रमेश मुनि महाराज ने संथारा के जरिए त्‍यागे प्राण, अनुयाई मना रहे हैं महोत्‍सव

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मंदसौर. मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले (Mandsaur District) के दलोदा में पिछले कई दिनों से बीमार चल रहे श्वेतांबर संप्रदाय के जैन संत रमेश मुनि महाराज (Ramesh Muni Maharaj) ने 2 दिन के संथरे के बाद प्राण त्याग दिए. आपको बता दें कि 2 दिन पहले उन्हें जैन धर्म (Jainism) की परंपरा के अनुसार संथारा दिलाया गया, जिसमें उनका खाना-पीना और दवाईयां छुड़वा दी गईं. जैन धर्म में परंपरा है कि संथारा के पश्चात देह छोड़ने से मोक्ष की प्राप्ति होती है और जन्म जन्मांतर से मुक्ति मिल जाती है.
सिद्धार्थ मुनि ने कही ये बात
जनतंत्र सिद्धार्थ मुनि ने बताया कि चार प्रकार के आहार का त्याग करना ही संथारा है. जब व्यक्ति को लगता है कि उसकी मृत्यु नजदीक है तो वह अपनी मर्जी से संथारा ग्रहण कर लेता है. जैन धर्म की यह प्राचीन परंपरा है और इससे व्यक्ति को जन्म मरण के बंधन से मुक्ति मिल जाती है. संथारा प्रथा आत्म कल्याण का मार्ग है न कि आत्महत्या है.
क्या है संथारा?
सल्लेखना (समाधि या सथारां) मृत्यु को निकट जानकर अपनाए जाने वाली एक जैन प्रथा है. इसमें जब व्यक्ति को लगता है कि वह मौत के करीब है तो वह खुद खाना-पीना त्याग देता है. दिगम्बर जैन शास्त्र अनुसार इसे समाधि या सल्लेखना कहा जाता है. सल्लेखना दो शब्दों से मिलकर बना है सत और लेखना. इसका अर्थ है- सम्यक् प्रकार से काया और कषायों को कमज़ोर करना. यह श्रावक और मुनि दोनों के लिए बतायी गयी है. इसे जीवन की अंतिम साधना भी माना जाता है, जिसके आधार पर व्यक्ति मृत्यु को पास देखकर सबकुछ त्याग देता है. जैन ग्रंथ, तत्त्वार्थ सूत्र के सातवें अध्याय के 22वें श्लोक में लिखा है, 'व्रतधारी श्रावक मरण के समय होने वाली सल्लेखना को प्रतिपूर्वक सेवन करे.'
जैन संत रमेश मुनि द्वारा संथारा ग्रहण करने के बाद उनकी मृत्यु का समाचार मिलते ही देशभर से उनके अनुयाई मंदसौर जिले के दलोदा गांव में इकट्ठा हो गए. जहां पर जैन धर्म की परंपराओं का निर्वहन करते हुए उनकी अंतिम यात्रा एक भव्य जुलूस के रूप में निकाली गई. उससे पहले जैन धर्म के उनके अनुयायियों ने उनकी अर्थी उठाने और मुखाग्नि देने सहित कई अन्य रीति-रिवाज के लिए लाखों रुपए की बोलियां लगाईं. इन बोलियों से प्राप्त पैसा मुनि की याद में धार्मिक कार्यों में खर्च किया जाएगा.
सुप्रीम कोर्ट के बैन के बाद चर्चा में आया था संथारा
साल 2015 में राजस्थान हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए उच्चतम न्यायालय ने संथारा प्रथा पर बैन कर दिया था, जिसके विरोध में जैन समुदाय के लोग सड़कों पर निकल आए थे और देशभर में संथारा के समर्थन में प्रदर्शन हुए थे. उसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने ही संथारा प्रथा पर राहत दे दी थी. जैन धर्म इसे मोक्ष का मार्ग मानता है, वहीं कई कानूनविद इसे आत्महत्या मानते हैं.