‘हाथी’ के उतरते ही तेज दौड़ने लगी ‘साइकल’

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उपचुनाव के नतीजों ने समाजवादी पार्टी की दीपावली को 'हैपी' कर दिया है। बिना बड़े नेता के जमीन पर उतरे एसपी ने न केवल अपनी सीट बचाई, बल्कि बीजेपी-बीएसपी की भी एक-एक सीट छीन ली। 'हाथी' के उतरते ही साइकल को मिली रफ्तार और बीजेपी को दी गई कड़ी चुनौती ने पार्टी के लिए 2022 में एकला चलने की और मजबूत वजह दे दी है।
उपचुनाव के नतीजों में बीएसपी के उतरने के बाद भी एसपी को मिले बेहतर परिणाम ने साफ कर दिया है कि दोनों का साथ आना गलत प्रयोग था। दोनों ही पार्टियों के कोर वोटर जो किसी भी कीमत पर एक-दूसरे को वोट नहीं देना चाहते थे उन्होंने बीजेपी को विकल्प चुना या घर बैठ गए। इस बार यह धर्मसंकट नहीं था। इसका फायदा एसपी को हुआ। यह बात एसपी मुखिया अखिलेश यादव को भी समझ में आ चुकी है, इसलिए वह अब 2022 का चुनाव अकेले लड़ने का ऐलान कर रहे हैं।

मुख्य विपक्ष के ओहदे पर फिर कब्जा
लोकसभा चुनाव में बीएसपी से गठबंधन के बाद भी नतीजों में एसपी पिछड़ गई थी। एसपी से दोगुनी सीटें जीत बीएसपी ने न केवल मुख्य विपक्ष पर दावा ठोंक दिया था, बल्कि एसपी के वोट ट्रांसफर होने के आरोप लगाया था। लेकिन, बीएसपी की मौजूदगी में हुए उपचुनाव में एसपी ने अपने प्रदर्शन से मुख्य विपक्ष की सीट फिर कब्जा ली है। पार्टी जिन 9 सीटों पर चुनाव लड़ी उसमें उसे 22.50% से अधिक वोट मिले हैं। इसमें 3 पर जीत मिली है जबकि 4 सीटों पर वह दूसरे नंबर पर रही है। बीएसपी की जिस जलालपुर सीट को एसपी ने कब्जाया है, 2017 में वह वहां तीसरे नंबर पर थी। घोसी में एसपी समर्थित प्रत्याशी को भी पार्टी कोटे में मान लें तो एसपी का वोट शेयर करीब 24% हो जाता है और हारी हुई 7 सीटों में 5 पर वह दूसरे नंबर पर रही। खास बात यह है कि मध्य प्रदेश के बाद महाराष्ट्र में भी एसपी ने खाता खोला है। पार्टी ने वहां दो सीटें जीती हैं।

माइनॉरिटी वोटरों की एसपी ही पहली पसंद!
एसपी के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि लगातार हार व बीएसपी के गठबंधन से उपजी परिस्थितियों में पार्टी का कोर वोट भी खिसक रहा था। इन नतीजों से वोटरों व कार्यकर्ताओं दोनों का ही भरोसा लौटेगा। खास बात यह है कि अल्पसंख्यक बहुल सीटों में रामपुर में पार्टी को लगभग 50% वोट मिला है। बीएसपी व कांग्रेस मुस्लिम उम्मीदवार उतारने के बाद भी दोनों मिलाकर 5% भी वोट नहीं पा सके। बीएसपी को 2% वोट मिले हैं। आजम खां के खिलाफ राजनीतिक मुकदमों की बाढ़ ने भी वहां अल्पसंख्यकों को एकजुट किया। जीत के साथ ही रामपुर में एसपी का वोट प्रतिशत भी बढ़ा है। घोसी, बलहा में भी एसपी दूसरे नंबर पर रही। गंगोह में भी शानदार टक्कर दी। इसके बाद जैदपुर और जलालपुर में मिली जीत ने साबित कर दिया कि अल्पसंख्यक वोटरों की पहली पसंद आज भी एसपी है। गठबंधन के नाते ही इसका फायदा बीएसपी को मिला था, जिसने उनकी सीट की टैली बेहतर की थी।

नेतृत्व जमीन पर उतरता तो और बेहतर होते नतीजे
पार्टी सूत्रों का कहना है कि अगर नेतृत्व ने जमीन पर पसीना बहाया होता तो पार्टी के हिस्से में कुछ और सीटें आ सकती थीं। घोसी से जिस प्रत्याशी का सिंबल के चलते पर्चा खारिज हुआ वह मात्र 1700 वोटों से ही चुनाव हारा। अगर, यह लापरवाही नहीं होती तो यह नजदीकी लड़ाई एसपी के पक्ष में आ सकती थी। गंगोह में एसपी प्रत्याशी को 57 हजार से अधिक वोट मिले। अगर वहां अखिलेश यादव की रैली हुई होती तो एसपी अपने वोटरों में जिताऊ होने का अधिक भरोसा पैदा कर सकती थी।

एसपी की बढ़ेगी आक्रमकता, दिखेगी सक्रियता
बिना किसी अहम के प्रयास के स्थानीय समीकरण जलालपुर से लेकर जैदपुर तक जिस तरह से एसपी के पक्ष में गए हैं इससे पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं का आत्मविश्वास और मजबूत करेगा। एसपी अधिक आक्रामक व सक्रिय दिखेगी। अखिलेश यादव ने नतीजों के तुरंत बाद मुलायम सिंह यादव का आशीर्वाद लिया। सूत्रों के अनुसार दीपावली बाद अखिलेश पूर्व सांसद भालचंद यादव के निधन पर शोक जताने संतकबीर नगर उनके घर जाएंगे। यह कवायद अपने कोर वोटरों को एकजुट कर फिर से पार्टी का पुराना तेवर लौटाने की है।