देश में अंग्रेजों के जमाने से चल रहे कानूनों की जगह 3 नए कानून भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1 जुलाई से लागू हो गए हैं। इन्हें IPC (1860), CrPC (1973) और एविडेंस एक्ट (1872) की जगह लाया गया है।
इन कानूनों के लागू होने के साथ ही दिल्ली के कमला पार्क थाने और भोपाल के हनुमानगंज थाने में भारतीय न्याय संहिता-2023 (BNS) के तहत पहली FIR दर्ज की गईं।
इधर, कांग्रेस नेता पी चिदंबरम ने X पर एक पोस्ट में लिखा- सरकार ने मौजूदा कानूनों को बिना बहस किए खत्म कर दिया। नए कानूनों में और बदलाव किए जाने चाहिए ताकि उन्हें संविधान के सिद्धांतों के अनुरूप बनाया जा सके।
गौरतलब है कि चिदंबरम इन तीनों कानूनों की जांच को लेकर बनाई गई संसद की स्थायी समिति के सदस्य थे।
दिल्ली में सबसे पहले शुरू हुई थी ट्रेनिंग
दिल्ली पुलिस की स्पेशल सीपी (ट्रेनिंग) छाया शर्मा के मुताबिक, 45 हजार से ज्यादा अधिकारियों को इन कानूनों के तहत हुए बदलाव के लिए ट्रेनिंग दी गई है। दिल्ली पुलिस देश के पहले पुलिस बलों में से एक थी जिसने नए आपराधिक कानूनों पर कर्मियों को 5 फरवरी से प्रशिक्षण देना शुरू किया।
पुलिस के जवानों को एक पॉकेट बुकलेट दी गई है। चार भागों की बुकलेट में IPC से BNS में परिवर्तन, जोड़ी गई नई धाराएं, 7 साल की सजा के तहत आने वाली कैटेगरी और रोजमर्रा की पुलिसिंग के लिए जरूरी धाराओं वाली एक लिस्ट शामिल है।
चिदंबरम ने और क्या लिखा…
नए कानूनों में कुछ इम्प्रूवमेंट्स हुए हैं। हमने उनका स्वागत किया है। उन्हें संशोधन के रूप में पेश किया जा सकता था। लेकिन कुछ कई विपरीत प्रावधान भी हैं। जो असंवैधानिक हैं।
स्थायी समिति के सदस्य सांसदों ने प्रावधानों पर विचार-विमर्श किया है। तीनों विधेयकों पर असहमति नोट भी लिखे। सरकार ने उनमें की गई किसी भी आलोचना का खंडन या जवाब नहीं दिया।
संसद में कोई सार्थक बहस नहीं हुई। कानूनविदों, बार एसोसिएशनों, न्यायाधीशों और वकीलों ने कई आर्टिकल और सेमिनारों में नए कानूनों की कमियां गिनाईं, सरकार इनकी भी परवाह नहीं की।
शुरुआती असर ये होगा कि कानून-व्यवस्था बिगड़ेगी। बाद में अदालतों में कानूनों को कई चुनौतियां दी जाएंगी। उन्हें संविधान और आपराधिक न्यायशास्त्र के आधुनिक सिद्धांतों के अनुरूप बनाने और बदलाव होने चाहिए।
ये हैं सबसे बड़े बदलाव
नए कानूनों के अनुसार आपराधिक मामलों में फैसला सुनवाई पूरी होने के 45 दिनों के अंदर आना चाहिए और पहली सुनवाई के 60 दिनों अंदर आरोप तय किए जाने चाहिए।
बलात्कार पीड़ितों का बयान एक महिला पुलिस अधिकारी उसके अभिभावक या रिश्तेदार की मौजूदगी में दर्ज करेगी। इन केसों में मेडिकल रिपोर्ट 7 दिनों के अंदर आनी चाहिए।
ऑर्गनाइज्ड क्राइम और आतंकवाद को परिभाषित किया गया है। राजद्रोह की जगह देशद्रोह लिखा-पढ़ा जाएगा। सभी तलाशी और जब्ती की वीडियो रिकॉर्डिंग जरूरी होगी।
8 राज्यों में कानूनों के लागू होने से पहले की तैयारी क्या रही..
मध्यप्रदेश: सभी पुलिस कर्मियों को ट्रेनिंग दी जा चुकी है। लेकिन राज्य के सभी 27 हजार आईओ को टैबलेट-फोन (हार्डवेयर) अभी नहीं दिया गया है। महिला आईओ की फिलहाल पर्याप्त संख्या नहीं।
छत्तीसगढ़: सभी पुलिस अफसरों, एसडीएम और निगम के अफसरों को 10 दिन की ट्रेनिंग दी गई। लेकिन जीरो एफआईआर के प्रावधान को पूरा करने के लिए थानों में पर्याप्त स्टाफ अभी नहीं है।
राजस्थान: फील्ड में तैनात आईओ-वरिष्ठ अफसरों को ट्रेनिंग, पीएचक्यू, आरएसी, विजिलेंस और इंटेलिजेंस की ट्रेनिंग देनी बाकी है। एफएसएल की अनिवार्यता के लिए संसाधनों का अभाव है।
झारखंड: वरिष्ठ-कनिष्ठ स्तर के अफसरों को ट्रेनिंग दी जा चुकी है। टेक्नीकल ट्रेनिंग अभी बाकी है। इसमें नए कानूनों, इलेक्ट्रॉनिक एविडेंस के प्रावधान शामिल हैं। इसके लिए कमेटियां बना दी गई हैं।
हिमाचल प्रदेश: ट्रैकिंग नेटवर्क एंड सिस्टम पर काम चल रहा है। पहाड़ी राज्य होने के कारण ऑनलाइन एफआईआर के लिए इंटरनेट इंफ्रा बढ़ाना होगा। 1200 पुलिसकर्मियों की भर्ती बाकी है।
पंजाब: नए कानूनों को लागू करने के लिए क्राइम विंग के डीजीपी को विशेष जिम्मेदारी तय की गई है। नए कानूनों के लिए लाॅ अफसरों को लगाया गया है। 422 थानों को कंप्यूटराइज्ड किया गया है।
बिहार: 1300 थानों में नए कानूनों का सॉफ्टवेयर अपलोड, हैंडबुक भी दी। 25 हजार पुलिसकर्मियों को ट्रेनिंग दी गई है। हर थाने में फोरेंसिक टीम, एसपी रोज एक घंटे पीड़ितों से संवाद करेंगे।
महाराष्ट्र: सभी रैंक के 90 फीसदी पुलिसकर्मियों को ट्रेनिंग दी जा चुकी है। गाइडेंस के लिए 74 वीडियो जारी किए जा चुके हैं। तीनों नए कानूनों का मराठी अनुवाद सभी पुलिसकर्मियों को दिया गया है।