भाजपा के प्रेसीडेंशियल स्टाइल का यह भारतीय वर्जन एक बार फिर कांग्रेस पर भारी पड़ा. हरियाणा को छोड़ दें तो कांग्रेस नेता विशेष पर हमलों के फेर में फंसकर रह गई और जनता की समस्याओं को मुद्दा बनाने, उसे धार देने, चुनाव को लोकलाइज करने में नाकाम रही.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारतीय राजनीति के चुनावी चाणक्य राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के दौर में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने एक के बाद चुनावों में सफलता के झंडे लहराए. इन सफलताओं के पीछे अमित शाह की रणनीति रही, तो पीएम मोदी का चेहरा भी. चुनाव किसी भी राज्य का हो, भाजपा ने प्रेसीडेंशियल स्टाइल में मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार का नाम आगे किया हो या न किया हो, पीएम मोदी का चेहरा जरूर आगे किया.
महाराष्ट्र के चुनाव में भी पार्टी ने केंद्र में नरेंद्र, राज्य में देवेंद्र का नारा दिया था. इसी तरह हरियाणा में भी मोदी और मनोहर सरकार के इर्द-गिर्द प्रचार की रणनीति बुनी गई. भाजपा के प्रेसीडेंशियल स्टाइल का यह भारतीय वर्जन एक बार फिर कांग्रेस पर भारी पड़ा. हरियाणा को छोड़ दें तो कांग्रेस नेता विशेष पर हमलों के फेर में फंसकर रह गई और जनता की समस्याओं को मुद्दा बनाने, उसे धार देने, चुनाव को लोकलाइज करने में नाकाम रही. नतीजा हार के रूप में सामने आया.
सफल रही विपक्ष में खड़ा नजर आने की कोशिश
दोनों ही राज्यों में भाजपा सत्ताधारी दल के रूप में चुनाव मैदान में उतरी थी. प्रचार के दौरान भाजपा ने सत्ता में रहते हुए भी खुद को विपक्ष में खड़ा दिखाने की कोशिश की. प्रत्येक रैली में नेताओं ने केंद्र की मोदी और प्रदेश की मनोहर सरकार की उपलब्धियां गिनाईं ही, उससे अधिक विपक्षी कांग्रेस और शासनकाल की खामियों पर हमला किया. भाजपा की यह रणनीति एंटी इनकंबेंसी को एक हद तक कम करने में सफल रही.
प्रचार में सुस्ती का भी कांग्रेस ने भुगता खामियाजा
एक तरफ जहां भाजपा ने आक्रामक प्रचार किया, वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस इस मोर्चे पर भी सुस्त नजर आई. हरियाणा और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्रियों ने रथयात्रा के माध्यम से प्रत्येक विधानसभा में पहुंचने का प्रयास किया. पीएम मोदी ने दो दर्जन से अधिक चुनावी जनसभाएं की. राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी ताबड़तोड़ रैलियां कीं. कांग्रेस के प्रचार की कमान संभाल रहे पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने दोनों राज्यों में कुल मिलाकर महज आठ रैलियों को संबोधित किया. कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी, राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी ने खुद को प्रचार से दूर रखा. मुंबई कांग्रेस के अध्यक्ष रहे पूर्व केंद्रीय मंत्री मिलिंद देवड़ा भी पूरे प्रचार अभियान से दूर रहे.
अंतर्कलह, एसी रूम पॉलिटिक्स ने भी विपक्षी दल को पहुंचाया नुकसान
ऐसे समय में जब चुनाव करीब आने पर कांग्रेस को चुनावी रणनीति, सरकार की नाकामियों को उजागर करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए था. तब कांग्रेस अंतर्कलह में उलझी रही. हरियाणा में भूपेंद्र सिंह हुड्डा और प्रदेश अध्यक्ष रहे अशोक तंवर आपस में भिड़ते रहे, वहीं ऐन चुनाव के समय महाराष्ट्र में संजय निरूपम ने भी बागी तेवर अपना लिए. रही सही कसर एसी रूम पॉलिटिक्स ने पूरी कर दी.