नई दिल्ली : दवा कंपनी एस्ट्राजेनेका ने ब्रिटिश कोर्ट में बताया है कि उसकी कोविड वैक्सीन थ्रोम्बोसिस थ्रोम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम (TTS) का कारण बन सकती है, जिससे खून का थक्का जमता है। भारत में इस कंपनी की कोविशील्ड के 170 करोड़ डोज लगे हैं।
रांची रिम्स के न्यूरो सर्जन डॉ. विकास कुमार ने बताया कि अमेरिकन सोसाइटी ऑफ हेमेटोलॉजी के पब्लिकेशन के मुताबिक, वैक्सीन से साइड इफेक्ट का खतरा 10 लाख लोगों से 3 से 15 को ही होता है। इनमें भी 90% ठीक हो जाते हैं। इसमें मौत की आशंका सिर्फ 0.00013% ही है। यानी 10 लाख में 13 को साइड इफेक्ट है, तो इनमें से जानलेवा रिस्क सिर्फ एक को होगी।
जिस TTS के चलते खून का थक्का जमता है, इसके केस कोविड वैक्सीन लगने के पहले भी आ रहे थे। इसलिए यह नहीं कह सकते कि कोवीशील्ड के कारण ऐसा हुआ। रही बात खून पतला होने के मामलों की तो यह समस्या पोस्ट कोविड इफेक्ट हो सकती है, न कि पोस्ट वैक्सीनेशन। कोविड में शरीर के कई हिस्से प्रभावित हुए थे।
कोरोना वैक्सीन ने तो हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ा दी
एम्स दिल्ली के कम्युनिटी मेडिसिन एक्सपर्ट डॉ. संजय राय का कहना है कि महामारी के दायरे में आने वाली प्रति दस लाख आबादी में से 15 हजार पर जान का खतरा था। ऐसे में इस आबादी को वैक्सीन देकर महामारी की घातकता 80 से 90% तक घटाई गई। ऐसे में दुष्प्रभाव के मुकाबले लाभ अधिक थे। देश में लगभग 100 प्रतिशत टीकाकरण हो गया। वहीं, एक बड़ी आबादी को नेचुरल वैक्सीनेशन होने से कोरोना आम जुकाम बन गया।
चीन की तरह भारत में भी जोखिम है, लेकिन खतरा कम है। अच्छी बात है कि दुष्प्रभाव का खतरा समय के साथ कम होता जाता है। कुछ मामलों में साइड इफेक्ट चिंता की बात नहीं है, क्योंकि यह बहुत दुर्लभ मामलों में हो सकता है। भारत में कोविड वैक्सीन के कारण जान जाने का कोई मामला नहीं आया है।
हफ्ते में 2 दिन 1 बार खाना खाएं, एस 1-2 प्रोटीन की जांच कराएं
अमेरिका के हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के साइंटिस्ट डॉ. राम उपाध्याय ने कहा कि सब का मेटाबॉलिज्म एक जैसा नहीं होता है। किसी को वैक्सीन का साइड इफेक्ट जीरो होता है तो किसी को 100%। इसीलिए वैक्सीन से जान का रिस्क 10 लाख में एक को ही है। अब सवाल है कि अपनी देखभाल आगे कैसे करें? जवाब है- ऑटोफेजी (Autophagy)। यानी हफ्ते में दो दिन उपवास। इसमें दिन में सिर्फ एक बार खाना है।
वैक्सीन के कारण शरीर में एस1, एस2 प्रोटीन और म्यूटेंट एस प्रोटीन की मात्रा बढ़ी है। इनसे ब्लड क्लॉटिंग के लिए जिम्मेदार सीसीआर-5 फैक्टर एक्टिवेट होने की आशंका होती है। इससे रक्त नलिकाओं पर प्लेटलेट्स चिपकने लगती हैं। यही खून के प्रवाह में रुकावट बन सकती हैं। इससे बचने के लिए एस1, एस2 प्रोटीन के स्तर की जांच कराएं। सीसीआर-5 लेवल, साइटोकाइन प्रोफाइल एवं इंफ्लेमेटरी मार्कर की भी जांच करा सकते हैं। यदि बढ़े हैं तो डॉक्टर की सलाह पर दवा लें।
एस्ट्राजेनेका की कोरोना वैक्सीन से हार्ट अटैक का खतरा
ब्रिटेन की फार्मा कंपनी एस्ट्राजेनेका ने माना है कि उनकी कोविड-19 वैक्सीन से खतरनाक साइड इफेक्ट्स हो सकते हैं। हालांकि, ऐसा बहुत रेयर (दुर्लभ) मामलों में ही होगा। एस्ट्राजेनेका का जो फॉर्मूला था उसी से भारत में सीरम इंस्टीट्यूट ने कोवीशील्ड नाम से वैक्सीन बनाई है।
ब्रिटिश मीडिया टेलीग्राफ की रिपोर्ट के मुताबिक, एस्ट्राजेनेका पर आरोप है कि उनकी वैक्सीन से कई लोगों की मौत हो गई। वहीं कई अन्य को गंभीर बीमारियों का सामना करना पड़ा। कंपनी के खिलाफ हाईकोर्ट में 51 केस चल रहे हैं। पीड़ितों ने एस्ट्राजेनेका से करीब 1 हजार करोड़ का हर्जाना मांगा है।
ब्रिटिश हाईकोर्ट में जमा किए गए दस्तावेजों में कंपनी ने माना है कि उसकी कोरोना वैक्सीन से कुछ मामलों में थ्रॉम्बोसिस थ्रॉम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम यानी TTS हो सकता है। इस बीमारी से शरीर में खून के थक्के जम जाते हैं और प्लेटलेट्स की संख्या गिर जाती है।
सबसे पहले ब्रिटिश नागरिक जेमी स्कॉट ने केस किया
अप्रैल 2021 में जेमी स्कॉट नाम के शख्स ने यह वैक्सीन लगवाई थी। इसके बाद उनकी हालत खराब हो गई। शरीर में खून के थक्के बनने का सीधा असर उनके दिमाग पर पड़ा। इसके अलावा स्कॉट के ब्रेन में इंटर्नल ब्लीडिंग भी हुई। रिपोर्ट के मुताबिक, डॉक्टरों ने उनकी पत्नी से कहा था कि वो स्कॉट को नहीं बचा पाएंगे।
कंपनी ने पहले दावों को नकारा, फिर माना
पिछले साल स्कॉट ने एस्ट्राजेनेका के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई। मई 2023 में स्कॉट के आरोपों के जवाब में कंपनी ने दावा किया था कि उनकी वैक्सीन से TTS नहीं हो सकता है। हालांकि इस साल फरवरी में हाईकोर्ट में जमा किए दस्तावेजों में कंपनी इस दावे से पलट गई। इन दस्तावेजों की जानकारी अब सामने आई है।
हालांकि अवैक्सीन में किस चीज की वजह से यह बीमारी होती है, इसकी जानकारी फिलहाल कंपनी के पास नहीं है। इन दस्तावेजों के सामने आने के बाद स्कॉट के वकील ने कोर्ट में दावा किया है कि एस्ट्राजेनेका-ऑक्सफोर्ड की वैक्सीन में खामियां हैं और इसके असर को लेकर गलत जानकारी दी गई।
वैज्ञानिकों ने अप्रैल 2021 में वैक्सीन से होने वाली बीमारी की पहचान की
वैज्ञानिकों ने सबसे पहले मार्च 2021 में एक नई बीमारी वैक्सीन-इंड्यूस्ड (वैक्सीन से होने वाली) इम्यून थ्रॉम्बोसिस थ्रॉम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम (VITT) की पहचान की थी। पीड़ितों से जुड़े वकील ने दावा किया है कि VITT असल में TTS का ही एक सबसेट है। हालांकि एस्ट्राजेनेका ने इसे खारिज कर दिया।
कंपनी ने कहा- हमने मानकों का पालन किया
एस्ट्रजेनेका ने कहा, “उन लोगों के प्रति हमारी संवेदनाएं हैं, जिन्होंने अपनों को खोया है या जिन्हें गंभीर बीमारियों का सामना करना पड़ा। मरीजों की सुरक्षा हमारी प्राथमिकता है। हमारी रेगुलेटरी अथॉरिटी सभी दवाइयों और वैक्सीन के सुरक्षित इस्तेमाल के लिए सभी मानकों का पालन करती है।”
कंपनी ने आगे कहा, “क्लिनिकल ट्रायल और अलग-अलग देशों के डेटा से यह साबित हुआ है कि हमारी वैक्सीन सुरक्षा से जुड़े मानकों को पूरा करती है। दुनियाभर के रेगुलेटर्स ने भी माना है कि वैक्सीन से होने वाले फायदे इसके दुर्लभ साइड इफेक्ट्स से कहीं ज्यादा हैं।”
ब्रिटेन में नहीं इस्तेमाल हो रही एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन
खास बात यह है कि इस वैक्सीन का इस्तेमाल अब ब्रिटेन में नहीं हो रहा है। टेलीग्राफ की रिपोर्ट के मुताबिक, बाजार में आने के कुछ महीनों बाद वैज्ञानिकों ने इस वैक्सीन के खतरे को भांप लिया था। इसके बाद यह सुझाव दिया गया था कि 40 साल से कम उम्र के लोगों को दूसरी किसी वैक्सीन का भी डोज दिया जाए। ऐसा इसलिए क्योंकि एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन से होने वाले नुकसान कोरोना के खतरे से ज्यादा थे।
मेडिसिन हेल्थकेयर प्रोडक्ट्स रेगुलेटरी (MHRA) के मुताबिक ब्रिटेन में 81 मामले ऐसे हैं, जिनमें इस बात की आशंका है कि वैक्सीन की वजह से खून के थक्के जमने से लोगों की मौत हो गई। MHRA के मुताबिक, साइड इफेक्ट से जूझने वाले हर 5 में से एक व्यक्ति की मौत हुई है।
रिपोर्ट के मुताबिक, फ्रीडम ऑफ इन्फॉर्मेशन के जरिए हासिल किए गए आंकड़ों के मुताबिक ब्रिटेन में फरवरी में 163 लोगों को सरकार ने मुआवजा दिया था। इनमें से 158 ऐसे थे, जिन्होंने एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन लगवाई थी।
एस्ट्राजेनेका ने बचाई 60 लाख लोगों की जान
कंपनी ने यह भी दावा किया है कि उन्होंने अप्रैल 2021 में ही प्रोडक्ट इन्फॉर्मेशन में कुछ मामलों में TTS के खतरे की बात शामिल की थी। कई स्टडीज में यह साबित हुआ है कि कोरोना महामारी के दौरान एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन आने के बाद पहले साल में ही इससे करीब 60 लाख लोगों की जान बची है।
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन (WHO) ने भी कहा था कि 18 साल या उससे ज्यादा की उम्र वाले लोगों के लिए यह वैक्सीन सुरक्षित और असरदार है। इसकी लॉन्चिंग के वक्त ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने इसे ब्रिटिश साइंस के लिए एक बड़ी जीत बताया था।