70 साल में 15000 बच्चों की डिलीवरी करवाने वाली दाई मां सुलागिट्टी नरसम्मा अब नहीं रहीं

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सुलागिट्टी नरसम्मा, 98 साल की थीं. ‘थीं’ इसलिए, क्योंकि अब वो हमारे बीच नहीं हैं. मंगलवार, यानी 25 दिसंबर की दोपहर उनका निधन हो गया. बेंगलुरु के केंगेरी के बीजीएस अस्पताल में आखिरी सांस ली. लंग्स में दिक्कत थी. वेंटिलेटर पर रखा गया था.

पिछले महीने सिद्दगंगा हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर में एडमिट कराया गया था. बाद में 29 नवंबर को बीजीएस अस्पताल रेफर कर दिया गया. जहां पिछले पांच दिनों से वो वेंटिलेटर पर थीं.

नरसम्मा को जान लीजिए-

– सोशल वर्कर थीं. लोगों की ‘जननी अम्मा’ थीं. दाई थीं. कर्नाटक के पिछड़े इलाकों में 15000 बच्चों की डिलीवरी करवाई थी. सुरक्षित डिलीवरी. वो भी बिना कोई पैसा लिए, मुफ्त में. 70 सालों तक ये काम किया.

– पढ़ी-लिखी नहीं थीं. लेकिन 20 साल की उम्र से ही प्रेगनेंट औरतों की डिलीवरी करवाने का काम शुरू कर दिया था.

– पहली डिलीवरी तब कराई थी, जब वो खुद 20 साल की थीं.

– कर्नाटक में एक शहर है टुमकुर. वहां के कृष्णापुरा गांव में पैदा हुई थीं. 1920 में. उस कास्ट में पैदा हुई थीं, जिसे ‘अछूत’ माना जाता था.

– 12 साल की थीं, तब शादी हो गई अंजीनप्पा से. 12 बच्चे हुए, जिनमें से 4 जिंदा नहीं रह सके. 8 बचे. जिनके कुल मिलाकर 36 बच्चे और पोता-पोती हुए.

– प्रेगनेंट औरतों की डिलीवरी कराना नरसम्मा ने अपनी दादी मारीगेम्मा से सीखा. मारीगेम्मा ने नरसम्मा के पांच बच्चों की डिलीवरी कराई थी.

– एक्सपर्ट थीं. बिना पढ़े-लिखे, अपने एक्सपीरियंस से कई औरतों और बच्चों की जान बचाई.

– 70 सालों तक ये काम करती रहीं, फिर सरकार को इनका ध्यान आया. 2018 में पद्मश्री से भी सम्मानित किया. खैर, इससे पहले भी कुछ सम्मान मिले थे नरसम्मा को. बहुत ही बढ़िया तरीके से सोशल वर्क करने के कारण तुमकुर विश्वविद्यालय ने उन्हें डॉक्टरेट की मानद उपाधि दी थी, 2014 में.

– डिलीवरी करवाने का तरीका, नरसम्मा ने केवल अपने तक नहीं रखा. दूसरों को सिखाया भी. अपनी बेटी जयाम्मा को मिलाकर कुल 180 लोगों को सिखाया.