गीता, गौमाता और गंगा का संरक्षण करें : पं. पाठक 

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इन्दौर । सृष्टि में ठाकुरजी की मर्जी के बिना पत्ता भी नहीं हिलता। हमारे जीवन में जो कुछ भी घटता है, उसके दूरगामी नतीजे सुखद ही होते हैं लेकिन हम तात्कालिक हालातों में उन्हें समझ नहीं पाते। परमात्मा की हर लीला आनंद, परमानंद और दिव्यानंद से अभिप्रेत होती है। यह मान कर चलंे कि हम सबके जीवन में आनंद की वर्षा की हर बूंद भगवान की कृपा का फल है और दुखों का सैलाब यदि आता है तो उसके लिए हम खुद एवं हमारे कर्म जिम्मेदार हैं। परमात्मा की डिक्षनरी में दुख पीडा और शोक जैसे शब्द हैं ही नहीं। भगवान की लीलाएं मन को चुराने वाली हैं। गोविंद की कृपा चाहिए तो गीता, गौमाता और गंगा का संरक्षण करना होगा।
ये दिव्य विचार हैं कोलकाता के युवा भागवत मनीषी श्रीकृष्णानुरागी पं. शिवम विष्णु पाठक के, जो उन्होंने आज कनाड़िया रोड, वैभव नगर स्थित रिवाज गार्डन पर चल रहे भागवत ज्ञानयज्ञ सप्ताह में भगवान की बाल लीलाओं एवं गोवर्धन पूजन जैसे प्रसंगों की व्याख्या के दौरान व्यक्त किए। इस अवसर पर विधायक महेंद्र हार्डिया, आयोजन समिति की ओर से सतीशकुमार मित्तल, सुभाष गोयल बजरंग, वेदप्रकाश अग्रवाल, सुनील मित्तल, संदीप अग्रवाल आदि ने व्यासपीठ का पूजन किया। उत्सवों में हैदराबाद से आए राजकुमार तायल, निजामाबाद से सुशील केड़िया, दिल्ली से विजय मित्तल एवं जयप्रकाश सिंघल, कोचिन से पंकज मित्तल एवं हर्षवर्धन मित्तल, कोयंबटूर से अमित मित्तल एवं हर्ष मित्तल आदि ने भी भाग लिया। कथा में गुरूवार 7 नवंबर को दोपहर 3 से सांय 7 बजे तक रास लीला तथा रूक्मणी विवाह के जीवंत प्रसंग मनाए जाएंगे।
भगवान की लीलाओं की व्याख्या करते हुए पं. पाठक ने कहा कि हमारी एक-एक क्रिया भगवान की नजर में रहती है लेकिन हम भगवान की लीलाओं को नहीं समझ सकते। लीलाओं को निहारना और समझना अलग-अलग बात है। लीलाएं चूंकि आलौकिक होती है, इसलिए उन्हें समझने के लिए दृष्टि चाहिए। दिव्य दृष्टि किसी डॉक्टर से नहीं, सत्संग में ही मिलेगी। कथा स्थल भी किसी दिव्य औषधालय से कम नहीं है जहां मन की व्याधियों का उपचार होता है। यहां आने पर साईड इफेक्ट का भी कोई खतरा नहीं है। जितने धार्मिक अनुष्ठान होते हैं, वे सब मन के शोधन एवं परिमार्जन के लिए ही होते हैं। तन के रोरों का उपचार डॉक्टर करते हैं और मन की बीमारियों का इलाज सत्संग पांडाल में होता है। भगवान की लीलाएं अदभुत, अनुपम और अद्वितीय हैं।