महाराष्ट्र चुनाव: पार्टी हो या परिवार, सियासी करियर के सबसे मुश्किल दौर में शरद पवार

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महाराष्ट्र की सियासत के बेताज बादशाह रहे शरद पवार अकेले ऐसे नेता हैं जो एनसीपी में अलख जगाए हुए हैं. लेकिन पवार महाराष्ट्र की राजनीति में एनसीपी की वापसी कराने में एक बार फिर मात खाते नजर आ रहे हैं और वो मौजूदा दौर में अपने सियासी करियर के सबसे मुश्किल दौर से गुजर रहे हैं.
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव का एग्जिट पोल जारी हो गया है. इसके आंकड़े बताते हैं कि भारतीय जनता पार्टी (BJP) और शिवसेना का गठबंधन बंपर जीत के साथ सत्ता में एक बार फिर वापसी कर रहा है. औसतन हर एग्जिट पोल में इस गठबंधन को बहुमत मिलने का अनुमान जताया गया है. इससे बीजेपी-शिवसेना के खेमे में खुशी की लहर है तो दूसरी ओर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी-कांग्रेस गठजोड़ में मायूसी देखी जा रही है.

एनसीपी प्रमुख शरद पवार अपने राजनैतिक करियर में सबसे मुश्किल दौर से गुजर रहे हैं. शरद पवार ने जिस ढंग से अपने गठबंधन की झंडा-बरदारी की और बारिश में भीगते हुए प्रचार अभियान को आगे बढ़ाया, उस लिहाज से सीटें मिलती नहीं दिखाई दे रही हैं.

इंडिया टुडे-एक्सिस माई इंडिया के एग्जिट पोल के अनुमानों में शरद पवार और पृथ्वीराज चव्हाण की लाख कोशिशों के बावजूद एनसीपी-कांग्रेस गठबंधन को 72-90 सीटें मिलती दिख रही हैं. इतनी कम सीटों से कांग्रेस खेमे में उतनी मायूसी नहीं है, जितनी एनपीसी में है, क्योंकि कांग्रेस ने अपना प्रचार अभियान सीमित रखा था जबकि शरद पवार अपने चरम पर थे. लिहाजा, इस गठबंधन की हार शरद पवार के लिए ज्यादा चिंता की बात साबित हो सकती है.

कभी किंगमेकर हुआ करते थे पवार

शरद पवार पिछले 50 साल से सार्वजनिक जीवन में हैं. कई बार केंद्र की राजनीति में अहम भूमिका निभा चुके हैं लेकिन ऐसे दिन कभी नहीं आए जब उनकी पार्टी को 40-50 सीटों के लाले पड़ते दिखाई दे रहे हों. शरद पवार महाराष्ट्र की राजनीति में भी परचम लहरा चुके हैं और मुख्यमंत्री पद संभाल चुके हैं लेकिन आज उनकी पार्टी के सामने 50 सीटें जुटाना भी पहाड़ के माफिक नजर आ रहा है. इंडिया टुडे-एक्सिस माई इंडिया एग्जिट पोल के मुताबिक एनसीपी को 40 से 50 सीट मिलने का अनुमान है.
पार्टी में अकेले पड़े शरद पवार?

शरद पवार अकेले ऐसे नेता हैं जो एनसीपी में अलख जगाए हुए हैं. शरद पवार को भी इस बात का आभास है कि वे ही पार्टी में जान फूंक सकते हैं तभी हाल में उन्होंने कहा था कि 80 साल के हुए तो क्या हुआ, उनका दिल अब भी जवान है. पवार ने यह भी कहा कि 'आखिरकार वे ही पार्टी अध्यक्ष हैं.'

पवार के बयान से साफ था कि वे राजनीति से अभी रिटायर होने वाले नहीं हैं. हालांकि पिछली बार चुनाव न लड़ने का ऐलान किया था लेकिन अजीत पवार के खिलाफ भ्रष्टाचार का मामला खुलने और पार्टी के दिग्गज नेताओं के बगावत करने से शरद पवार एक बार सक्रिय होते दिखे. अब यह देखने वाली बात होगी कि उनकी सक्रियता राजनीति में कितना रंग लाती है. वो एनसीपी के खोए हुए जनाधार को वापस लाने में कहां तक सफल होते हैं?

पवार परिवार में विरासत की सियासत

हालांकि, शरद पवार के परिवार में विरासत की लड़ाई चल रही है. पवार परिवार में विरासत की इस लड़ाई के केंद्र में उनके दो पोते हैं. पार्थ पवार और दूसरे शरद पवार के दिवंगत बड़े भाई अप्पा साहेब पवार के पोते रोहित पवार. जबकि शरद पवार की सांसद बेटी सुप्रिया सुले दिल्ली की राजनीति में सक्रिय हो चुकी हैं. ऐसे में महाराष्ट्र की राजनीति का वारिस बनने के लिए इन दो पोतों में अंदरखाने जंग छिड़ी हुई है.

पवार परिवार में विरासत की सियासत की पहली झलक लोकसभा चुनाव 2019 के दौरान दिखी जब एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार ने लोकसभा चुनाव न लड़ने का फैसला करते हुए अपनी सीट पोते पार्थ पवार को सौंप दी. तब रोहित पवार ने फेसबुक पोस्ट लिखकर दादा शरद पवार से अपने फैसले पर पुनर्विचार करने के लिए कहा था.

वहीं शरद पवार ने अपने एक अन्य भाई अनंतराव के बेटे अजीत पवार को भी प्रमोट किया. अजीत पवार महाराष्ट्र में राजनेता के रूप में उभरने में सफल रहे. वे एनसीपी-कांग्रेस गठबंधन में डिप्टी सीएम भी बने. एनसीपी में कई पार्टी कार्यकर्ता उन्हें शरद पवार के बाद वास्तविक जननेता के रूप में देखते हैं लेकिन इस पर भी मतभेद की कई खबरें आ चुकी हैं.