मुक्तिबोध राष्ट्रीय नाट्य समारोह : महाभारत के वन पर्व की गाथा कहती अग्नि और बरखा 

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रायपुर ।  मुक्तिबोध राष्ट्रीय नाट्य समारोह के चौथे दिन गिरीश कर्नाड की चर्चित नाट्य कृति अग्नि बरखा का मंचन आशीष पाठक के निदेर्शन में किया गया। समागम रंगमंडल जबलपुर की यह प्रस्तुति गिरीश कर्नाड द्वारा लिखित है। इतिहास, पुराण, जातक और लोककथाएं गिरीश कर्नाड के लिए सर्वाधिक प्रिय विषय रहे हैं। ये नाटक भी उसी कड़ी में से एक है। कर्नाड ने मूलतः यह नाटक अपनी मातृभाषा कन्नड़ में अग्नि मुत्तु मले नाम से लिखा था। बाद में राम गोपाल बजाज ने इसका हिंदी रूपांतरण किया। 
मुक्तिबोध राष्ट्रीय नाट्य समारोह के चौथे दिन शनिवार को हुई प्रस्तुति अतीत के प्रकाश में वर्तमान धुँधलके को साफ़ और उजला करने की रचनात्मक कोशिश है, जो नाटक को बेहद समकालीन बनाती है| 'अग्नि' और 'बरखा' नाटक में रूपक की तरह सामने आते हैं और समय असमय भिन्न और गहरे अर्थ देते रहते हैं| नाटक के पात्रों की आपस में विषमता होने के कारण (जैसे परावसु और रैभ्य की आकांक्षाएं, यवक्री का परावसु के सम्पूर्ण परिवार से द्वेषऔर घृणा, विशाखा औरनित्तिलाई की स्त्री होने की विडम्बना, अरवसु की अभिनेता नट होने की इच्छा) हमें एक साथ अनेक मानवीय प्रकृतियाँ देखने को मिलती हैं, जो ज़ाहिर है और मनोविज्ञानिक भी|आज के समाज में व्याप्त पितृसत्ता, जातिवाद, बिना ज्ञान और अनुभव के सिद्धि प्राप्त करने की लालसा किस तरह हिंसा को जन्म देती है, नाटक में साफ़ दर्शाया गया है| और आखिर में बचता है नित्तिलाई और अरवसु का प्रेम, जो द्वेष रहित है, मानवता और जनकल्याण को न्यौछावर हो जाता है, और इन सारी अग्नियों पर अंततः विजयी होती है-"बरखा" !….. 
इस नाटक में परावसु और इंदिरा की भूमिका अर्पित सिंह ने निभाई। अरासु और वरातासुर की भूमिका में उत्सव हांडे थे। यावाक्री और सभासद की भूमिका में हषित सिंह, रायभया और सभासद विश्वा, शिवाकर सप्रे, अंतरा बाबा और सभासद सौरव यादव करतानट और नितिलाई और पति और सभासद अजीज हसन, ब्रम्हराक्षस शिवम बवारिया, नितिलाई के पिता और सभासद अभिषेक शर्मा, राजा विनायक विशाखा स्वाती दुबे, नितिलाई और रावत मानसिंह। नाटक की वेशभूषा-मेकअप और निर्देशन में स्वाती दुबे, संगीत निर्देशन आशीष पाठक, संगीत संयोजन ज्योसना कटारिया, शिवम बवारिया और साहिल जैन है। 
आज समापन पर संगोष्ठी और नाटक का मंचन 
छत्तीसगढ़ फिल्म एण्ड विजुअल आर्ट सोसायटी की निदेशिका श्रीमती रचना मिश्र ने बताया कि समारोह के अंतिम दिन कल 17 नवंबर को दोपहर 2 बजे से संस्कृति विभाग के ऑडिटोरियम में रंगमंच और सिनेमा पर संगोष्ठी होगी, जिसमें जयंत देशमुख और आलोक चटर्जी बातचीत करेंगे। इसी दिन शाम 7 बजे नाटक अगरबत्ती का मंचन किया जाएगा। इस नाटक के लेखक आशीष पाठक हैं और इसका निर्देशन स्वाति दुबे ने किया है।