपनियां भी अब उन कार्यों को कर रही हैं, जिन्हें पहले सरकार का काम समझा जाता था।
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