भारत भूमि के रोम रोम में राम, कण कण में कृष्ण : पं. पाठक 

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इन्दौर । हमारे कर्मों का फल हमें ही भुगतना है, पाप और पुण्य हस्तांतरणीय नहीं है। जैसे कर्म होंगे, फल भी वैसे ही मिलेंगे। संगे-सम्बंधी भी साथ नहीं देते। न हम कर्म से बच सकते हैं, न उसके फल से। हमें जो कुछ मिल रहा है वह भगवान की कृपा और करूणा का ही नतीजा है, इसलिए कर्मों की श्रेष्ठता को सबसे ऊपर रखा गया है। राम और कृष्ण के बिना न तो हमारी संस्कृति परिपूर्ण हो सकती है और न ही इस भारत भूमि की कल्पना। भारत भूमि के रोम रोम में राम और कण कण में कृष्ण रचे बसे हैं।
ये दिव्य विचार हैं कोलकाता के युवा भागवत मनीषी श्रीकृष्णानुरागी पं. शिवम विष्णु पाठक के, जो उन्होंने आज कनाड़िया रोड, वैभव नगर स्थित रिवाज गार्डन पर चल रहे भागवत ज्ञानयज्ञ सप्ताह में राम जन्म, कृष्ण जन्म एवं अन्य प्रसंगों की व्याख्या के दौरान व्यक्त किए। कृष्ण जन्मोत्सव के लिए कथा स्थल को विशेष रूप से श्रृंगारित किया गया था। जैसे ही वसुदेव और देवकी नन्हे कृष्ण को फूलों से सज्जित टोकनी में ले कर कथा स्थल पहुंचे, भक्तों ने भावविभोर हो कर पुष्प वर्षा की और भगवान के जयघोष से आसमान गुंजाये रखा। नंद घर आनंद भयो भजन पर तो समूचा पांडाल थिरक उठा। इस अवसर पर हैदराबाद से आए राजकुमार तायल, निजामाबाद से सुशील केड़िया, दिल्ली से विजय मित्तल एवं जयप्रकाश सिंघल, कोचिन से पंकज मित्तल एवं हर्षवर्धन मित्तल, कोयंबटूर से अमित मित्तल एवं हर्ष मित्तल आदि ने भी उत्सव को आत्मसात किया। इसी तरह राम जन्म के समय भी भक्तों का उत्साह देखने लायक था।  कथा में प्रतिदिन मनोहारी भजनों का जादू भी भक्तों को आल्हादित कर रहा है। प्रारंभ में आयोजन समिति की ओर से सतीशकुमार मित्तल, सुभाष गोयल बजरंग, वेदप्रकाश अग्रवाल, सुनील मित्तल, संदीप अग्रवाल आदि ने व्यासपीठ का पूजन किया। कथा में बुधवार 6 नवंबर को दोपहर 3 से सांय 7 बजे तक बाललीला एवं गोवर्धन पूजा के जीवंत प्रसंग मनाए जाएंगे।
विद्वान वक्ता ने गजेंद्र मोक्ष प्रसंग की भी सुंदर व्याख्या की। उन्होंने कहा कि गजेंद्र नाम का हाथी अहंकार के चलते भगवान को भी छोटा समझने लगा था लेकिन भगवान ने उसे भी मोक्ष प्रदान किया। समुद्र मंथन का प्रसंग भी देवताओं के अहंकार से जुड़ा हुआ है। मनुष्यों से ज्यादा अहंकार देवताओं में होता है। वे भी दुकानदारों की तरह अपने पुराने ग्राहकों के छूटने और टूटने का अहं भाव रखते हैं। मनुष्यों की तरह देवता भी अपने अहं के कारण एक जगह इकट्ठा नहीं होते। आज हमारा हिंदू समाज भी इसी तरह धर्म, पंथ, संप्रदाय और विचारधाराओं में बंटा हुआ है। ये सभी देवताओं की तरह तभी इकट्ठा होते हैं, जब पराजित होने लगते हैं। एक बार अपनी ताकत छिन जाने के बाद खोए हुए पुरूषार्थ को फिर से प्राप्त करना बड़ा मुश्किल होता है। पुरूषार्थ करना छोड़ देंगे तो फिर से खड़े नहीं हो पाएंगे। राम और कृष्ण जन्म प्रसंग पर उन्होंने कहा कि भारत के कण-कण में भगवान विराजित है। भगवान राम और कृष्ण का अवतरण भारत भूमि के लिए गौरव और सौभाग्य का विषय है। राम और कृष्ण के बिना भारत परिपूर्ण नहीं हो सकता। राम भारतीय समाज के आराध्य देवता हैं तो कृष्ण भी हमारी संस्कृति की जड़ों के आधार स्तंभ हैं।