राम की प्राकट्य स्थली पर न्यायिक निर्णय के बाद विवेकी जनता को अपना दायित्व समझना चाहिए 

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इन्दौर । योग साधना में यम नियम पहली सीढ़ी है लेकिन वर्तमान मोबाइल-इंटरनेट और उपन्यास प्रधान युग में अमर्यादित मनोरंजन से यम नियम की साधना हो रही है जो चिंता और दुख का विषय है। केवल आसन, प्राणायाम और ध्यान को ही सामाजिक स्तर पर महत्व दिया जा रहा है, इसके कारण योग एक व्याया मात्र बनकर रह गया है। भगवान राम की प्राकट्य स्थली के बारे में न्यायिक निर्णय से यदि नेता स्तब्ध या दिग्भ्रमित हो जाते हैं तो विवेकी जनता को अपना दायित्व समझना चाहिए।
धर्मसभा-विद्वत संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष वेदमूर्ति ब्रम्हचारी निरंजनानंद श्री धनंजय शास्त्री वैद्य ने आज साऊथ तुकोगंज स्थित नाथ मंदिर पर चल रहे मराठी भागवत सप्ताह के अंतर्गत प्रातःकालीन सत्संग में संहिता वाचन के बाद साधकों के प्रश्नों के उत्तर देते हुए अष्टांग योग की व्याख्या के दौरान उक्त विचार व्यक्त किए। एक अन्य प्रश्न के उत्तर में उन्होंने यदुवंश के संहार से जुड़ी अनेक बातें बताई। संध्या को भागवत ज्ञानयज्ञ में समुद्र मंथन, भगवान परशुराम, जड़भरत के साथ ही राम एवं कृष्ण जन्म प्रसंगों की भी प्रभावी व्याख्या की। शास्त्रीजी ने कहा कि भगवान राम की प्राकट्य स्थली के बारे में न्यायिक निर्णय से यदि नेता स्तब्ध या दिग्भ्रमित हो जाते हैं तो विवेकी जनता को अपना दायित्व समझना चाहिए। इस अवसर पर समुद्र मंथन एवं कृष्ण जन्म का जीवंत उत्सव भी सुंदर झांकियों के बीच मनाया गया। कथा शुभारंभ के पूर्व नासिक से पधारी माधवनाथ मंदिर की व्यवस्थापक माई जोशी एवं श्रीमती जयश्री कुलकर्णी ने शास्त्रीजी का स्वागत किया।  
नाथ मंदिर पर शास्त्रीजी प्रतिदिन सांय 5 से 8 बजे तक भागवत कथामृत की वर्षा कर रहे हैं। प्रातःकालीन सत्र में सुबह 8 से 10 बजे तक माधवनाथ महाराज के अनुयायियों द्वारा माधवनाथ दीप-प्रकाशग्रंथ का सात दिवसीय पारायण भी हो रहा है। कथा के पांचवें दिन शनिवार 9 नवंबर को तुलसी विवाह का दिव्य आयोजन भी होगा। मंगलवार 12 नवंबर को सुबह सत्यनारायण कथा, होम हवन एवं महाप्रसादी के साथ कार्यक्रम का समापन होगा।