हाई कोर्ट ने 4 अक्टूबर को फैसला सुनाते हुए पेड़ों की कटाई पर रोक से इनकार कर दिया. लोगों ने एनजीटी से लेकर हाई कोर्ट तक फरियाद की, लेकिन फैसला पेड़ों की कटाई के पक्ष में ही गया.
आदित्य ठाकरे ने किया विरोध कर रहे लोगों का समर्थनहाई कोर्ट के आदेश के बाद पेड़ों की कटाई कर रहा प्रशासन
मायानगरी मुंबई एक बार फिर चर्चा में है. वजह कोई फिल्म नहीं, पर्यावरण और मुंबई मेट्रो है. हाई कोर्ट के आदेश के बाद प्रशासन ने इलाके में पेड़ों की कटाई शुरू कर दी है. लोगों ही नहीं, मीडिया के प्रवेश पर भी पाबंदी लगा दी गई है. चिपको आंदोलन की तर्ज पर प्रदर्शन कर रहे 'सेव आरे ' मुहिम से जुड़े पर्यावरण प्रेमियों को खदेड़ दिया गया है.
बड़ी मशीनों का उपयोग कर 24 घंटे से भी कम समय में लगभग एक हजार पेड़ काटे जा चुके हैं. यह काम ऐसे समय पर हो रहा है, जब महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव की दहलीज पर खड़ा है. भारतीय जनता पार्टी और शिवसेना गठबंधन में भी इस विषय पर दरार पड़ गई है. वर्ली सीट से शिवसेना उम्मीदवार आदित्य ठाकरे ने भी पेड़ों की कटाई का विरोध कर रहे लोगों का समर्थन किया है.
कैसे हुई विवाद की शुरुआत?
सन 2014 में शुरू हुए मुंबई मेट्रो प्रोजेक्ट का पहला फेज (वर्सोवा से घाटकोपर तक) जनता के लिए खुला तो बात विस्तार की चल निकली. विस्तार के लिए अब जरूरत पड़ी पार्किंग शेड की. 23136 करोड़ रुपये की लागत से फ्लोर स्पेस इंडेक्स निर्माण को कहीं जगह की आवश्यकता पड़ी तो मेट्रो परियोजना से जुड़ी कंपनी को मुफीद लगी फिल्म सिटी गोरेगांव वाले इलाके की आरे कॉलोनी. इसे ही आरे के जंगल भी कहते हैं.
शेड बनाने के लिए खुला मैदान चाहिए था और इसके लिए जरूरी थी पेड़ों की कटाई. विरोध को देखते हुए राज्य सरकार ने मेट्रो कंपनी से कोई और लोकेशन देखने को भी कहा, लेकिन मुंबई जैसे घनी आबादी वाले शहर जहां लोगों को रहने के लिए एक बिस्तर का स्थान तलाशने में जद्दोजहद करनी पड़ती है, मेट्रो शेड के निर्माण की जगह भला कहां मिलती. लौटकर चिड़िया फिर उसी डाल पर आ गई.
सितारों के समर्थन ने विरोध को दी धार
मेट्रोमैन ई श्रीधर ने भी महाराष्ट्र सरकार को पत्र लिखकर मेट्रो को इको फ्रेंडली बताया. बीएमसी से 26 सौ पेड़ काटने का आदेश हुआ तो पर्यावरण प्रेमी जनता खुलकर विरोध में आ गई. इस आग में घी का काम किया स्वर कोकिला लता मंगेशकर, श्रद्धा कपूर और रवीना टंडन जैसे फिल्मी सितारों द्वारा किए गए ट्वीट ने. इससे विरोध को धार मिली और शुरुआत हो गई एक मुहिम की, जिसका नाम था 'सेव आरे'.
पेड़ों की कटाई को एनजीटी ने दिया था 'ग्रीन सिग्नल'
इससे पहले पर्यावरण संरक्षण संगठन वनशक्ति और आरे बचाओ ग्रुप के बैनर तले जनता की गुहार पर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) की पुणे बेंच ने दिसंबर 2016 में निर्माण न कराने का आदेश दिया था.
वन विभाग ने आरे कॉलोनी इलाके को जंगल मानने से ही इनकार कर दिया और इसके बाद एनजीटी ने उस इलाके में केंद्र सरकार के अधिकार क्षेत्र वाली जमीन को छोड़कर राज्य की भूमि पर निर्माण को 'ग्रीन सिग्नल' दे दिया. मतलब साफ, पेड़ों की कटाई को मंजूरी दे दी.
सितंबर में हाईकोर्ट पहुंचा मामला
एनजीटी से निराशा हाथ लगने के बाद अब आस बची थी कोर्ट से. पर्यावरण के क्षेत्र में कार्यरत जोरू भथेना ने पेड़ों को बचाने के लिए दो सितंबर के दिन बॉम्बे हाई कोर्ट में याचिका दायर की. हाई कोर्ट ने चार अक्टूबर को फैसला सुनाते हुए पेड़ों की कटाई पर रोक से इनकार कर दिया. लोगों ने एनजीटी से लेकर हाईकोर्ट तक फरियाद की, लेकिन फैसला पेड़ों की कटाई के पक्ष में ही गया.
पंडित नेहरू ने रखी थी कॉलोनी की नींव
देश की आजादी के चौथे साल में चार मार्च 1951 को तत्कालीन प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने पौधरोपण कर डेयरी उद्योग को बढ़ावा देने के उद्देश्य से आरे मिल्क कॉलोनी की नींव रखी थी. पीएम के पौधरोपण के बाद इस इलाके में इतने पेड़ रोपे गए कि 3166 एकड़ क्षेत्रफल में फैले भूभाग ने कुछ ही सालों में जंगल का रूप ले लिया.