5 अगस्त को 45 दिन बाद शेख हसीना दोबारा भारत पहुंचीं। इससे पहले 21 जून को जब वे भारत आई थीं तो PM मोदी ने उन्हें रेड कार्पेट वेलकम दिया था। इस बार की कहानी कुछ अलग है। हसीना भारत आईं तो जरूर, लेकिन PM पद से इस्तीफे के बाद। उस वक्त जब बांग्लादेश के प्रधानमंत्री कार्यालय पर प्रोटेस्ट कर रहे छात्रों का कब्जा है।
हसीना को अपना देश तक छोड़ने के लिए मजबूर करने के पीछे 3 किरदार अहम हैं। जिन्होंने यूनिवर्सिटी कैंपस से आंदोलन शुरू कर 15 साल से सत्ता में बैठी शेख हसीना की सरकार गिरा दी।
नाहिद इस्लाम: बेहोशी की हालत में पुल के नीचे मिला
नाहिद इस्लाम छात्र आंदोलन का सबसे बड़ा चेहरा है। उसने रविवार को बयान दिया था, “आज हमने लाठी उठाई है, अगर लाठी काम नहीं आई तो हम हथियार उठाने के लिए भी तैयार हैं। PM हसीना देश को गृहयुद्ध में धकेलना चाहती हैं। अब शेख हसीना को तय करना है कि वे पद से हटेंगी या पद पर बनी रहने के लिए रक्तपात का सहारा लेंगी।”
नाहिद, ढाका यूनिवर्सिटी का स्टूडेंट है। उसने पुलिस पर आरोप लगाया कि 20 जुलाई की सुबह उसे उठा लिया गया था। हालांकि, पुलिस ने इससे इनकार किया। सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें वर्दी में कुछ लोग नाहिद को गाड़ी में बैठा रहे थे।
नाहिद के गायब होने के 24 घंटे बाद वह एक पुल के नीच बेहोशी की हालत में पाया गया। उसने दावा किया कि उसे तब तक लोहे की रॉड से पीटा गया जब तक कि वह बेहोश नहीं हो गया। 26 जुलाई को डिटेक्टिव ब्रांच ने नाहिद को अस्पताल से इलाज के दौरान दोबारा उठा लिया था। इस बार डिटेक्टिव ब्रांच ने नाहिद और उसके सहयोगी की सुरक्षा का हवाला देते हुए हिरासत में लेने की बात कही।
नाहिद ने दोबारा उठाए जाने से पहले एक अखबार को बताया कि 20 जुलाई को उसे सुबह 2 बजे लगभग 25 से 30 लोग बेवजह बिना बताए जबरन अपने साथ ले गए थे। हसीना की पुलिस की पिटाई से घायल नाहिद के चेहरे ने प्रदर्शनकारियों को भड़का दिया। वे और हिंसक होकर सड़कों पर उतर आए।
आसिफ महमूद: टॉर्चर सहकर भी चुप नहीं बैठा
आसिफ महमूद ढाका यूनिवर्सिटी में लैंग्वेज स्टडीज का छात्र है। वह जून में आरक्षण के खिलाफ शुरू हुए देशव्यापी आंदोलन का हिस्सा बना। 26 जुलाई को डिटेक्टिव ब्रांच की तरफ से हिरासत में लिए लोगों में आसिफ महमूद भी शामिल था। उसे भी बाकी लोगों की तरह इलाज के दौरान अस्पताल से ही हिरासत में लिया गया था। आसिफ की हिरासत के पीछे भी सुरक्षा कारणों का हवाला दिया गया।
27 जुलाई को डिटेक्टिव ब्रांच ने दो और छात्र नेताओं को हिरासत में लिया। इनके नाम सरजिस आलम और हसनत अब्दुल्लाह थे। उन्हें डिटेक्टिव ब्रांच के ऑफिस में रखा गया था। 28 जुलाई को उनके परिवार वालों ने उनसे मिलने की परमिशन मांगी, लेकिन उन्हें मिलने नहीं दिया गया।
पुलिस ने उन्हें 29 जुलाई को छात्रों से मिलने की परमिशन दी, लेकिन इससे पहले नाहिद, आसिफ और उसके साथियों ने एक वीडियो जारी करके विरोध प्रदर्शनों को वापस लेने की बात कही थी। रिपोर्ट्स के मुताबिक पुलिस ने इनसे मारपीट कर जबरन वीडियो बनवाया था। आसिफ को एक इंजेक्शन दिया गया जिससे वह कई दिनों तक बेहोश रहा।
1 अगस्त को छात्रों की गिरफ्तारी के विरोध में हुए प्रदर्शन के बाद उन्हें हिरासत से छोड़ दिया गया। 3 अगस्त को आसिफ ने फेसबुक पर पोस्ट करते हुए छात्रों से घर पर न रहने और नजदीकी प्रदर्शनों में शामिल होने की अपील की।
शेख हसीना के बांग्लादेश छोड़ने के बाद आसिफ महमूद ने फिर एक बार बयान दिया। उसने मीडिया से कहा कि वह देश में मार्शल लॉ यानी सैन्य शासन को स्वीकार नहीं करेंगे।
अबु बकर मजूमदार: कमरे में बंद कर आंदोलन वापस लेने का दबाव बनाया
शेख हसीना को सत्ता से बेदखल करने में अबू बकर ने भी मजूमदार भी है। वह ढाका यूनिवर्सिटी में भूगोल यानी जियोग्राफी डिपार्टमेंट का स्टूडेंट है। द फ्रंट लाइन डिफेंडर के मुताबिक वह सिविल राइट्स और ह्यूमन राइट्स को लेकर भी काम करता है।
5 जून को हाईकोर्ट के आरक्षण पर दिए फैसले के बाद बकर ने अपने दोस्तों के साथ मिलकर स्टूडेंट्स अगेंस्ट डिस्क्रिमिनेशन मूवमेंट की शुरुआत की। उसने “स्वतंत्रता सेनानियों” के रिश्तेदारों को सरकारी नौकरी में आरक्षण दिए जाने का जमकर विरोध किया।
अबू को 19 जुलाई की शाम धानमंडी इलाके से कुछ लोग अपने साथ ले गए थे। जिसके बाद कई दिनों तक उसका कुछ भी पता नहीं चला। दो दिन बाद उसे सड़क किनारे जहां से उठाया गया था, वहीं छोड़ दिया गया। बाद में अबू ने मीडिया को बताया कि पुलिस उसे एक कमरे में बंद कर आंदोलन वापस लेने का दबाव बना रही थी।
जब उसने मना कर दिया तो उसके साथ मारपीट की गई। घायल अबू मजूमदार को धानमंडी के गोनोशस्थया नगर अस्पताल में भर्ती किया गया था। 26 जुलाई को पुलिस ने उसे दोबारा हिरासत में ले लिया।
इस बार उसे साथ ले जा रहे लोगों ने खुद को ढाका मेट्रोपॉलिटन पुलिस की जासूसी विंग का अधिकारी बताया। वहां मौजूद लोगों को बताया गया था कि उसे शांति भंग करने के आरोप में हिरासत में लिया गया है।
खत्म हो रहा प्रदर्शन फिर यूं भड़का…
- पिछले महीने विरोध प्रदर्शन को लीड कर रहे 6 लोगों को डिटेक्टिव ब्रांच ने सेफ रखने के नाम पर 6 दिनों तक बंधक बनाकर रखा था।
- इनमें से नाहिद इस्लाम, आसिफ महमूद और अबू बकर मजूमदार घायल थे और अस्पतालों में इलाज करा रहे थे।
- इन सभी से आंदोलन को वापस लेने के लिए जबरदस्ती वीडियो बनवाया गया। जब ये कैद में थे, तब गृह मंत्री ये दावा कर रहे थे कि इन्होंने अपनी मर्जी से आंदोलन को खत्म करने की बात कही है।
- जब मामला खुला तो प्रदर्शनकारियों का गुस्सा और भड़क गया। प्रदर्शन इतना बढ़ गया कि हजारों लोग सड़कों पर उतर गए। उन्होंने संसद भवन और प्रधानमंत्री कार्यालय पर कब्जा कर लिया।