एससी, एस़़टी आरक्षण मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला कि राज्य सरकारें कोटे के भीतर कोटा दे सकती है।एक अच्छा फैसला है, इस पर अमल होता है तो आजादी के बाद से जिन लोगों को आरक्षण का लाभ नहीं मिला है, उनको भी आरक्षण का लाभ आसानी से मिल सकेगा।
आजादी के समय जब एससी,एसटी को आरक्षण दिया गया था तो उनको एक समूह मानकर दिया गया था, उम्मीद की गई थी, समूह में सभी लोगों को समान रूप से आरक्षण का लाभ मिलेगा। आजादी के कई दशकों बाद अब देश के लोगों को लग रहा है कि समूह में सभी लोगों को समान रूप से आरक्षण का लाभ नहीं मिल रहा है. एससी,एसटी के ऊपर के लोगों को तो आरक्षण का लाभ कई पीढियों से मिल रहा है लेकिन नीचे के लोगों को आरक्षण का लाभ मिल ही नहीं रहा है।
आरक्षण का लाभ ऊपर से नीचे आ ही नहीं रहा है। इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया है कि जिन लोगों के कारण नीचे के लोगों को आरक्षण नहीं मिल रहा है, उनको अब आरक्षण नहीं मिलना चाहिए और अब समूह की जगह जातियों की आर्थिक, सामाजिक, शैक्षणिक स्थिति के आधार पर जिन लोगों को अब तक आरक्षण नहीं मिला है,उनको आरक्षण देेने की व्यवस्था राज्य सरकारें करेंगी। सुनने,पढ़ने मे यह बहुत अच्छा लगता है लेकिन ऐसी व्यवस्था बनाने मे अभी लंबा वक्त लग सकता है।
हर राज्य में एससी,एसटी की संख्या अलग है, कहां किसको आरक्षण का लाभ मिल रहा है, किसको नही मिल रहा है, संख्या में कौन ज्यादा,कौन चुनाव में जीता सकता है, हरा सकता है,यह सब भी तो सरकार व राजनीतिक दलों को देखना होगा। एससी.एसटी को जो लोग अब एक वोट बैंक के रूप मे इस्तेमाल कर रहे थे, सब जातियों को अलग अलग आरक्षण मिलने से अब एससी,एसटी एक वोट बैंक नहीं रह जाएगा, वहां जातियों के नए नेता सामने आएंगे, जातियों में हर क्षेत्र मे प्रतिनिधित्व की मांग बढ़ेगी। राजनीतिक दलों के लिए इन्हें साधना और मुश्किल हो जाएगा।
इससे सबसे ज्यादा दिक्कतें उन जातिवादी दलो को होने वालीं हैं जो जाति की राजनीति करते हैं। पहले एससी,एसटी के कम नेताओं को टिकट दी जाती थी,अब जिस जाति का वोट चाहिए, उस जाति के नेता को टिकिट देना पड़ेगा।कई राज्यो में एससी,एसटी को आरक्षण भी तो कम ज्यादा है। वहां अलग समस्या होगी। छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल सरकार ने आरक्षण को जो बिल लाया था उसमेें एससी,एसटी का आरक्षण बढ़ाया गया था। वह बिल राज्यपाल के पास हस्ताक्षर के लिए लंबित है. उस पर दो राज्यपालों ने कोई फैसला नही किया है,अब तीसरे राज्यपाल आ चुके हैं।
कांग्रेस को फिर आरक्षण का बिल याद आएगा। वह जरूर दबाव बनाएगी कि सरकार आरक्षण बिल पर अपना रुख स्पष्ट करे। राज्य सरका पर दवाब रहेगा कि वह एससी,एसटी को संतुष्ट करे कि जिन लोगों को अब तक आरक्षण का लाभ नहीं मिला है,राज्य सरकार दिलाने के लिए काम करेगी। अब तो सवाल एससी, एसटी को कितना आरक्षण मिल रहा है इसका है ही नहीं, अब तो सवाल यह है कि जितना भी आरक्षण मिल रहा है,उसका लाभ सभी लोगों को मिल रहा है या नहीं। जो राजनीतिक दल एससी,एसटी की सभी जातियों को आरक्षण का लाभ दिला पाएगा, उसे एससी,एसटी की सभी जातियों का वोट मिलेगा। उसी राजनीतिक दल को सबसे ज्यादा लाभ होगा।