बिलासपुर । आज वर्तमान युग में हमारे पास भौतिक साधन प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है। हमारे पास शिक्षा, स्वस्थ शरीर, धन-धान्य सहज ही उपलब्ध है। तब भी हमारे जीवन में निराशा है। अज्ञात भय है। भविष्य की चिंता है। हमारे आत्म विश्वास में कुछ कमी है। हम 24 घंटे व्यस्त रहते है। अच्छा खान-पान, रहन-सहन, नौकरी-व्यवसाय में अपना 100 प्रतिशत देते है फिर भी लगता है कुछ कमी है। इसी कमी को पूरा करने के लिए हम सुबह से शाम तक दौड़ते रहते है। जब बीमारी का पता चले तब ही इलाज हो सकता है। यह बातें ब्रह्मकुमारी रामखिलावन ने शनिवार को टेलीफोन एक्सचेंज रोड राजयोग भवन में कही।
प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय में शनिवार को कार्यक्रम किया गया। जिसमें अंतर्राष्ट्रीय मुख्यालय माउन्ट आबू से पधारे ब्रह्माकुमार राम खिलावन भाई ने संस्था की स्थानीय शाखा टेलीफोन एक्सचेंज रोड स्थित राजयोग भवन में कहा कि जिस प्रकार अपने घर की सुरक्षा के लिए हम घर में लॉक लगाते है वैसे ही अपने जीवन में सुख-शांति बनाए रखने के लिए हमें अपनी कर्मेन्द्रियों में भी तीन लॉक लगाने होंगे। सबसे पहला लॉक अपने मुख का लगाना है। हमारे बोल हमारे व्यक्तित्व की पहचान कराते है। सुनने वाले को भी सकारात्मक प्रेरणा दे। हमारे बोल उमंग-उत्साह बढ़ाने वाले, खुशी देने वाले, हिम्मत बढ़ाने वाले, क्षमा करने वाले, देने का भाव रखने वाले, दुआएं देने वाले होना चाहिए।
हमें निंदा करने वाले बोल से मुख का लॉक लगाना है। दूसरा लॉक कान का लगाना है। हमें कभी किसी की बुराई नही सुननी है। स्वयं का व दूसरों का समय व्यर्थ जाता है और नकारात्मक कार्मिक एकाउंट बनता जाता है। हमारी विशेषताएं धीरे-धीरे कम होने लगती है। तीसरा लॉक हमे अपनी आंखों में लगाना है। हमें यह आंखे सभी की विशेषताएं देखने के लिए मिली है। इन आखों से सभी के गुण को ही देखना है। दूसरों के अवगुण व कमियां देखने से वह स्वयं में आने लगती है। दूसरो को देखने से हम अपने लक्ष्य से भटक जाते है। आत्मा की आंतरिक शक्ति कम होने के साथ हमारी रचनात्मकता भी कम होने लगती है। अभी का यह समय कमाई करने का है। अंतर्राष्ट्रीय मुख्यालय माउन्ट आबू से ही आए श्याम भाई ने कहा कि प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय के चार मुख्य विषय है। ईश्वरीय ज्ञान, ईश्वर की याद, दैवीय गुणों की धारणा एवं ईश्वरीय सेवा। हम जो अच्छी बातें रोज सुनते है उसे अपने जीवन में लाना ही उस ज्ञान का सम्मान है।