कानफोडू होता जा रहा है राजधानी में शोर, कई क्षेत्रों में मानकों से अधिक पाया गया स्तर

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नई दिल्ली
राजधानी की आबोहवा प्रदूषित होती जा रही है। बढ़ती आबादी और वाहनों के दबाव के कारण यहां शोर भी कानफोडू होता जा रहा है। दून में कार्मिशियल क्षेत्र सर्वे चौक हो या साइलेंस जोन घोषित दून अस्पताल चौक या गांधी पार्क यहां ध्वनि प्रदूषण की स्थित मानकों से अधिक पाई गई है।

पर्यावरण संरक्षण एवं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (पीसीबी) इस संबंध में कई बार जिलाधिकारी व परिवहन विभाग को तेज आवाज में बजने वाले लाउडस्पीकरों, डीजे, प्रेशर हार्न सहित ध्वनि प्रदूषण के अन्य कारकों पर अंकुश लगाने के लिए पत्र व सुझाव भेज चुका है, लेकिन आज तक इस दिशा में कोई कार्रवाई नहीं की गई है।

लिहाजा, ध्वनि प्रदूषण साल दर साल बढ़ता जा रहा है। विशेषज्ञों की मानें तो अगर समय रहते इस पर अंकुश नहीं लगाया गया तो स्थिति भयावह हो सकती है।

ध्वनि प्रदूषण के मानकों की अगर बात करें तो इंडस्ट्रीयल क्षेत्र में दिन में ध्वनि की लिमिट 75 डेसिबल, कार्मिशियल में 65 डेसिबल, आवासीय क्षेत्रों में 55 डेसिबल और साइलेंस जोन में 50 डेसिबल से अधिक नहीं होनी चाहिए। पीसीबी की ओर से दून के सात क्षेत्रों में ध्वनि प्रदूषण के आंकड़े एकत्रित किए जाते हैं।

इन आंकड़ों पर ही गौर किया जाए तो आवासीय क्षेत्रों में ही ध्वनि प्रदूषण की स्थिति संतोषजनक पाई गई है, जबकि अन्य क्षेत्रों में यह मानकों से अधिक है। यह आंकड़े सुबह उस समय लिए जाते हैं जब वाहनों का दबाव कम होता है। पीक समय में ध्वनि प्रदूषण के आंकड़े लिए जाएं तो स्थिति और भी भयावह हो सकती है।

हमारे नॉर्मल वार्तालाप की ध्वनि 40 से 50 डेसिबल के बीच होनी चाहिए। हमारे कान 60 से 65 डेसिबल ध्वनि को भी सह पाते हैं, इससे ज्यादा लगातार ध्वनि होने का सीधा असर कानों पर पड़ता है। अगर किसी व्यक्ति को 70 से ज्यादा डेसिबल की ध्वनि लगातार सुनाई देती है तो इससे कान के अंदर मौजूद हेयर सेल्स डैमेज हो जाते हैं। जिससे व्यक्ति बहरा भी हो सकता है। इसके अतिरिक्त चिड़चिड़ापन, हार्ट की बीमारी भी ज्यादा तेज ध्वनि से हो सकती है।    
 – डॉ. पीयूष त्रिपाठी, वरिष्ठ नाक, कान, गला रोग विशेषज्ञ, कोरोनेशन अस्पताल

ध्वनि प्रदूषण के मामले में स्थिति संतोषजनक नहीं कही जा सकती है। ध्वनि प्रदूषण के कारकों पर अंकुश लगाने के लिए समय-समय पर पीसीबी की ओर से सुझाव दिए जाते रहे हैं। सुझावों पर अमल हो तो इसको रोका या कम किया जा सकता है।
– अमित पोखरियाल, जिला प्रदूषण नियंत्रण अधिकारी